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सीरिया पर आज की खामोशी कल कहर बन कर टूट सकती है

पिछले महीने राजधानी दिल्ली के मंडी हाउस स्थित श्रीराम सेंटर ऑफ आर्ट्स में काशीनाथ के उपन्यास पर आधारित नाटक उपसंहार का मंचन हुआ। इस नाटक में भगवान कृष्ण के अंतिम समय को दिखाया गया, जिसके बारे में इतिहास, पुराण और श्रुतियों में काफी कम बातें कही गई हैं।

नाटक में महाभारत के बाद जब कृष्ण जीवन-मृत्यु, सत्ता और काल के विराट प्रश्नों से जूझ रहे होते हैं, तभी बलराम उनसे एक प्रश्न पूछते हैं – “यदि तू चाहता तो युद्ध रुकवा सकता था फिर भी इतना भीषण संहार क्यों होने दिया?”

हमेशा मुस्कुराकर उत्तर देने वाले कृष्ण इस सवाल के जवाब में बिना मुस्कुराए कई तर्क देते हैं। जिसमें एक यह भी था–  “जब कंस वध के बाद जरासंध हमारा जीना हराम कर रखा था तब हस्तिनापुर और अन्य राज्यों नें अपनी आंखें बंद कर ली थी। उनके नाक के नीचे मथुरा पर एक के बाद एक सत्रह आक्रमण हुए और वे चुप-चाप देखते रहे। हमें विवश होकर अपने पूरे यदुकुल के साथ द्वारका भागना पड़ा। मैनें तभी तय कर लिया था कि जब मौका मिलेगा मैं इन सभी को ज़रूर सबक सिखाउंगा।”

फोटो आभार: UNHCR Syria

यदि संकट के समय नज़रअंदाज़ किए जाने पर स्वयं भगवान ऐसा सोच सकते हैं तो सीरिया में मचे कत्ल-ए-आम में मारे जा रहे लोग और उनके परिजन दुनिया के बारे में क्या सोच रहे होंगे? एक तानाशाह 2011 से ही अपने लोगों की हत्याएं करा रहा है और बड़े-बड़े देश या तो वहां अपना दांव खेलने में लगे हैं या मूक दर्शक बने हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से 2015 के बीच वहां ढाई लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है और पचास लाख से ज़्यादा लोग बेघर हुए हैं। अगस्त 2015 के बाद से संयुक्त राष्ट्र ने मरने वालों की संख्या को अपडेट करना बंद कर दिया है। मानवाधिकार संगठनों की मानें तो वहां अब तक 5 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए हैं। पिछले दस दिनों में ही साढे पांच सौ से अधिक लोगों की मौत हुई है। मरने वालों में 130 बच्चे और बड़ी तादात में महिलाएं शामिल हैं। करीब ढाई हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं और इलाज न मिलने की वजह से दम तोड़ रहे हैं।

इतना ही नहीं जो लोग वहां राहत देने के लिए जा रहे हैं वो भी दरिंदों जैसा बर्ताव कर रहे हैं। राहत कैंपों में महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है। ‘वॉयसेस फ्रॉम सीरिया-2018’ नामक रिपोर्ट में इस तरह की कई घटनाओं का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से मदद पहुंचा रहे पुरुष राहतकर्मी, सेक्स के बदले भोजन बेच रहे हैं। खाने-पीने की सामग्री मिलती रहे इसलिए कई जगहों पर तो महिलाएं और लड़कियां मजबूरीवश अधिकारियों से शादी तक कर रही हैं।

फोटो आभार: फेसबुक पेज UNHCR Syria

इस बेबसी के आलम में जो युवा अपने घर परिवार को खत्म होते देख रहे होंगे उनके मन में भी कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के खिलाफ कुंठा पनप रही होगी। वे भी सोचते होंगे कि जब कभी मौका मिलेगा तो इस कत्लेआम और हैवानियत पर खामोश समुदाय को सबक ज़रूर सिखाएंगे।

वे भले ही कृष्ण जैसी कूटनीतिक चाल नहीं चल सकें, लेकिन नफरत की भावना तो उनके भीतर घर कर ही रही होगी। और इतिहास साक्षी है कि युवाओं की ऐसी मनोस्थिति का लाभ आतंकी संगठन उठाते रहे हैं। वे अत्याचार और कत्लेआम की याद दिलाकर युवाओं को भड़काते हैं और आतंक की दुनिया में आने के लिए उन्हें प्रेरित करते हैं। ऐसे में वैश्विक समुदाय को चाहिए कि वो जल्द से जल्द इस समस्या का ठोस हल निकालें। नहीं तो आज जो चिंगारी वहां के लोगों के मन में जल रही है, वह मौका मिलते ही विकराल रुप धारण कर सकती है।

फीचर्ड फोटो आभार: फेसबुक पेज  The Syria Campaign

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