डॉन क्विकज़ोट (Don Quixote) या दोन किखोते (Don Quijote)? वैसे भी भला नाम में क्या रखा है, जो जी में आए समझ लीजिए। हालांकि मिगेल दे सेरवांतेस (Miguel de Cervantes) के द्वारा लिखी गयी स्पेनिश भाषा की इस सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति को स्पेनिश भाषी दुनिया और अंग्रेज़ी को छोड़ बाकी सभी यूरोपीय भाषाओं में ‘दोन किखोते’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में इस महान उपन्यास का परिचय कराने का श्रेय विलायती बाबूओं को जाता है, जिन्होंने स्पेनिश जनता से कहीं ज़्यादा इसे पढ़ा और इसका अध्ययन किया। अंग्रेज़ों ने जाने अनजाने में आधुनिक विधि व्यवस्था, शिक्षा, उपकरण आदि से लैस होकर यहां राज तो किया ही साथ ही भारतीय समाज की दीवारों में अनंत खिड़कियां और दरवाज़े भी ठोक डाले। इनसे न हम सिर्फ़ नज़दीकी दुनियां का जायज़ा ले सके, बल्कि धरती के दूसरे छोरों पर स्थित, पाताल और आकाश जैसे दूर स्थित दुनियां की दास्तान भी पढ़ सके। इस संदर्भ में दोन किखोते से हमारा परिचय किसी अजूबे से कम नहीं हैं। समझ लीजिये कोई हमें पत्थर मारते समय अपनी अंगूठी के अनेको नगीने भी फेंक गया, जिन्हें आज सहेजने की ज़रूरत है।
आखिर सेरवांतेस हैं कौन?
दोन किखोते महान स्पेनिश उपन्यासकार मिगुएल (मिगेल) दे सेरवांतेस की अमर रचना है। मिगेल (मिगुएल) दे सेरवांतेस का जन्म, भारत की आज़ादी से ठीक 400 वर्ष पहले 1547 में स्पेन के राजधानी मैड्रिड से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित अल्काला दे एनारेस नामक एक छोटे से शहर में हुआ था, जो गॉडज़िला की तरह फैलते आज के मैड्रिड शहर का अब एक हिस्सा भर है।
सेरवांतेस का जीवन भी इनके उपन्यास के पात्रों की तरह ही फिल्मी और रोमांचकारी रहा। महज़ 18 साल की उम्र में देशनिकाले की सज़ा से वो इटली की तरफ भागे थे, मगर सौभाग्यवश इनके जिंदगी के वो बेहतरीन पल थे। क्यूंकि उस दौर का रोम, नेपल्स या कहें कि पूरा इटली, कला, लेखन, चिंतन, आधुनिकता या एक तरह से पश्चिमी सभ्यता का समंदर था, जिसमें उन्हें गोते लगाने का मौका मिला।
इसने युवा सेरवांतेस के अंदर एक बेचैन लेखक को पैदा किया। इटली के बहुत सारे भाग उस समय चूंकि स्पेनिश सम्राज्य के हिस्सा थे, तो सेरवांतेस समन्दरों पे राज़ करने वाले स्पेनिश अरमाडा में भर्ती हो गए और लेपांतो के युद्ध में हिस्सा लिया। ध्यान देने की बात है कि उस समय ईसाई और ईस्लामिक दुनियां के बीच अनेकों युद्ध चल रहें थे। तुर्की से सटे ग्रीस या यूनान का हिस्सा जिसे लेवांत के नाम से जाना जाता है, वहां 1571 के युद्ध में युवा सेरवांतेस को तीन गोलियां लगी जिससे उनकी एक बांह बुरी तरह से ज़ख्मी हो गई और किसी काम के लायक नहीं रही। हालांकि उसे काटने की नौबत नहीं आई, फिर भी उन्हें स्पेन में ‘लेपांतो का लूला’ कहा जाता है।