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औरतों के स्तन को तरबूज़ कहने वाले प्रोफेसर, आप जैसे नमूने आते कहां से हैं ?

इधर जेएनयू में प्रोफेसर अतुल जौहरी का विवाद चल ही रहा था कि केरल से भी एक प्रोफेसर का औरतों पर ऊटपटांग बयान सामने आया है। इस प्रोफेसर महाशय ने औरतों के स्तन की तुलना तरबूज़ से की है। ज़ाहिर सी बात है आप भी इसे पढ़कर अपना सिर पीट रहे होंगे। लेकिन ज़रा रुकिए, अभी पूरी बात तो आपने सुनी ही नहीं है।

दरअसल, केरल के कोझिकोड स्थित फारूक कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर जौहर मुनव्विर का एक वीडियो सामने आया है। जिसमें वे महिलाओं के कपड़ों पर अपना ज्ञान बांट रहे हैं। माननीय प्रोफसर साहब का कहना है, “सीना महिलाओं के शरीर का ऐसा हिस्सा है जो पुरुषों को आकर्षित करता है। ये एक तरबूज़ के टुकड़े की तरह है जिसे देखकर पता चलता है कि फल कितना पका हुआ है।”

उन्होंने यह भी कहा है कि लड़कियां अपने शरीर को पूरी तरह नहीं ढकती हैं। उन्होंने ये सारी बातें खासकर मुस्लिम महिलाओं को टारगेट करते हुए बोली है। प्रोफेसर का कहना है, “वो पर्दा तो करती हैं, लेकिन उनके पैर दिखते रहते हैं। ये है आजकल के स्टाइल।”

ये तो वही बात तो वही हो गई कि नज़र तुम्हारी गंदी और शरीर हम औरतें ढके। जबकि ज़रूरत तो गंदी नज़र पर पर्दा डालने की है।

वैसे, इस तरह के नमूने सिर्फ ये प्रोफेसर साहब ही नहीं हैं। देश में अभी पब्लिक प्लेस में स्तनपान पर गर्माये मामले से तो आप वाकिफ होंगे ही। केरल में प्रकाशित गृहलक्ष्मी पत्रिका के कवर पेज में मॉडल गिलु जोसफ की बच्चे को छाती से लगाए हुई तस्वीर, स्तनपान के लिए जागरूकता के बजाय सोशल बुलिंग के कारण चर्चा में रही। लोग स्तनपान कराती इस तस्वीर को देखकर इतने उत्तेजित हो गए कि खुलकर इसपर अपना विरोध जताना शुरू कर दिया। उस वक्त भी लोगों ने यही कहा, “पब्लिक प्लेस में ब्रेस्ट फीडिंग कराना एक बेशर्मी है। महिलाओं के स्तन देखने से पुरुष उत्तेजित हो जाते हैं।”

यहां भी वही बात हुई, अगर पुरुषों का उनकी उत्तेजना पर कंट्रोल नहीं तो इसका ठीकरा सीधे औरतों के माथे फोड़ो।

औरतों का स्तन प्रजनन प्रक्रिया का एक हिस्सा है। बेशक ये एक सेक्स ऑर्गन भी है। लेकिन महिलाओं की इस संतुलित और वैज्ञानिक बनावट को इस तरह से ऑब्जेक्टिफाइ करना समाज की नीचता को दिखाता है ना कि औरतों को ही बेर्शम करार देने का औचित्य बताता है।

दरअसल, औरतों को चाहरदीवारी में बंद करने के उद्देश्य से इस तरह की मानसिकता काम करती है। उन्हें डर है औरतों की आज़ादी से, वे डरते हैं उनके घर से बाहर निकलने से। और अपने इसी डर को छुपाने के लिए वे औरतों के शरीर को सिर्फ एक सेक्स ऑब्जेक्ट तक ही सीमित रखने की पूरी साज़िश करते हैं।

लेकिन शायद ये मूर्ख हैं, ये शायद आज भी एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं, जहां औरतें बस इनकी गुलाम हैं, जहां औरतें सिर्फ पुरुषों की संपत्ति हैं और पूरी औरत जात को वे सेक्स ऑब्जेक्ट करार देकर ही उनपर अपनी पूरी सत्ता कायम कर सकते हैं।

मगर, उनकी इस काल्पनिक दुनिया के बाहर की सच्चाई कुछ और ही है। यहां विद्रोह है, विरोध की आवाज़ है। और ये विरोध केरल के प्रोफेसर के मामले में भी देखने को मिला। दो लड़कियों ने सोशल मीडिया में अपनी अर्धनग्न तस्वीर पोस्ट करके प्रोफेसर के बयान का विरोध जताया। हालांकि बाद में फेसबुक ने उस तस्वीर को हटा दिया। उन दो लड़कियों में से एक लड़की ‘आरती’ ने बीबीसी को बताया, “मैंने अपनी अर्धनग्न तस्वीर इसलिए डाली थी क्योंकि इंसानी शरीर को ज़रूरत से ज़्यादा सेक्शुअलाइज़ किया जाता है। अगर कोई मर्द अपने शरीर के उसी अंग को दिखाए तो ये बड़ी बात नहीं होती, लेकिन महिलाओं को अपने शरीर को लेकर अति सजग रखा जाता है।”

इसके अलावा कॉलेज की छात्राओं ने तरबूज़ मार्च निकालते हुए प्रोफेसर के खिलाफ प्रदर्शन भी किया।

ये पहली घटना नहीं है जब लड़कियां/औरतें खुलकर सामने आई हों। औरतों का विद्रोह अब हर बार देखने को मिलता है। पिछले साल डीयू के कमला नेहरू कॉलेज के नाटक ‘शाहिरा के नाम’ में ब्रा, पैंटी जैसे शब्द के इस्तेमाल की वजह से प्ले को साहित्य कला परिषद के महाविद्यालय रंगमंच महोत्सव से डिसक्वॉलिफाई कर दिया गया था। जिसके बाद इसका खुलकर विरोध देखने को मिला। कॉलेज कैंपस से लेकर सोशल मीडिया में लड़कियों ने खुलकर अपनी ब्रा और पैंटी का प्रदर्शन किया। इसके अलावा जब-जब पीरियड्स के खून को गंदा बोला गया, हर बार लड़कियां/महिलाएं खुलकर सैनेटरी नैपकिन के साथ सड़कों और सोशल मीडिया पर दिखीं।

मतलब साफ है, तुम जितना दबाओगे, हम उतना खुलकर सामने आएंगे।

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