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सुनो पंचायत, विवाहेत्तर संबंधों के मामले में पुरुषों के लिए क्या सज़ा है?

सज़ा तो अपराध की मिलती है, है ना! तो गर विवाहेत्तर संबंध अपराध है, जिसकी सज़ा के तौर पर किसी महिला को पेड़ से बांधकर पीटा गया है, तो इसी अपराध के लिए पुरुषों के लिए क्या सज़ा है? क्योंकि मैंने तो आज तक किसी पुरुष को विवाहेत्तर संबंध के लिए सार्वजनिक रूप से सज़ा पाते नहीं देखा है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की धूम-धाम को गुज़रे बमुश्किल एक पखवाड़ा बीता है और देश की बड़ी खबरों में एक है, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पंचायत के फरमान पर एक पति ने पत्नी को सबके सामने पेड़ से बांधकर बेल्ट से पीटा, जब तक कि महिला बेहोश नहीं हो गई। महिला को पुरुष के हाथों पिटता देखने वाली भीड़ का दिल इतने से भी नहीं भरा और लोगों ने महिला के घर घुसकर उसे गंदी गालियां दीं और उसे तमाम अपमानजनक तमगों से नवाज़ा।

हममें से बहुतों ने ये खबर पढ़ी होगी और वायरल वीडियो भी देखी होगी, लेकिन बाय चांस जिनकी नज़र इस खबर से चूक गई उन्हें बता दें कि खबरों के मुताबिक पंचायत ने महिला को उसके पति से पिटवाने का फरमान इसलिए दिया कि महिला अपने पति को छोड़ दूसरे के साथ चली गई थी, जिसे ढूंढकर ज़बरदस्ती पति के पास लाया गया और अपराध (सो कॉल्ड) के लिए सज़ा दी गई।

मेरा सवाल उस पंचायत और उस जैसी पंचायतों से यह है कि पुरुषों के विवाहेत्तर संबंधों पर कितनी पत्नियों को यही आदेश दिए गए हैं कि सज़ा के तौर पर अपने पतियों को पेड़ से बांधकर सबके सामने लाठी और चप्पलों से पिटाई करें? यहां साफ कर दूं कि अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी का कोई फैसला लेने की सज़ा किसी को सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित और जलील करके दी जाए, मैं इस पक्ष में नहीं हूं, चाहे वह महिला हो या पुरुष। इन मामलों के लिए कानून में प्रावधान है और कानूनी प्रक्रिया है। प्रमुख बात ये है कि पंचायत का इस तरह किसी महिला या पुरुष को सजा देना गैरकानूनी है।

जब पंचायत के फरमान पर एक महिला को सरेआम पीटा जा रहा था, उस दिन भी देश के अलग अलग कोने में करीब 936 महिलाएं किसी न किसी प्रकार की हिंसा से दो चार हुईं (NCRB)। पुरुषवादी समाज की पुरुषवादी पंचायतों के सामने तो एक महिला का यह सवाल उठाना भी अपराध होगा कि क्यों एक डेढ़ साल की बच्ची या एक युवती या महिला के रेप का मामला समाज और पंचायत के लिए कानूनी मसला हो जाता है और वही पंचायत एक पति को उसकी पत्नी को सबसे सामने पीट पीट कर सज़ा देने का फैसला सुनाकर कानून हाथ में लेने से नहीं हिचकती?

मीडिया ने बाकी वायरल खबरों की तरह इस घटना को भी समाचार की तरह छाप दिया। लेकिन हमें समझने की ज़रूरत है कि यह महज़ एक समाचार नहीं, एक समस्या है उस समाज की जिसमें हम रहते हैं, जीते हैं। और जहां हमें जीना है, वहां समस्याओं के समाधान की ज़रूरत है। महिलाओं के प्रति पुरुषवादी समाज की हिंसा का यह अकेला वाकया नहीं हैं।

हर मिनट कहीं कोई महिला पुरुषवादी सोच की षड़यंत्र का शिकार हो रही होती है, जिनमें से कुछ की खबर हम तक पहुंचती है और कितनी नहीं पहुंचती। कहीं कोई बहू दहेज के लालच की मार सह रही होती है, कहीं कोई बेटी झूठी शान की भेंट चढ़ जाती है, पुरुष दंभ की संतुष्टि के लिए किसी लड़की का बलात्कार होता है, तो कहीं संपत्ति के लिए कोई महिला डायन बताकर जलील की जाती है और मार दी जाती है।

21वीं सदी में जीने, मंगल ग्रह तक यान भेजने और टेक्नोलॉजी के ज्ञाता होने का दंभ भरने वाले देश में हर दिन, हर घड़ी कोई महिला पुरुषवादी सोच से उपजी हिंसा का शिकार होती है। 

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ो के मुताबिक साल 2016 में झारखंड में 27 महिलाओं को, तो ओडिशा में 24 महिलाओं को डायन बताकर मार दिया गया। बीते कुछ दशकों में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान में कितनी महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित किया गया है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में महिलाओं, खास कर आदिवासी और दलित महिलाओं के प्रति हिंसा के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं।

पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा के सबसे ज्यादा मामले देखे गए हैं। वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में महिलाओं और युवतियों के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हुए हैं।

पुरुषवादी समाज जहां अपनी लालच, झूठी शान और अहंकार का ठीकरा हमेशा महिलाओं के सर फोड़ता है, वहीं महिलाओं ने भी अपने दम पर तो कभी कानून की मदद से बराबरी के हक और अपने अधिकार का संघर्ष जारी रखा है। सलाम उन महिलाओं को जो अपने खिलाफ हर साजिश को ठेंगा दिखाकर पुरुषवादी समाज से टक्कर लेती हैं, खुद के लिए, औरों के लिए आवाज़ उठाती हैं, प्रतिकार करती हैं और अपनी शर्तों पर ज़िदगी जीती हैं।

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