आज राम के नाम पर घर से निकलते छोकरों को देख, मुझे 2011 का काँग्रेस और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन की याद आ गई। तब इन छोकरों के पास मदद के लिए जाता था तो ये कहते थे “देश का कुछ नहीं हो पायेगा तुम बेकार ही अन्ना और रामदेव के नाम का झंडा लिए घूम रहे हो।” लेकिन मैं क्यों सुनूं उनकी, मेरे साथ मेरे उत्कर्ष के स्टूडेंट्स थे और उनके माता-पिता भी। साथ मे मेरी बूढ़ी दादी और बहने भी। निकल पड़ते थे सब मिलके शांतिपूर्वक सरकार का विरोध करने।
जब सब सहयोगी थक कर सो गए तो जेब में लिए Rs 400 पहुंचा दिल्ली, रामदेव के आमरण अनसन में। उत्साह तो इतना था कि जैसे सुभाष चंद्र बोस ने मुझे अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए आज़ाद हिंद फौज में शामिल कर लिया हो।
लेकिन कुछ ही दिन में अचानक रात को पुलिस वाले आते हैं रामदेव को गिरफ्तार करने, और जिन्हें हमने सुभाष और भगत समझा था वो भीगी बिल्ली की तरह निकल लिए और रह गए हमारे जैसे क्रांतिकारी लोगों की सेना। लेकिन इर्द गिर्द देखा तो वो सेना भी भाग रही थी। मैंने सोचा मैं तो नही जाने वाला, आज आर या तो पार।
मत पूछो वहां रुक कर क्या-क्या दृश्य देखा मैंने।
देखा पुलिस वालों को, जो जी जान लगा देते है हिंसा को रोकने के लिए। देखा ,पत्थरबाज़ी करते हुए साधुओं को जो जी जान लगा देते है हिंसा फैलाने के लिए। देखा, पहली बार मीडिया कैसे बनाता है झूठ को सच और सच को झूठ। देखा पहली बार कैसे संकट की घड़ी में लोग पहले अपने जान बचाने को भागते है।
आंखों में आंसू लिए (टियर गैस वाली), कुछ लोगो के साथ जनपथ में रात बिताई और सुबह वापस आने की तैयारी शुरू। वापस आते समय दुनिया को देखने का दृष्टिकोण बदल चुका था। शायद मैं अगर इस झूठे आंदोलन में भाग नहीं लेता तो सच्चाई के इतने करीब नहीं आता।
हमने तो 2011 में देश का झंडा उठाया था, जिससे लोगों की ज़िंदगी तो नहीं बदली लेकिन सरकार ज़रूर बदल गई। आज के छोकरों के हाथ मे तो धर्म का झंडा दिया गया है, ना जाने इसका परिणाम क्या होगा।