कुसुम जी कहती है “हम अपनी परवरिश के दौरान जिन चीज़ों को अपने आसपास घटते देखते है, उसका हमारी चेतना पर गहरा असर होता है। मिथिला पेंटिंग की खूबसूरती भी इसी से बरकरार है। और हम महिलाओं ने इसको और भी खूबसूरती से रचा बसाया है।”
बचपन में जब मेला जाता था तब से ही मेले को लेकर एक अवधारणा मन में बनी हुई है कि, मेला एक ऐसा जगह जहाँ आपको बहुत ही अलग अलग चीज़े देखने को मिलेगी। तो यहाँ भी “बिहार मेला” में आपको महज बिहार की ही चीज़े नहीं मिलेगी। कुछ अन्य प्रदेशों की भी झलकियाँ यहां आप देख सकते है। मसलन लखनऊ की कुर्ता भी मिलेगा और नॉर्थ-ईस्ट से कई अन्य खूबसूरत चीज़े भी। उनमें आसाम से जॉय भाई के स्टॉल पे जरूर जाए। युवक जॉय ने बांस से कई चीज़ों का निर्माण किया है। उनसे बातचीत करना भी दिलचस्प है। बांस से बनी चीज़ों के प्रति मेरा आकर्षण तब से बना हुआ है जब मेरे एक मित्र बिदित ने इसपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाया था। लिंक यहाँ है – ( https://www.youtube.com/watch?v=bpyHjTzg6Eg&t=306s )
जॉय के दुकान से आगे ही आपको राकेश की शॉप मिलेगी। जहां आपको भिन्न आकर्षक चुन्नी व अलग अलग अन्य कपड़े मिलेंगे.
अलग अलग कला के सभी मामलों में मुझे कलाकारों से बात करना बेहद रुचिकर लगता है। मसलन हम उनके व्यू को भी समझ पाते है। इसी मेले में बिहार से ही एक अन्य कलाकार सतीश जी बताते है कि “विदेशी लोग तो पेंटिग खरीदने से पहले बहुत कुछ पूछता है। सारा कहानी ही खंगाल डालता है फिर जाकर खरीदता है। यूँ नहीं की झट देखा और खरीद लिया।”
तो आजकल स्कूल – कॉलेज में छुट्टी तो चल ही रही है। फुर्सत है तो एकबार घूम आइये। आपको भी अच्छा लगेगा और कलाकारों को भी सुकून मिलेगा। अब लोकल कलाकारों के साथ एक विडम्बना यह भी है कि पेंटिग्स खरीदने वालों तक उनकी पहुंच कम है। ज्यादातर लोग जो कला को पट्रोनॉइज करते है। वे सम्पन्न घर से होते है। और फिर उनका आनाजाना ज्यादातर गैलरियों तक होता है। जिन गैलरी तक बहुत कम लोकल कलाकारों की पहुंच है।
तो आप जा सकते है। कला का दर्शन कर सकते है। कलाकारों से बात कर सकते है। और पसन्द आयी तो कोई पेटिग्स मेले से ले आकर अपने घर की दिवाल पर सजा सकते है।
मेला 31 मार्च तक है। और टिकट का रुपइया मात्र 30 है। विदेशी लोगों के लिए 100 रुपया।