माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,
मैं 125 करोड़ देशवासियों में से एक भारतीय हूं। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि लोग आपकी पार्टी के बारे में कुछ भी कहें पर आपके बारे में जब भी चर्चा होती है तो कान खड़े हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं यह मानता हूं कि आप जैसा प्रधानमंत्री दोबारा मिल पाना मुश्किल है। शायद आपका व्यक्तित्व प्रभावित करता हो। खैर, जिन लोगों को आप ‘खास’ लगते उन लोगों के मन में एक ‘आम’ धारणा यह बैठ गई है कि ‘डेवलपमेंट’ वाला विकास तो हो रहा है। भले ही एकसाथ नहीं धीरे-धीरे ही सही पर फर्क दिख रहा है, पांच साल पहले की तारीख में और आज के डेट में। हालांकि पूरा विकास लापता है लेकिन जिस दिन मिलेगा गज़ब हो जाएगा। मैं आपका ‘जबरा फैन’ या ‘भक्त’ नहीं हूं, पर आप मेरे प्रधानमंत्री हैं इसलिए आपको आदर्श मानता हूं।
मुद्दे पर आता हूं, मुझे कुछ महीनों से समाज का माहौल ठीक नहीं लग रहा है। हर जगह डर के माहौल का एहसास होता है, डर जो दिखता नहीं पर महसूस होता है। लोगों में जाति विवाद के आधार पर टकराव होने का, अचानक लोगों की नौकरियां जाने का, गरीबों के और अधिक शोषित होने का, बैंकों द्वारा आम लोगों के लुटे जाने का और समूह विशेष द्वारा गुंडागर्दी करने जैसे कई मामले है जो सोचने मात्र भर से ही डर का एहसास करा देती है।
आपके शासनकाल में दो चीज़ जो मुझे अच्छी नहीं लगी वो है किसानों की कम ना हो रही समस्याएं और दूसरी एटीएम में कैश अनुपलब्धता। बताता हूं ऐसा क्यों। कांग्रेस काल में किसानों के लिए जो भी योजनाएं लाई गई होंगी सब अनावश्यक और बेकार निकली। ऐसा इसलिए क्योंकि रोते किसान तब भी थे और मरते किसान अभी भी हैं। हालात नहीं बदले। अगर बीजेपी किसानों को अब कोई वरदान दे रही है तो वो भी निरर्थक ही प्रतीत हो रहा है क्योंकि किसानों की समस्या हल हुई होती तो अन्नदाताओं की आत्महत्या के आंकड़े सच बयां ज़रूर करते।
हाल ही में महाराष्ट्र के नाशिक से हज़ारों किसान पांच दिन की पैदल यात्रा कर नाराज़गी जताने मुंबई में सीएम देवेंद्र फडनवीस से मिलने आएं लेकिन आश्वासन से अधिक उन्हें कुछ नहीं मिला। यह दिखाता है कि पांच साल पहले और आज में कुछ नहीं बदला है। कुछ भाजपाईयों ने कहा कि वे किसान नहीं ‘लेफ्ट’ वाले थे लेकिन मैं यह मानता हूं कि वे सिर्फ किसान थे जो एक सरकार से मिलना चाहते थे।
बहुत से एटीएम में 100 रुपए के नोट नहीं रहते हैं। जिस वजह से मजबूरन 500 रुपए निकालना पड़ जाता है और सारे कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाते हैं। पैसे की बचत ही नहीं हो पाती।
फिर एक बार सोचता हूं, अच्छा है खाते में पैसे ही नहीं है, वरना विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोग लूटकर विदेश भाग जाएंगे। पैसे वापस पाने के लिए जब सीबीआई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही तो मैं क्या कर लूंगा।
एक बात अखरती है, अधिकतर मीडिया आपके गुणगान गाती है लेकिन भरी सभा में आप ही लोग कह देते हो कि मीडिया आपके विरोध में खबर चलाती है। जितनी आसानी से बाबा रामदेव अपना कारोबार का पकौड़ा पूरे देश में बना रहे हैं, काश देश के हर शख्स को भी प्याज़, बेसन और तेल सस्ती दरों पर मिल जाए ताकि पकौड़े सब खाएं। विपक्ष वाले जब सत्ता में थे तो रंग बदल लेते थे, कम-से-कम आपसे पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी और स्पष्टता की उम्मीद तो की ही जा सकती है।
बहुत से मुद्दे हैं जिनपर लिखना चाहता हूं लेकिन उम्मीद है आप उसे बिना लिखे समझ लेंगे। आपको उनके बारे में पता भी होगा क्योंकि आपके पास तो नेताओं, कार्यकर्ताओं, अफसरों, मंत्रियों और सोशल मीडिया के अंधभक्तों की फौज है जो आपको ट्विटर पर टैग कर अगवत करा ही रही है। उम्मीद है आप यह पत्र पढ़कर मुझे देशद्रोही नहीं कहेंगे क्योंकि ऐसा करने वालों को यही पुरस्कार दिया जा रहा है।
आपका
125 करोड़ देशवासियों में से एक भारतीय