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विदेशी चंदे के लालच वाली हमाम में हर पार्टी नंगी है

राजनीतिक पार्टियां वैसे तो आम जनता की भलाई का राग अलापती रहती हैं लेकिन बात जब अपने भलाई की आती है तो बिना देरी के वो हर काम के लिए तैयार हो जाती हैं और एक भी हो जाती हैं। फिर बात सांसदों और विधायकों की सैलरी बढ़ाने की हो या फिर विदेश से मिलने वाले चंदे की। बीते तीन हफ्तों से संसद का एक भी दिन सही तरीके से नहीं बीता, हर रोज़ किसी न किसी बात को लेकर हंगामा होता है और उसके बाद ससंद की कार्रवाई स्थगित हो जाती है।

लेकिन बात जब विदेश से मिलने वाले चंदे के कानून में बदलाव की आई तो हंगामे के बीच चुपचाप विधेयक पारित हो गया और दिन भर हो-हल्ला करने वाली पार्टियों ने चूं तक नहीं की। वहीं, चुनाव सुधार के लिये लड़ रही संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म का कहना है कि वह इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।

दरअसल, पिछले हफ्ते सरकार ने बिना बहस के, चुपचाप वित्त विधेयक में बदलाव करके एफसीआरए  (Foreign Contribution Regulation Act 2010) में बदलाव को अपनी मंजूरी दे दी, जिसके बाद 2010 से पहले राजनीतिक पार्टियों को मिले विदेशी चंदे को लेकर किसी भी तरह की पूछताछ नहीं की जा सकती और उन्हें विदेशी चंदा लेने को लेकर खुली छूट मिल गई है। अब कानून में जो बदलाव किया गया है उसके बाद यह कानून 1976 से राजनीतिक पार्टियों को विदेश से मिले चंदे को लेकर उन्हें पूरी तरह से सवाल जवाब और जांच पड़ताल से मुक्त करता है। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इस विधेयक का कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया क्योंकि विदेश से अच्छा खासा चंदा उनको भी मिलता है और इस कानून का सीधा फायदा उनको भी मिलेगा।

हालांकि टीएमसी ने संसद में इस संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन किया और कहा कि ये कालेधन को चुनावी चन्दे के रूप में वापस लाने की योजना है। टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने कहा, “अब सरकार ने खुले तौर पर विदेशी चंदे का रास्ता खोल दिया है। हमें डर इस बात का है कि पाकिस्तान अलगाव फैलाने वालों को चुनावी फंडिंग की आड़ में मदद करेगा।”

वहीं, सरकार ने अपनी सफाई में कहा है कि केवल वही कंपनियां चुनावी चन्दा दे पाएंगी जो भारत में पंजीकृत हैं। लेकिन विदेश से मिलने वाले चंदे के कानून में संशोधन का पक्ष-विपक्ष की तकरीबन हर पार्टियों ने मूक समर्थन किया क्योंकि चंदा तो हर किसी को चाहिए, फिर वो सपा हो, बसपा, जदयू हो या कोई अन्य।

हर छोटी-छोटी बात पर संसद को रोक देने वाली इन राजनीतिक पार्टियों का इस मसले पर चुप्पी साधना साफ तौर पर इशारा करता है कि इस “हमाम में सब नंगे” हैं। इस तरह तो न जाने कितने नीरव मोदी, विजय माल्या देश से पैसा लूटकर जाएंगे और फिर इन्हीं राजनीतिक पार्टियों को थोड़ा सा चंदा देकर आराम से मौज करेंगे।

देश की जनता खाने के लिए मरेगी, युवा रोज़गार के लिए मरेगा, गरीब न्याय के लिए मरेगा और ये लोग संसद में सिर्फ हंगामा काटेंगे और विदेशी चंदे से मौज करेंगे। कुल मिलाकर आम जनता के पास बस एक ही रास्ता है कि वो “गीता” पढ़े और खुद को तसल्ली दे कि हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएंगे। जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।

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