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आखिर भारतीय युवाओं में क्यों घटने लगा है शादी का चलन?

शादी हमेशा से भारतीय समाज और परिवारों का महत्वपूर्ण अंग रही है, लेकिन पिछले कुछ समय में इसका आंकड़ा कम हुआ है। हालांकि अभी भी इसके टूटने की गति और संख्या पश्चिम के मुकाबले कम ही है, लेकिन फिर भी आधुनिक समय में शादी का महत्व थोड़ा कम हुआ है। इसके कई कारण है, लेकिन कुछेक मुख्य कारण हैं, जिन पर चर्चा की जा सकती है।

1. कैलेंडर में बढ़ती सदी और तारीख ने स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की भावना को बढ़ावा दिया है। युवा अपना भविष्य बनाने के लिए अनंत काल तक संघर्ष और कोशिश करते रहना चाहते हैं। खुद को सेटल करने की इच्छा का कोई अंत नहीं होता। इस संघर्ष या और बहुत कुछ पा लेने की दौड़ में किसी दूसरे को साथ लेकर दौड़ना अक्सर मुश्किल होता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए इंसान खुद कुछ भी कर गुज़रने और सह लेने की मनोस्थिति में होता है, लेकिन वही सब कोई दूसरा सहन कर पाए और सहन करने को राज़ी हो ये ज़रूरी नहीं।

2. पहले लड़कियां मां-बाप की इच्छा के अनुसार शादी करके घर गृहस्थी बसाकर सेटल होने में संतुष्ट हो जाया करती थी। लेकिन आधुनिक समय में लड़कियों की शिक्षा और पालन पोषण का जैसे-जैसे स्तर सुधरा, सपने देखने की आज़ादी भी मिलती गयी। अब लड़कियों को अपने न सिर्फ पंख मिले, बल्कि उन पंखों को फैलाने के लिए आसमान भी मिला। ऐसे में शादी करके घर बसाने और सेटल होने वाली थ्योरी में बदलाव आ गया। अब सेटल होने का मतलब शादी करके बच्चे पैदा करना नहीं रह गया, बल्कि एक अच्छी नौकरी या व्यवसाय करके आर्थिक संपन्नता और आत्मनिर्भरता भी हो गया।

3.भारत में पिछले कई सालों में शादियों के टूटने का आंकड़ा बढ़ा है। हालांकि अभी भी ये आंकड़ा पश्चिम की बराबरी में कम ही है, लेकिन फिर भी संयुक्त से एकल होते परिवार, आर्थिक और मानसिक दवाब, कार्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण शादियों में भी तनाव बढ़ता गया। पहले लड़ाई-झगड़े और मनमुटाव आपसी समझदारी और हस्तक्षेप से सुलझा दिए जाते थे। ऐसी परिस्थितियों में अधिकतर दोनों को या किसी एक को कुछेक समझौते करने पड़ते थे, लेकिन फिर भी परिवारों के प्रयास, सामाजिक दवाब और कभी कभी बच्चों के भविष्य के सवाल के जवाब में टूटती शादियां बच जाया करतीं।

4. शादी रिश्ते से अधिक एक संस्था है। अरेंज मैरिज की बात करें, तो इसमें लड़का-लड़की, दो परिवार, रिश्तेदारों के साथ जितने सैकड़ों-हज़ार परिवार शामिल होते हैं, सभी एक तरह से इसके साक्षी बन जाते हैं। ऐसे में जब कभी इस रिश्ते में कुछ समस्या उत्पन्न होती है, पूरा समाज इसे बचाने की कोशिश में जुट जाता है। बहुत अधिक बंधन, रिश्ता बचाने की कोशिश, सामाजिक प्रतिष्ठा का भय अक्सर बात बनाने की जगह बिगाड़ देता है और अजीब सी घुटन घर के भीतर अपना घर बनाने लगती है।

5. शादी करने में जितने नियम और प्रपंच हैं, उसे तोड़ने में उससे भी अधिक बाधाएं हैं। ऐसे में युवाओं में इस सोच ने भी जगह बनाई है कि गलत शादी तोड़ने, बच्चों की ज़िंदगी मुहाल करने की बजाय गलत रिश्ता तोड़ना ज्यादा आसान है। इसी कारण लिव इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ने लगा है और साथ में रहकर एक-दूसरे के बारे में अच्छा बुरा जानकर आगे भविष्य से जुड़े फैसले लेना ज्यादा आसान लगता है।

6. कानून का किसी एक पक्ष में ज़्यादा झुकना और दूसरे पक्ष को इसके खतरनाक नुकसान झेलने देना भी शादी का चलन घटने का बड़ा कारण है। भारत मे महिलाओं की दुर्दशा को देखते हुए दहेज, घरेलू हिंसा के कानूनों में उन्हें थोड़ी राहत मिली हुई है। लेकिन कभी कभी इन कानूनों का दुरुपयोग भी होता है, जिसका खामियाज़ा अच्छे भले लोगों को झेलना पड़ा है। ऐसे में शादी के नाम पर पूर्वाभास तो जुड़े हैं।

7. लड़कियों में शिक्षा के प्रसार प्रचार से एक लाभ हुआ कि आर्थिक और सामाजिक आत्मनिर्भरता बढ़ी। पैसा कमाने के बाद बेटियां अपने माता पिता की देख-रेख करने का सपना देखती हैं, लेकिन भारतीय सामाजिक ढांचा इस बात की इजाज़त नहीं देता। शादी के बाद बेटियों को मां-बाप के साथ अपनी आर्थिक संपन्नता बांटने का अधिकार नहीं मिलता। ये बहुत बड़ा कारण है कि युवाओं में शादी को लेकर एक घबराहट दिखती है। 

ऐसा कतई नहीं है कि शादी की संस्था खोखली हो गयी है और समाज को इससे किनारा करने की ज़रूरत है। ज़रूरत है इस संस्था को संस्था के ओहदे से रिश्ते पर लाने की। ज़रूरी है कि पति-पत्नी एक दूसरे को आज़ादी, आत्मनिर्भरता, सम्मान, प्राइवेसी सब दें। हरेक रिश्ते में एक ऐसी जगह ज़रूरी है, जहां रिश्ते का भविष्य पनप सके, लेकिन मैरिज सर्टिफिकेट को रजिस्ट्री की तरह इस्तेमाल करना सरासर गलत है और यही कारण है शायद की युवाओं में शादी का चलन घटने लगा है।

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