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गीता प्रेस की इन किताबों से कुंद मानसिकता और महिला विरोधी स्वर साफ झलकते हैं

अगर आप हिंदी प्रदेश के किसी सवर्ण हिन्दू परिवार में पैदा हुए हैं तो कभी न कभी आप गीता प्रेस गोरखपुर की किताबों से ज़रूर गुज़रे होंगे। पूजा की जगह से लेकर बुकशेल्फ तक गीता प्रेस की किताबें दिख ही जाती हैं। गीता प्रेस हिन्दू धर्म ग्रथों से लेकर नीतिशास्त्र तक सैकड़ों किताबें प्रकाशित होती हैं।

इन किताबों का हिन्दू परिवारों पर गहरा असर पड़ा है। लोगों के जीवन जीने के तरीकों को इन किताबों ने तय किया है। लेकिन क्या 21वीं सदी में ऐसी किताबों का कोई महत्व है जिसने सालों तक समाज को रूढिवादी बनाकर रखा है? इन किताबों से गुज़रने पर आपको पता चलेगा कि यह किताबें पूर्ण रूप से दलित, स्त्री विरोधी हैं। इनमें कही गयी बातें मर्दवाद और जातिवाद की गंध में डूबा हुआ है।

गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित एक किताब है ‘गृहस्थ कैसे रहें?’ किसी स्वामी रामसुखदास ने इस किताब को लिखा है। मैंने अपने बचपन में कई घरों में इस किताब को देखा है। इस किताब में ‘स्त्री संबंधी बातें’ नाम से एक चैप्टर है। इसमें बताया गया है कि ‘सतीप्रथा हिन्दू धर्म की रीढ़ है’, सत्य है, धर्म है, शास्त्र मर्यादा पर विश्वास है।

इसी किताब में आगे लिखा है कि स्त्री को तन-मन से पति की सेवा करनी चाहिए, पतिव्रता पत्नी अपने लिए कुछ नहीं रखती है और उसे अपने पति के दूसरे सम्बंध होने पर भी वो उसे नहीं छोड़ती है। पति अगर मारपीट कर तो इसे अपने पूर्वजन्म का पाप समझना चाहिए, औरतों का फिर से शादी को इस किताब में पशुधर्म बताया गया है।

इसमें विधवा महिलाओं को गुलाम की तरह रहने और एक समय खाना खाने का उपदेश दिया गया है। स्त्री को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के विचार को बेसमझी, मूर्खता समझा गया है। और तो और औरतों को नौकरी करने की मनाही की गई है और उन्हें स्वेटर बनाना, कपड़े सीना जैसे कामों में लगने को कहा गया है।

इस किताब में गर्भ निरोध को महापाप बताया गया है। इसमें संतान को भगवान का आशीर्वाद मानते हुए अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह दी गयी है नसबंदी और ऑपरेशन को धर्म विरोधी काम बताया गया है। इसमें लिखा है, ” जो स्त्रियां नसबंदी करा लेती हैं, उनका दर्शन भी अशुभ अपशकुन है।” ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करने से कमजोरी न होना और इसे प्राकृतिक प्रक्रिया बताया गया है।

इसी गीताप्रेस की एक और किताब है ‘स्त्रियों के लिए कर्तव्यशिक्षा’ इस किताब को किसी जयदयाल गोयन्दका ने लिखा है। इसकी ज़्यदातर बातें मनुस्मृति और अन्य हिन्दू धर्म ग्रंथों से ली गयी हैं। किताब की भूमिका में ही लिखा गया है कि नारी के लिए शिक्षा शराब की तरह नुकसानदेह है। इसके पहले चैप्टर व्यवहार में औरतों को दूसरे पुरुषों को देखने, भाषण, स्पर्श,एकांतवास और चिंतन का त्याग करने को कहा गया है।

इसमें महिलाओं को शरीर से हर समय काम करते रहने को कहा गया है, इन कार्यों में आटा पीसना, रसोई बनाना, चौका बर्तन करना आदि शामिल है। इस किताब में महिलाओं को आलस्य, शराब, सिगरेट,नाटक,सिनेमा, थियेटर, क्लब,खेल तमाशा जैसी ‘कुरीतियों’ से बचने को कहा गया है। औरत के लिए लज्जा ही भूषण है, अतः किसी से भी हँसी-मज़ाक कभी नहीं करने को कहा गया है।

इस किताब में मनुस्मृति को कोट करते हुए महिलाओं के आचरण को निर्धारित किया गया है-
‘बलया वा युवत्या वा वृध्वया वाणी योषिता।
न स्वतंत्रएं कर्तव्यं किंचित्तकार्य गृहषवपि।।”

मतलब स्त्री बालिका हो, युवती हो अथवा बूढ़ी ही क्यों न हो, उसे अपने घर में स्वतंत्रता से नहीं रहना चाहिए।

मनुस्मृति के एक ओर श्लोक को कोट करते हुए इसमें कहा गया है कि औरत को पिता, पति अथवा बेटे से अपने को अलग रखने की कभी इच्छा नहीं करनी चाहिए।
‘पित्रा भत्रा सुतैवर्पि नेच्छेद विरह्मात्मनः।
एवं हि विरहेन स्त्री कुर्यादुभे कुले।।

मनुस्मृति के एक और श्लोक के अनुसार शराब पीना, दूसरे पुरुष से दोस्ती, पति से अलग रहना, अकेले घूमना, अधिक सोना तथा दूसरे के घर में निवास करना- ये औरतों के लिये छह दोष हैं। यहां तक कि मनु ने ‘योग्य वर’ मिलने पर लड़कियों को कम उम्र में विवाह करने को कहा है।

इसी किताब में औरतों को अधिक भोजन करने से भी मना किया गया है। बिना पुरुष की आज्ञा के कभी घर के बाहर नहीं जाना, ज़्यादा तेज़ चलना, खिड़की के पास खड़े होने आदि से मना किया गया है।

किताब में सिर्फ मनुस्मृति को ही नहीं कोट किया गया है। बल्कि दूसरे हिन्दू ग्रंथों को भी कोट किया गया है। व्यासस्मृति को कोट करके महिलाओं के पीरियड्स पर कहा गया है कि इस दौरान स्त्री को तीन दिन तक घर की वस्तुओं को नहीं छूने, बच्चों को नहीं छूने, पलंग पर नहीं सोने, किसी से हंसी मज़ाक नहीं करने, घर में रसोई आदि का काम नहीं करने को कहा गया है। इतना ही नहीं पीरियड के दौरान सब लोगों की नज़र से दूर रहने, मौन होकर नीच मुंह करके रहने को कहा गया है।

मनुस्मृति,व्यास्मृति से लेकर गीता प्रेस की इन किताबों तक महिलाओ के प्रति तिरस्कार, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाये रखने का भाव है।

ज़ाहिर सी बात है कि 21वीं सदी में इन किताबों, इनमें कहे बेहूदा बातों का कोई महत्व नहीं है, लेकिन अभी भी हज़ारों घरों में किसी न किसी रूप में ये नियम लागू करने की कोशिश होती ही रहती है।

एक तरफ महिलाएं आज़ादी के नए किस्से गढ़ रही हैं, संघर्ष कर रही हैं, वहीं जानकर हैरानी होती है कि अभी भी ऐसी किताबें हमारे समाज मे खूब धड़ल्ले से बिक रही हैं। मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को लिखने वाले मनु की मूर्ति हाईकोर्ट में लगाये गए हैं।

हालांकि गीता प्रेस की वेबसाइट पर दी गयी इंट्रोडक्शन को माने तो वह कहता है कि उसका उद्देश्य हिन्दू धर्म से जुड़े धर्मग्रंथों, चरित्र निर्माण आदि किताबों का प्रकाशन कर सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करना है। जबकि संविधान विरोधी नारियों को गुलाम बनाये रखने वाली इन किताबों को कूड़ेदान में फेंकने की ज़रूरत है।


अविनाश चंचल Youth Ki Awaaz के फरवरी-मार्च 2018 बैच के ट्रेनी हैं।

फोटो क्रेडिट- अविनाश चंचल और सोरोदिप्तो सान्याल

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