पश्चिम अफ्रीका में सवा दो करोड़ की आबादी वाला एक दिलचस्प देश है घाना। 1957 को उपनिवेशवाद से आज़ाद होने के बाद भी घाना 1992 तक तानाशाही की जकड़ में रहा है। दुनिया के अन्य विकासशील लोकतंत्रों के मुकाबले यह नया लोकतंत्र आर्थिक प्रगति के वैश्विक आंकड़ों के हिसाब से भारत और चीन के लिए नई और सबसे मजबूत चुनौती पेश कर रहा है।
जहां भारत की अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी के बाद से लगातार चरमराई हुई है, वहीं घाना वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास दर के मामले में भारत को पछाड़ कर विश्व का सबसे तेज़ी से विकसित होता देश बन गया है।
विश्वबैंक के अनुसार 2018-19 के दौरान घाना की विकास दर (जीडीपी) तकरीबन 8.3 फीसदी से 8.8 फीसदी रहेगी जो कि किसी भी विकासशील देश से अधिक है। लोकतंत्र और संप्रभुता हसिल करने के महज 25 सालों के भीतर दुनिया का सबसे अग्रणी विकासशील देश बन जाना किसी भी नए लोकतंत्र के कोई छोटी बात नहीं है और वो भी जब इस देश की अधिकांश आबादी मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव में हो और अशिक्षित हो।
घाना में उद्योगों की कमी है, अभी यह देश औद्योगीकरण के प्रारंभिक चरणों में है। उद्योगों को आर्थिक प्रगति एवं विकास के लिए बेहद ज़रूरी माना जाता है। उद्योगों के अभाव में घाना की सफलता की कहानी के दो कारण हैं। पहला कि वहां दुनिया के सबसे नए तटीय तेल कूपों की खोज हुई है और दूसरा घाना में कोको की खेती। घाना तेल बेचकर लगातार उन्नति कर रहा है।
पिछले कुछ सालों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम में कमी आने से घाना की आर्थिक विकास दर थोड़ी सी कम भले ही हुई थी, मगर अन्तर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार में रौनक वापस आने का घाना को सबसे बड़ा फायदा हुआ है और घाना दुनिया की सबसे तेज आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। घाना की तरक्की में खेती का भी बहुत बड़ा योगदान है।
घाना को आज भी अपने कृषि सेक्टर पर भरोसा है। 2016 में चुनी गई इस देश की नई सरकार के राष्ट्रपति का मानना है कि कृषि ही इस देश की बैकबोन है।
व्यावसायिक कृषि के साथ खाद्यान्न उत्पादन और तेल के प्राकृतिक स्रोत से घाना तरक्की की नई इबारत लिखने के साथ चीन और भारत जैसे देशों को पीछे छोड़ रहा है और हम कृषि के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ने से बाज़ नही आते हैं।
फोटो आभार: फेसबुक पेज Nana Addo Dankwa Akufo-Addo