धरती पर जीवन की शुरुआत से लेकर आजतक अगर कोई शब्द इंसान को डिसक्राइब करता है तो वो है हिप्पोक्रैसी मतलब दोमुहे
अगर कोई मर्द शराब पिए तो वो शराबी और अगर औरत पिए तो वो शराबी के साथ साथ करैक्टरलेस्स असल में हम औरतो को बाँध कर रखना चाहते है इसलिए उसको देवी बनाकर या उसके पैरो के नीचे स्वर्ग बताकर उस से इंसान होने का हक़ छीन लेना चाहते है हम उसपर अपने आदर्श इसीलिए थोपते है क्यूंकि हमे डर लगता है कहीं वो इस दोगले समाज के बंधन तोड़ कर हमको हमारा असली चेहरा न दिखा दे हमे आइना न दिखा दे. यह वोही इंसानी फिदरत है के हमे भगत सिंह तो चाहिए लेकिन पडोसी के घर में .
अब बात करते है राजनीती की. मैं मोदीजी के कई फैसलों का विरोध करता रहा हूँ लेकिन मैं उनकी पूर्वी भारत में हुयी जीत का श्रेय उनकी मेहनत को देना चाहता हूँ evm टाइप के बहाने अलग अलग रूप में सामने आते ही है हर डेमोक्रेसी में. हम आज सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस का कार्यकाल को थोड़ी रियायत दे देते है शायद
- शीला दीक्षित का “कौन केजरीवाल” वाले जुमले या कोंग्रेसीओ द्वारा “कीड़े मकोड़े” वाले बयानों का अहंकार को इग्नोर कर देते है और मेरी अपनी सोच भी यही है के कांग्रेस ने हमेशा अल्पसंख्यक सिर्फ एक ही धर्म के लोगो को समझा. पंजाब में कई साल तक लोगो का यही मान ना रहा के पंजाब मीडिया की खबरों की एडिटिंग इंदिराजी का ऑफिस करता है अब सच्चाई क्या थी वो तो नहीं पता लेकिन अगर इसमें कोई सच्चाई थी तो क्या ये हिप्पोक्रैसी नहीं थी.? देश में इमरजेंसी के समय भी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठे लेकिन हम उन दिनों का विश्लेषण (जब पंजाब का माहौल सही नहीं था) भी उसी मीडिया की रिपोर्ट्स पर करते है अब गलत सही आप सोचे मुझे तो बस यही कहना है के आज़ादी में सबसे ज्यादा क़ुरबानी देने वाली आज भी फ़ौज में पुरे देशप्रेम से भरपूर एक कौम का विश्लेषण करने में थोड़ा धैर्य से काम ले. कुछ विदेश में बैठे बेवकूफो की बेवक़ूफीओ को किसी धर्म से ना जोड़े. कुछ ग़लत लोग हर कौम मजहब में होते है मतलब के हिप्पोक्रेटिक