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बस कुछ सवाल जिसका जवाब सभी लड़कियां जानना चाहती हैं

कहते हैं कि अगर बेटियाँ न हों तो ये संसार इतना खूबसूरत नहीं दिखेगा जितना आज दिखता है। फिर बेटियों पर इतनी पाबन्दियाँ क्यूँ? क्यूँ उनके हंसने,खाने और सोने तक के तरीके गलत नजर आते हैं?

क्यूँ उनकी नाक आपकी इज्जत के साथ जुड़ जाती है जिसे आप मरते दम तक खुद से तो चिपका कर चलते ही हैं साथ ही बेटियों को भी उसमें जकड़ देते हैं ।

क्यूँ उनका मेडिकल पढ़ना ही अच्छा होता है? एक बेटी इंजिनीयर क्यूँ नई बन सकती ?

क्यूँ बेटों से यह नहीं पूछा जाता कि तुम कहाँ जा रहे हो? सिर्फ एक बेटी को ही इन सवालों का जवाब क्यूँ देना पड़ता है हमेशा ?

क्यूँ लड़कों का शराब पीना उतना बुरा नहीं माना जाता जितना कि एक लड़की का शराब के बारे में बातें कर लेना ही अपराध समझा जाने लगता है?

क्यूँ बेटों की गर्लफ्रेंड हो सकती है पर एक बेटी का कोई लड़का बॉयफ्रेंड तो क्या फ्रेंड भी नहीं हो सकता ?

क्यूँ एक लड़का रात में जहां चाहे वहाँ रुक सकता है पर एक लड़की दोस्तों के घर भी नहीं रुक सकती।

क्यूँ बेटों को मोटरसाइकल कम उम्र में ही चलानी आ जानी चाहिए पर एक लड़क को साइकल चलना भी न आए तो कोई बात नहीं ?

पैसे कहाँ निवेश करने हैं और कहाँ नहीं ये सिर्फ बेटों को ही ज़िम्मेदारी क्यूँ दी जाती है बेटियों को क्यूँ नहीं ?

घर के काम में हाथ बँटाना सिर्फ लड़कियों की ही ज़िम्मेदारी है , लड़कों की क्यूँ नहीं होनी चाहिए?

क्यूँ बेटों को महंगी मोबाइल फोन देने में कोई हर्ज नहीं पर लड़कियों को सस्ती मोबाइल भी मिलनी नहीं चाहिए?

क्यूँ अपनी ही शादी की बात करने पर लड़कियों को बिगड़ी हुई लड़की का टैग दे दिया जाता है?

क्यूँ एक बेटी अपनी मर्जी से कपड़े भी नहीं पहन सकती और अगर पहनती भी है तो उसमें भी 10 तरीके सलीके

से पहनने के जोड़ दिये जाते हैं?

क्यूँ एक लड़के की जांघे दिखना लाज़मी है और एक लड़की की जांघे दिख जाए तो बिगड़ैल समझी जाती है ?

क्यूँ एक लड़का किसी लड़की के साथ दिखे तो दिक्कत नहीं पर अगर लड़की दिख जाए तो चरित्रहीन बन जाती है?

क्यूँ एक लड़का अकेला विदेश जा सकता है पर एक लड़की जाना चाहे तो ये कह दिया जाता है कि शादी हो जाएगी तो पति के साथ जाना ?

न जाने ऐसे और कितने ही असंख्य प्रश्न हैं जिसका जवाब हर एक लड़की ढूँढना चाहती है या यूं तो कहें सदियों से ढूंड्ती आ रही हैं। परंतु इस पुरुष प्रधान समाज से इसका जवाब मिलना नामुमकिन सा लगता है । इन पुरुषवादी सोच वाले पुरुषों से तो जवाब अपेक्षित नहीं है पर इस समाज मे रह रही उन सभी माँ से मेरा एक सवाल जरूर है – आप सभी भी कभी किसी के बेटी थीं , आपके भी मन भी उपरोक्त सवालें उठती ही होंगी या अभी भी शायद उठते ही हैं फिर आप सब भी अपनी बेटियों पे इतनी पाबन्दियाँ क्यूँ लगा देती हैं? क्या आप सभी माएँ चाह जाएँ तो बेटियों को एक स्वतंत्र जीवन जीने में मदद नहीं कर सकतीं । बच्चे तो बच्चे होते हैं अगर उन्हें एक सी परवरिश दी जाती है, एक से संस्कार दिये जाते हैं तो फिर एक सी आज़ादी क्यूँ नहीं?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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