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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर सोच

8 मार्च का दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। लोग अपनी महिला दोस्तों, मां, बहन और पत्नी को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हैं लेकिन क्या महिलाओं को एक दिन इस दिवस की शुभकामनाएं देने से उनका सम्मान होता है? घूरते हो, मारते हो, जलील करते हो, इज्जत से खिलवाड़ करते हो और फिर महिला दिवस पर एक दिन के लिए सम्मान देने लगते हो, नहीं चाहिए ऐसा सम्मान। महिलाएं एक दिन के सम्मान की भूखी नहीं हैं, अगर देना है तो हर रोज उस बुरी नजर को हटाकर सम्मान दिया जाना चाहिए, जो कि उसे देखते ही अपनी हवस की भूख मिटाने के बारे में सोचती है। भारत ही नहीं दुनिया में महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं सुनने को मिलती हैं। महिलाओं के सम्मान की इतनी ही फिक्र है तो उन्हें बुरी नजर से देखना बंद करो, तभी महिलाओं को असली सम्मान मिलेगा।

रेप, घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, छेड़छाड़ जैसे कई मामले रोजाना दर्ज किए जाते हैं और कई तो ऐसे मामले हैं जो कि रिकॉर्ड ही नहीं होते। लड़की छोटे कपड़े पहनती है तो कुंठित सोच वाले पुरुषों को लगता है कि वह न्योता दे रही है कि आओ मेरे साथ कुछ भी करो, मैं कुछ नहीं कहूंगी। ये समाज के लोग भी उसे ताने मारते हैं कि छोटे कपड़े पहनकर और रात में बाहर रहोगी तो तुम्हारे साथ ऐसा ही होगा। जब वहीं 3 और 8 महीने की एक बच्ची को हवस का शिकार बनाया जाता है तो इसमें कौनसा बच्ची का कसूर होता है। वह कहां किसी को अपना बदन दिखा रही थी जो उसके साथ जघन्य अपराध को अंजाम दे दिया जाता है।

 

इन समाज के ठेकेदारों से पूछों कि चलों अगर तुम्हारी इस घटिया सोच को मान भी लिया जाए कि छोटे कपड़े पहने हुए लड़की अपना बदन दिखा कर लड़कों को उनके साथ कुछ भी करने का न्योता देती है तो उस बच्ची ने कैसे न्योता दे दिया जो कि अभी अपने मां-बाप तक को नहीं जानती, आस-पास क्या हो रहा है वह नहीं जानती और रेप किसे कहते हैं यह नहीं जानती तो उसे क्यों एक पुरुष ने अपना शिकार बना डाला? फिर भी महिलाओं के सम्मान को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं।

सम्मान देना है तो इसकी शुरुआत घर से करो, क्यों बेटों के लिए सभी चीजों की आजादी होती है? क्यों बेटी को हर कदम पर सिखाया जाता है कि कैसे चलना है, क्या पहनना है, कैसे बात करनी है, कैसे रहना है? यह सारे नियम कानून केवल लड़कियों के लिए ही क्यों बनाते हो? अगर बेटों को अच्छी शिक्षा दी जाए तो वे महिलाओं का सम्मान करेंगे। बच्चों का पहला स्कूल उसका परिवार होता है। बच्चा जैसा परिवार में सीखेगा वैसा ही वह बाहर निकलकर बर्ताव करेगा। परिवार में अपनों के ही तानों का शिकार बनने के बाद एक दिन उस बेटी के हाथ पीले कर उसे दूसरे घर भेज दिया जाता है। पति के घर जाने से पहले उसे समझाया जाता है कि अब वही तेरा घर है और जैसे वो चाहेंगे वैसे ही रहना। लड़की भी सोचती है पहले मायके में सभी की मर्जी से चली और अब ससुराल वालों की मर्जी से चलना ही अपना धर्म है।

 

लड़की की खुद की इच्छाएं, खुद की आजादी और खुद की मर्जी किसी के लिए कोई मायने नहीं रखती। वह क्या चाहती है इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता। उसे एक पिंजरे में रखने की भरपूर कोशिश की जाती है और फिर पूरे साल में एक दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के नाम पर उसे सम्मान देने की कोशिश होने लगती है। ससुराल में दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाना, पति का जब मन आए तब पीट देना, क्या ऐसे ही सम्मान दिया जाता है? घर, बाहर या ऑफिस महिलाओं को सम्मान दिया ही कहां जा रहा है? हर जगह किसी न किसी प्रकार से उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। क्या प्रताड़ना देना ही महिलाओं का सम्मान करना है?

 

जन्म से लेकर मरने तक महिला केवल अपने आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती है लेकिन उसे सम्मान देने की जगह पीड़ा दी जाती है और एक दिन इस सबसे परेशान हो वह खुद ही जिंदगी से चली जाती है क्योंकि वह जानती है कि न तो समाज बदलेगा और न ही उनकी सोच इसलिए हारकर वह अपनी जिंदगी खत्म कर लेती है। क्या इसलिए ही महिलाओं के सम्मान के लिए इस दिवस को मनाया जाता है? महिलाएं कमजोर नहीं हैं वे जानती हैं कि कैसे छोटी-छोटी चीजों में खुश रहा जाता है। सब्र और सहनशक्ति की बात की जाए तो महिलाएं इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। ‘औरतों को कमजोर बनाने की कोशिश करना फितरत तुम्हारी, लेकिन उनका हौसला तोड़ना है नामुमकिन’। औरत अगर अपनी खुशी को भुलाकर सब सह सकती है तो वह अपने आत्मसम्मान के लिए एक दिन आवाज भी उठा सकती है, इसलिए उसे कमजोर समझने की भूल करना व्यर्थ है।

 

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