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हिंदी साहित्य में समलैंगिक प्रेम की दास्तान है निराला की रचना ‘कुल्ली भाट’

समाज में किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व महत्वपूर्ण होता है न कि उसकी लैंगिकता या यौनिकता, लेकिन विडंबना यह है कि द्विलिंगी सोच वाले और लैंगिक भेदभाव से भरे समाज में समलैंगिकों को सम्मान नहीं मिल पता है। पितृसत्तामक समाज में स्त्रियां भी अपने आप को समलैंगिकों से उच्च मानती हैं और समाज में इस समुदाय के प्रति पुरुषों के सामान ही गलत अफवाएं फैलाती हैं।

‘कुल्ली भाट’ को लेकर, उनके गांव में भी यही स्थिति है। उसके घर कोई जाना नहीं चाहता है, गांव में आए किसी नए व्यक्ति से भी उसे मिलने नहीं दिया जाता है। यह वो व्यक्ति है जो समाज में तो है, लेकिन उसकी यौनिकता के कारण समाज उसे स्वीकार नहीं करता है। लैंगिक रुढ़िवादियों ने वैकल्पिक यौनिकता वाले समुदाय को असामाजिक, असभ्य, अप्रकृतिक, अवैज्ञानिक और अमानवीय समझा है। यौनिक विविधता को अस्वीकृत करने वाले समाज ने इन्हें बहिष्कृत कर दिया है।

भारतीय समाज एक लिंग पूजक समाज रहा है, एक समय यहां हर प्रकार की यौनिकता को सामाजिक और धार्मिक स्वीकृति भी मिली थी। अंग्रेज़ों के आगमन के कारण द्विलिंगी रूढ़िवादिता और पितृसत्ता को बढ़ावा मिला जिसके कारण वैकल्पिक यौनिकता का समुदाय अपराधी घोषित किया जाने लगा और उन्हें कलंकित किया गया।

पश्चिम और पूरब की लैंगिकता (जेंडर) एवं यौनिकता (सेक्शुएलिटी) की अवधारणा का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए सरेना नंदा ने अपनी पुस्तक ‘नीदर मैन नॉर वीमेन’ में यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि पूरब का समाज वैकल्पिक यौनिकता के प्रति सहिष्णु रहा है और पश्चिम का समाज इनके प्रति हिंसक रहा है।

समलैंगिक समुदाय के अस्तित्व को स्वीकार करने वाले सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ लिखते हैं, “रुढ़िवादियों के लिए यह दोष है, पर साहित्यिकों के लिए, विशेषता मिलने पर गुण होगा। मैं केवल गुण-ग्राहकों का भक्त हूं।” कोई मनुष्य मात्र पुरुष, स्त्री या समलैंगिक हो जाने से महान नहीं होता है, उसका चरित्र और मेहनत उसे महान बनाती है लेकिन मुख्यधारा का समाज समलैंगिक समुदाय को मानसिक दोष या विकार की उपज समझता है।

स्वीकृति के अभाव में समलैंगिक समुदाय को लेकर समाज में कई भ्रांतियां प्रचलित है। कुल्ली भाट को लेकर निराला की सास कहती हैं, “उसके साथ रहने पर तुम्हारी बदनामी हो सकती है!” इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि समाज में समलैंगिक व्यक्ति से दोस्ती करना बदनामी मोल लेने के बराबर है। समाज समलैंगिकता को छूत की बीमारी समझता है।

निराला ने अपनी रचना ‘कुल्ली भाट’ में कुल्ली भाट के चरित्र द्वारा समलैंगिक प्रेम और आकर्षण को बखूबी दर्शाया है। असल में कुल्ली भाट निराला के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और उन्हें निराला से प्रेम हो गया था। निराला को यह पता था और कुल्ली के आंखों में निराला के लिए प्रेम झलकता था। निराला जी बताते हैं, “मैं देखता था, कुल्ली मुझे, खासतौर से मेरी आंखों को इस तरह देखते हैं जैसे उनके बहुत बड़े कोई प्रियजन हैं।”

समलैंगिक प्रेम भी उतना ही सहज और प्राकृतिक है जितना की विषमलिंगी प्रेम, क्योंकि प्रेम तो प्रेम होता है। ‘मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी’ आत्मकथा की रचनाकार लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी कहती हैं, “प्रेम में कोई शर्त नहीं होती है, प्रेम लैंगिकता और यौनिकता के परे होता है।”

निराला ने अपनी कृति ‘कुल्ली भाट’ में समलैंगिक प्रेम को बेहद संवेदनाशीलता से समझाने की कोशिश की है। निराला ने कुल्ली भाट के प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार तो नहीं किया, लेकिन उन्होंने कुल्ली भाट का सम्मान रखा। समलैंगिकों का प्रेम भी आदरणीय और मर्यादित होता है, अपनी काम वासना तृप्त करने से ज़्यादा उनके लिए भी अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना मुख्य होता है। कुल्ली भाट ने भी निराला की प्रेम अस्वीकृति को मर्यादा के साथ स्वीकार कर लिया था, परन्तु दोनों में दोस्ती मरते दम तक रही। हिंदी साहित्य में समलैंगिक प्रेम का यह उत्कृष्ट उदाहरण है।

किसी मनुष्य की यौनिकता को हिंसा या अपराध से जोड़ना समाज की गलतफहमी है। मनुष्य का व्यक्तित्व किसी विशेष यौनिकता से नहीं बनता है, यौनिकता तो प्रकृति प्रदत्त होती है। समाज कुल्ली भाट के साथ भेदभाव करता है क्यूंकि समाज को उनकी यौनिकता से मतलब है, उनके व्यक्तित्व से नहीं। निराला समाज की इस दोहरी मानसिकता को जान चुके थे, इसीलिए निराला जी कुल्ली भाट के व्यक्तित्व को उजागर करते हुए कहते हैं, “दुनिया कैसी दुरंगी है। इस आदमी के लिए उसकी कितनी मंद धारणा है।”

कुल्ली भाट के द्वारा निराला से किए गए प्रेम प्रस्ताव में समलैंगिक लोगों की व्यथा प्रस्तुत होती है। कुल्ली भाट की निराला के प्रति गैरसमझ के कारण यह प्रस्ताव उन्होंने निराला से किया था। अक्सर समलिंगी पुरुष और विषमलिंगी पुरुष के बीच स्नेह एवं आत्मिक संबंध तो बन सकता है, परन्तु यह संबंध शारीरिक संबंध में परिवर्तित नहीं हो सकता है।

निराला ने भी कुल्ली भाट से न नफरत की है और न उन्हें हिकारत भरी नज़र से देखा है। कुल्ली भाट के द्वारा किए गए प्रेम प्रस्ताव, “मैं तुम्हें प्यार करता हूं” को निराला ने मर्यादित रूप से अस्वीकार कर दिया था, लेकिन उनके बीच की दोस्ती कायम रही।

कुल्ली भाट के प्रेम प्रस्ताव, “मैं तुम्हें प्यार करता हूं” में भावनात्मक और शारीरिक दोनों प्रकार का प्रेम प्रकट होता है। निराला जी शारीरिक प्रेम को ठुकरा देते हैं और भावनात्मक प्रेम को स्वीकार कर लेते हैं।

धर्म के अंधे पुजारी समलैंगिकों को असामाजिक तत्व मानते हैं, परन्तु उन्हें स्वयं यह पता नहीं होता है कि किस न्याय ग्रन्थ या पुराण में समलैंगिकता पाप है। यदि हो भी तो मनुष्य धर्म की किताब हाथ में पकड़कर अपना जीवन-यापन नहीं कर सकता है, क्योंकि समय के अनुसार नैतिक मूल्यों में परिवर्तन आता रहता है।

सुकरात और ऑस्कर वाइल्ड जैसे महान लोग भी समलैंगिक थे, इसका पता इन्हें नहीं होता है। कुल्ली भाट गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में सहभागी थे। वे अपने जीवनकाल में कई सामाजिक कार्यों में संलग्न थे। उन्होंने छुआछुत के खिलाफ एक स्कूल भी खोला जिसमें निचली जातियों के ‘अछूत’ बच्चे शिक्षा पा रहे थे, लेकिन समाज ने उनका बहिष्कार किया। यहां तक कि उनका अन्तिम संस्कार भी निराला जी ने ही किया था।

निराला और कुल्ली भाट के बीच शारीरिक इच्छाओं से परे समलैंगिक प्रेम और आत्मीयता का यह सिलसिला जीवन की अंतिम घड़ी तक कायम रहा। देवदत्त पटनायक ने ‘शिखंडी’ नामक अपने कहानी संकलन में समलैंगिक प्रेम के एक महाकाव्य का उल्लेख किया है, यह सुमेरिया का एक महाकाव्य है जिसमें गिल्गामेश नाम के महान राजा को एन्किदु नाम के एक योद्धा से बड़ा लगाव होता है। योद्धा की मृत्यु पर वह ऐसे विलाप करता है जैसे कोई प्रेमी अपने प्रेमिका के मरने पर करता हो। कुल्ली भाट और निराला का स्नेह इस महाकाव्य की याद दिलाता है।

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