आज सुबह आंख खुलते ही जब मोबाइल फोन पर नज़र गई तो एक मैसेज पढ़कर दिल में एक अजीब-सी कसक उठी। मैसेज बता रहा था कि दुनिया को बिग बैंग और ब्लैक होल जैसी गूढ़ थ्योरी से परिचित कराने वाले स्टीफन हॉकिंग नहीं रहे। आज सुबह यानी 14 मार्च, 2018 को दुनिया के इस महान इंसान का 76 साल की आयु में ब्रिटेन के कैम्ब्रिज स्थित उनके घर पर निधन हो गया। स्टीफन हॉकिंग अपने आप में एक जीती-जागती किवदंती थे। हॉकिंग जिंदगी से कठिनतम परिस्थतियों में भी कभी हार न मानने की प्रेरणा थे।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब स्टीफन 21 साल के थे, तभी डॉक्टरों ने यह घोषण कर दी थी कि वह सिर्फ दो साल और जी पाएंगे, लेकिन स्टीफन ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सकारात्मक नज़रिये के बलबूते मौत को भी मात दे दी।
किंग्स कॉलेज लंदन के प्रोफेसर निगल लेग ने कहा था, “मैं ALS से पीड़ित ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता जो इतने साल जिया हो।”
स्टीफन हॉकिंग को 21 साल की उम्र में Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) नामक गंभीर बीमारी हो गई थी। इस बीमारी की वजह से ही उनके शरीर ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया था, उस वक्त वह ऑक्सफोर्ड यनिवर्सिटी में फाइनल इयर की पढ़ाई कर रहे थे। कुछ समय बाद उन्हें सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होने लगी। धीरे-धीरे उनकी शारीरिक समस्याएं बढ़ती गई और एक समय ऐसा भी आया जब डॉक्टरों ने हॉकिंग को बताया कि वह दो साल से ज़्यादा नहीं जी पाएंगे। लेकिन हॉकिंग ने डॉक्टरों की बातों को झूठ साबित करते हुए आगे 55 साल की जिंदगी और जी और इस दौरान अपनी रिसर्च भी जारी रखी।
क्या है स्टीफन हॉकिंग का योगदान
स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझने में बेहद अहम योगदान दिया था। उन्हें दुनिया के विभिन्न विश्वविद्यालयों से 12 मानद डिग्रियां और अमेरिका का सबसे उच्च नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ था। 2007 में विकलांगता के बावजूद उन्होंने विशेष रूप से तैयार किए गए विमान में बिना गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र में उड़ान भरी थी। वह 25-25 सेकेंड के कई चरणों में गुरुत्वकर्षण विहीन क्षेत्र में रहे।
डॉ. हॉकिंग ने स्वर्ग की परिकल्पना को सिरे से खारिज करते हुए इसे सिर्फ डरने वालों की कहानी करार दिया था। उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस या AI) को मानवता के लिए बड़ा खतरा बताया था और वो इसके बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित थे। नबंवर-2017 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “पृथ्वी बहुत छोटी होती जा रही है और मानवता खुद का विनाश करने को बाध्य है, क्योंकि इस ग्रह पर AI तेज़ी से हमारी जगह लेती जा रही है। आने वाले समय में यह हमारे विनाश का कारण बन सकता है।”
विपरीत परिस्थितियों में ज़िंदा रहने के सिद्धांत का हवाला देते हुए हॉकिंग ने कहा था कि पहले इंसान के अनुवांशिक कोड में लड़ने-जूझने की ज़बरदस्त शक्ति थी। धीरे-धीरे उसकी यह क्षमता कम होती जा रही है। 100 साल बाद यदि इंसान को अपना अस्तित्व बचाना है, तो उसे धरती छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर अपना ठिकाना खोजना होगा।
स्टीफन हॉकिंग सिर्फ महान वैज्ञानिक ही नहीं थे बल्कि एक महान लेखक भी थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ ने बिग बैंग सिद्धांत, ब्लैकहोल, प्रकाश शंकु और ब्रह्मांड के विकास के बारे में नई खोजों का दावा कर दुनिया भर में तहलका मचा दिया था। उनकी इस पुस्तक की अब तक 10 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद हॉकिंग न सिर्फ आम जनता के बीच लोकप्रिय हुए, बल्कि वह विज्ञान जगत का चमकता सितारा भी बने।
स्टीफन हॉकिंग का बचपन
स्टीफन के पिता का नाम फ्रैंक और मां का नाम इसाबेल था। उन दोनों की मुलाकात द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के तुरंत बाद चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में काम करते हुए एक संस्थान में हुई थी। वहां इसाबेल सचिव के पद पर कार्यरत थी, जबकि फ्रैंक एक रिसर्च बॉयोलॉजिस्ट के रूप में काम कर रहे थे। वे दोनों द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी द्वारा की जानेवाली बमबारी से बचने के लिए लंदन से ऑक्सफोर्ड शहर में जाकर बस गए थे। यहीं पर 8 जनवरी 1942 को स्टीफेंस हॉकिंग का जन्म हुआ था।
हॉकिंग का पालन-पोषण लंदन और सेंट अल्बस में हुआ था। ऑक्सफोर्ड से फिज़िक्स में फर्स्ट क्लास डिग्री लेने के बाद वह कॉस्मोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए कैम्ब्रिज चले गए। कॉलेज के दिनों में स्टीफन को घुड़सवारी और नौका चलाने का शौक था, लेकिन इस बीमारी के कारण उनका शरीर का ज़्यादातर हिस्सा लकवे की चपेट में आ गया। उस समय वह अपनी प्रेमिका जेन से शादी करने की प्लानिंग कर रहे थे।
किस बीमारी से पीड़ित थे स्टीफन हॉकिंग
साल 1963 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान अचानक स्टीफन को पता चला कि वह मोटर न्यूरॉन बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी का नाम था- amyotrophic lateral sclerosis (ALS), यह एक प्रकार की असाधारण स्थिति है जो व्यक्ति के मस्तिष्क और तंत्रिका-तंत्र (Neuro System) को प्रभावित करती है।
शुरुआती अवस्था में इस बीमारी के लक्षण पता नहीं चलते। धीरे-धीरे व्यक्ति शरीर के विभिन्न अंगों में कमज़ोरी महसूस करने लगता है। उसे चलने, बोलने, भोजन करने, किसी भी चीज़ को पकड़ने, खोलने आदि में दिक्कत होने लगती है जो वक्त के साथ बढ़ती जाती है। व्यक्ति का वजन कम होने लगता है, मांसपेशियों में सूजन तथा हड्डियों में गैप आने लगता है। इस बीमारी की वजह से व्यक्ति का जीवनकाल सीमित हो जाता है, हालांकि कुछ लोग जैसे- स्टीफन हॉकिंस लंबे समय तक जीने में कामयाब भी होते हैं।
चिकित्सा क्षेत्र में अब तक इस बीमारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि कुछ ऐसे इलाज ज़रूर हैं, जो रोज़मर्रा के जीवन पर पड़ने वाले इसके असर को सीमित कर सकते हैं।
स्टीफन अपने रोज़ के कामों के लिए ऑटोमैटिक व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने अपनी व्हीलचेयर को इतना आधुनिक बनाया था और उसमें इतने उपकरण लगा रखे थे जिसकी मदद से वह न केवल रोज़मर्रा के काम करते थे बल्कि अपने शोध में भी जुटे रहते थे। वह बोल नहीं पाते थे, इसलिए कंप्यूटराइज़्ड वॉइस सिंथेसाइजर का प्रयोग करते थे, जो उनके मस्तिष्कीय तरंगों को डिकोड करके मशीन के ज़रिये उन्हें आवाज़ में तब्दील कर देता था।
कहते हैं “ज़िंदगी ज़िंदादिली का दूसरा नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं?” इस कहावत का जीता-जागता उदाहरण थे महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग।
हम शायद कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक ऐसा इंसान जो न तो चल सकता है, न बोल सकता है, न हिल सकता और न ही ठीक से खा सकता है, वह अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और जिजीविषा के बल पर ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों को सुलझा सकता है। कई किताबें लिख सकता है और पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणास्तोत बन सकता है। स्टीफन कहा करते थे कि उन्हें मौत से डर नहीं लगता बल्कि इससे जीवन का और अधिक आनंद लेने की प्रेरणा मिलती है। सचमुच स्टीफन हॉकिंग का जाना मतलब एक उम्मीद, एक भरोसे का चले जाना है।
फोटो आभार: फेसबुक पेज Stephen Hawking