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SSC प्रशासन के खिलाफ दिल्ली में स्टूडेंट्स के प्रदर्शन पर क्यूं है चुप्पी?

बीते तीन दिन से SSC मुख्यालय के बाहर युवा स्टूडेंट्स, SSC CGL (Tier-2) के प्रश्नपत्र और कुंजी लीक होने की सीबीआई जांच के लिए सड़क पर है, किन्तु SSC प्रशासन कुम्भकर्ण की नींद में सोया हुआ है। पिछले तीन दिनों से देश के युवा दिल्ली की सड़कों पर हैं।

वो युवा जिन्हें अपनी कक्षाओं में होना चाहिए, जिन्हें अपने कमरे में अपने पुस्तकों के साथ होना चाहिए, आज वो बैनर लिए, हाथों में तख्तियां लिए अपने साथ हुई ज़्यादतियों के खिलाफ, अपने हक़ के लिए सड़क पर हैं।

आखिर क्यों देश का भविष्य कहे जाने वाले युवा आज सड़क पर हैं? आखिर उनकी मांग अब तक क्यों नहीं मानी जा रही है? क्या उनकी मांग गलत है? यदि कोई छात्र अपने घर-परिवार से दूर रहकर छोटे से कमरे में सालों-साल रहकर अपना छोटा सा सपना पूरा करना चाहे, तो क्या ये भी उसका हक नहीं है?

छात्र-छात्राएं अपनी पढ़ाई, भूख-प्यास सबकुछ त्यागकर अपने हक के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सुनवाई का कोई गुंजाईश नहीं दिख रही है। जब देश के शिक्षित युवाओं का ये हाल है, तो जरा सोचिए कि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ किसान कहां से अपना हक ले पाते होंगे? उनकी बातें तो रास्ते में ही गौण हो जाती होंगी।

अपनी तत्परता, पारदर्शिता और समय पर परीक्षा कराने के लिए जाना जाने वाला SSC, आज सवालों के घेरे में है। दिन-प्रति-दिन रिक्तियों की कम होती संख्या एक और जहां अभ्यर्थियों के लिए समस्या का एक बड़ा कारण है, तो दूसरी और प्रश्नपत्र लीक होने जैसी घटनाएं युवाओं के भविष्य को अंधकार में डाल रही हैं। ऐसा लगता है जैसे SSC प्रशासन ‘शक्तिमान’ सीरियल के तमराज किलविष की तरह चुप रहकर ऐसा कह रहा हो कि ये ‘अंधेरा कायम रहे’।

आखिर क्या मज़बूरी है SSC की? वो आखिर क्यों प्रश्नपत्र लीक होने की जांच सीबीआई से क्यों नहीं करवाना चाहता? क्यों युवाओं की मांग पर त्वरित और संतोषजनक कार्यवाई नहीं हो रही है?

इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। क्या युवाओं को राजनीतिक पार्टियां सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती हैं ? उनके हक के लिए क्यों राजनीतिक दल खड़े नहीं हो रहे हैं?

JNU विवाद में तो कई नेता दूसरे ही दिन शाम होते-होते उनके द्वार पर माथा टेक आए थे। अभी जब अपनी एक सकारात्मक मांग, अपने हक़ के लिए युवा सड़क पर हैं, तो कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है। न टीवी मीडिया और ना अखबार, सब श्रीदेवी के गम में कहीं खोए से लगते हैं। युवाओं के साथ ये बेरुखी पूरे देश और समाज के लिए घातक है, जितनी जल्दी हो सभी वर्गों को अपनी गलती सुधारनी चाहिए और युवाओं के मांगो को बिना शर्त मान लेना चाहिए, आखिर स्वच्छ और पारदर्शी चयन प्रक्रिया उनका हक है।

फीचर्ड फोटो आभार: Lekhraj Singh

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