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होली पर मौलिक अधिकार…

सुबह होते ही आज मेरी छोटी बहन ने बिस्तर पर ही मुझे रंग लगाकर उठाया और मैं भी तुरंत उठकर उसे थोड़ा चिल्लाते हुए रंग लगाने दौड़ाने लगी , हमारी हर वर्ष की होली ऐसी ही होती है ,मम्मी पापा को भी रंग लगाकर आशीर्वाद लेकर , दोस्तों व रिश्तदारों के आने पर उनके नास्ते के लिए कुछ पारम्परिक पकवान जैसे गुझिये , जो मुझे बहुत पसंद है , मैदे के छोटी छोटी सलोनी आदि बनाने में जुट जाते है , अक्सर जिन परिवारों में नॉन वेज खाया जाता है वहाँ आज के दिन चिकन वगैरह ज़रूर बनता है ऐसी ही होती है हमारी होली हर साल , अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गयी आज होली है ।
होली उत्तर व मध्य भारत का एक प्रमुख त्यौहार है जिसे सभी जन ऋतु परिवर्तन होने के समय मतलब फागुन माह के अंतिम दिवस में होलिका रूपी लकड़ियों व गोबर के कंडे को जलाकर उस से स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना कर नव ग्रीष्म ऋतु के आगमन की ख़ुशी में गुलाल आदि रंगों को सभी को लगाकर व बड़ों का आशीर्वाद लेकर मनाते है ।
इस साल का होली का दिन आ चुका था , बचपन में हम बहनें , जब तक हम छोटी थी अपने आस पास के दोस्तों के साथ छोटी छोटी पिचकारी लिए रंगों से भरे गुब्बारे के साथ ख़ूब होली का आनंद लेती थी , जैसे जैसे बड़ी होती गयी हमारी ये होली खेलने की आज़ादी धीरे धीरे कम होती गयी , पहले सिर्फ स्कूल में थोड़ा बहुत बस गुलाल लगाकर और फिर कॉलेज में भी इसी तरह और अब हमें होली खेलने की आज़ादी सिर्फ हमारे घरों तक ही सीमित कर दी गयी। इसका कारण हमारे अभिभावकों की संकीर्ण सोच नहीं है इसका कारण होली में बिगड़ता माहौल है , आज हम बहनें सिर्फ एक दूसरे के साथ व अपने पड़ोस की महिलाओं के साथ ही होली खेलने को बाध्य है , हमारी वो सहेलियाँ जिनके साथ हम अपना हर सुख दुख बाँटती है उनके साथ होली खेलने जाने की हम सोच भी नहीं सकते या वो भी ऐसा नहीं सोच सकती या तो फिर हम अपने भाइयों और पिताजी के साथ ही जा सकती है ।
क्या ये ही होता है त्यौहार जिसमें हम सिर्फ इसीलिए ये त्यौहार अपनी स्वतंत्रता को आड़े रखकर मनाएं क्योंकि हम स्त्री है , हमारे माता पिता हमें जाने देने से कभी मना नहीं करते परंतु आज के माहौल को देखते हुए वे भी बाध्य होते है , चिंताग्रस्त होते है , हमारी सुरक्षा को लेकर इसी कारण ही हम ये त्यौहार हर्षोल्लास से नहीं मना पाते ।
इसमें हम शासन को दोष नहीं दे सकते क्योंकि हमारे देश में शहरी सुरक्षा हेतू पोलिस बलों की संख्या इतनी भी नही की हर गली मोहल्ले में उन्हें तैनात कर सके । तो क्या हम महिलाएं इसी तरह आजीवन अपने घरों में घुसकर ही होली मनाते रहें ।
जब हमारा संविधान हमें हर क्षेत्र में हमें निर्बाध रूप से विचरण की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है तो क्यों हमें इस दिन इस स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ता है । क्या इस देश में कोई है जो हमें इस अधिकार को रोकने में सक्षम है , क्यों हम अपने बच्चों को बाकी दिनों में घर से बाहर जाने से नहीं रोकते और इस एक दिन चाह कर भी जाने नहीं दे सकते ।
कब आएगी वो घड़ी जब हम देश की 50% महिलायें अपनी इस आज़ादी के लिए एक जुट होकर खड़ी होंगी । कब हमें सड़क चौराहों के अलावा प्रत्येक गली खोपचों में भी सुरक्षा मिलेगी ।
मेरे विचार से ये सुरक्षा तब ही मिल सकती है जब हमारे देश का पुरूष वर्ग इस दिन को शालीनता पूर्वक अच्छे से अपने धर्म , संस्कृति और घर की मर्यादा को समझकर अपने परिवार की मर्यादा को ध्यान में रख और “बुरा न मानों होली है “ के वाक्य को ठंडे बस्ते में रख कर इस त्यौहार को मनाए ।
ये दिन , त्यौहार के स्थान पर सिर्फ हुल्लड़ , शराब पीकर घूमने , किसी को भी पकड़कर ज़बरदस्ती रंग लगाने , केमिकल युक्त रंग लगाने , और महिलाओं की स्वतंत्रता भंग करने का एक मात्र ज़रिया बन चुका है ।
और शायद तब तक मैं और मेरी जैसी न जाने कितनी लड़कियां अपने अपने घरों में मजबूरन इस एक दिन की जेल की सज़ा काट रही है और काटती रहेंगी ।
Happy Holi…
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