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लोकतंत्र में आपके भावनाओं की स्वतंत्रता

दुनिया का हर तानाशाह हँसने से डरता है। उसे जनता की मुस्कुराहट पसन्द नहीं होती है। और अगर ये बात स्त्रियों के हँसने की हो तो उसका डर और भी बढ़ जाता है। एक तानाशाह कभी नहीं चाहता है, कि जनता उसके साथ हँस खेल कर रहे। वो हमेशा चाहता है जनता उसकी पूजा करे, उसका गुणगान करे उसे ही सर्वशक्तिमान माने। और ये स्थिति बनाये रखने के लिए वह लोगों को बुनियादी सुविधाओं से दूर रखता है। उसे अंधविश्वास की ओर ढकेलता है। उसके मनोवैज्ञानिक सोच को बर्बाद करके रख देना चाहता है। उसके नागरिक होने की छवि को कुचल देना चाहता है।
आइये मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ,
जब दुर्योधन युधिष्ठिर की सभा से लौट रहा था तो वो फर्श समझ कर पानी में गिर जाता है, और इस पर द्रौपदी हँस देती है, जो कि आज के समाज में भी भाभियाँ अपने देवरों के साथ करती और अक्सर लोग इस बात पर हँस देते हैं कई बार तो अच्छा खासा मज़ाक भी बनाया जाता है। लेकिन एक आम इंसान इस हँसी मज़ाक को केवल प्रेम दृष्टि से देखता है या बहुत तो थोड़ी देर के लिए रुष्ट हो जाता है। पर अश्लीलता और क्रूरता पूर्वक कोई भी ईर्ष्या की भावना नहीं रखता है। लेकिन इसके विपरित दुर्योधन ने हँसी को अपने अपमान से जोड़ लिया और अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर एक षड्यंत्र रचा।
और उस षड्यंत्र का परिणाम था द्रौपदी का चीरहरण।
ये शायद दुनिया की सबसे अश्लील, क्रूर तथा दुर्बल सभा थी। क्योंकि एक तरफ सभी कौरव अश्लीलता और क्रूरता पूर्वक द्रौपदी के चीरहरण होने पर ठहाके लगाकर हँस रहे थे, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में एक भीष्म, अर्जुन को धनुर्विद्या का ज्ञान देनेवाले गुरु द्रोण, नीति विशेषज्ञ विदुर, पाँच पाण्डव जिनमें धर्म के महाज्ञानी युधिष्ठर, दुनिया का सबसे महान धनुर्धर गांडीवधारी अर्जुन और महाबली भीम जो सब व्यक्तिगत धर्म या ढोंग के आड़ में अपनी दुर्बलता का परिचय दे रहे थे।


लेकिन ये कहानी राजतंत्र की है जिसमें राजपरिवार के लोग जनता को कीड़े मकोड़े की तरह समझते हैं और समय आने पर अपने राजपरिवार में भी ऐसा व्यवहार करते हैं। राजतंत्र में स्त्रियों के लिए कोई जगह नहीं होता है, कुछेक उदाहरण को छोड़ दे तो।
लेकिन अगर ऐसी घटना लोकतंत्र में होती है तो आपका लोकतंत्र आपका नहीं रहेगा क्योंकि यह लोक तथा तंत्र में टूट चुका होगा। जिसमें तंत्र पर महत्वाकांक्षी तथा धूर्त लोगों का कब्जा होगा और लोक के नाम पर रह जाएंगे आप। ये दिखने को तो आपका लोकतंत्र होगा क्योंकि आप चुनाव में हिस्सा ले रहे होंगे पर चुने जाने के लिए नहीं किसी और चुनने के लिए, कहने को तो चुनकर जानेवाला आपका प्रतिनिधि होगा पर दलाल किसी और का होगा।
सतर्क हो जाइए इस डर लगने वाले कथन से। जो ये कहता है उसे आपके हँसने से उसे डर लगता है दरअसल ये आपको डराने की साजिश रच रहा होता है। ये सच है कि आपके हँसने बोलने या मजाक करने से उसको डर लगता है, ये डर इसलिए भी उसको लगता है क्योंकि वो अभी तक आपको डरा नहीं पाया है। वो तंत्र तबतक लोकतांत्रिक और न्यायप्रिय नहीं हो सकता है जबतक आपकी हँसी, मुस्कुराहट और मज़ाक में खुश रहना न सीख ले। आपका व्यंग्य और कटाक्ष जबतक उस तंत्र को अपमान लगेगा तबतक वो आपको आपके नागरिक होने का सम्मान कभी नहीं करेगा, आपका ये कटाक्ष आपके तंत्र को फीडबैक के रूप में उसे लेना होगा तभी वो आपका सम्मान करेगा।
ये तंत्र आपका है, आप इस तंत्र के समान रूप से हकदार हैं इसलिए तो ये लोकतंत्र है।
आपको जब भी ऐसी डर कर डराने वाले तंत्र का सामना करना पड़े, आप खुल कर हँसिये, बोलिये, लिखिए, मज़ाक,व्यग्यं और कटाक्ष कीजिये क्योंकि सबकुछ आपका अपना है दुनिया आपकी है ये सोच आपका है ये कल्पनाये आपकी हैं ये भावनायें भी आपकी है तो इसपे किसी और का वर्चस्व क्यों हो।

 
 
 
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