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गुब्बारों से किसी को चोट पहुंचाकर नहीं, खुशिया बांटकर मनाइए होली

‘होली रंगों का त्यौहार है।’ यही हम सब आज तक पढ़ते और पढ़ाते आए हैं। होली पर निबंध में भी लिखते आए हैं कि होली रंगों का त्यौहार है। हम तो रंगो की ही होली मनाते आए हैं लेकिन शहर में गुब्बारे की होली भी देखते हैं और इस तरह की होली कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है।

ये गुब्बारों की होली मुसीबत बन चुकी है। घर से निकलना मुश्किल कर दिया है इस तरह की होली ने। जहां जाओ वहीं गुब्बारों की वर्षा शुरू हो जाती है।

लोगों को इससे कोई लेना-देना नहीं रहता कि आप किस मूड में हैं? आप किसी परेशानी से कहीं जा रहे हैं या किसी ज़रूरी काम से, उन्हें तो बस बेवजह गुब्बारे मारने होते हैं। अब ज़रा आप ही सोचिए कि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में आप गीले हो गए, अब कितना अजीब लगता है कि आधे गीले होकर हम सफर करें?

इतना ही नहीं बसों और रिक्शों पर भी लोग गुब्बारे फेंकते हैं। कैसे रोके इन्हें ? जिस तरह से दीपावली पर पटाखे की बिक्री बंद हुई थी उसी तरह होली पर भी गुब्बारों की बिक्री बंद कर देनी चाहिए।

ये कल की ही बात है, बस न आने की वजह से मैं बैट्री रिक्शे में बैठ गई। कुछ दूर जाने के बाद अचानक एक-एक कर गुब्बारे बरसने लगे, रिक्शे वाले ने रिक्शा भगाया लेकिन एक गुब्बारा मेरे सामने बैठी लड़की के सीधे कान पर जा कर लगा। कुछ ही देर में उसका कान लाल होकर सूज गया और उसके कान में दर्द शुरू हो गया। ज़ाहिर सी बात है कि इतनी दूर से गुब्बारा लगने पर चोट भी लगती है और आंख-नाक में पानी भी चला जाता है। लेकिन उस लड़की को जो नुकसान हुआ, उसे जो शारीरिक दर्द हुआ और आगे चलकर अगर उसे कानों की समस्या होती है, तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?

हम ही ज़िम्मेदार हैं इसके। बचपन से देख रही हूं कि लोग गुब्बारे खरीदकर दे देते हैं बच्चों को कि लो पानी भरो और मारो। कोई इन्हें मना भी नहीं करता इस तरह से गुब्बारे मारने पर। आप और हम अपने ही परिवार के बच्चों को मना नहीं करेंगे तो अन्य बच्चों को कैसे मना कर सकते हैं। लोगों से बात करो तो कहते हैं कि खुशी मना रहे हैं यार, तुमको क्या दिक्कत है? अब खुशी मनाने के और भी तो तरीके हैं ना! एक यही तरीका तो नहीं रह गया।

कैसी शिक्षा दे रहे हैं हम अपने बच्चों को? जो आज सिखा रहे हैं वही बड़े हो कर भी वो करेंगे। केवल बच्चे ही नहीं कुछ बड़े भी इस तरह से गुब्बारे मारने का काम करते हैं, निःसंदेह उन्हें भी बचपन में ही गुब्बारे थमा दिए गए होंगे। बदलाव प्राथमिक स्तर से ही होता है, इसलिए घरों में रंग लाएं, पिचकारी लाएं लेकिन गुब्बारे न लाएं।

किसी को परेशान कर हम खुश होते हैं! यह तो हिंसक तरीके से उत्सव मनाना हुआ, जहां दूसरे को चोट पहुंचाकर हम खुश हो रहे हैं।

मुझे तो वही होली पसन्द है जिसे हम बाल्टी में पानी भरकर और पिचकारियों से खेला करते थे। एक दूसरे को गुलाल लगाकर खुशियां साझा करते थे, पकवान खाकर दोस्तों संग मस्ती किया करते थे। बड़ों का आशीर्वाद लिया करते थे और शाम को नए कपड़े पहनकर घूमने जाते थे। होली रंगो का त्यौहार है जो खुशियों की सौगात लाता है तो इसे क्यों न हम खुशियों के संग ही मनाएं, किसी को परेशान करके नहीं।

फोटो आभार: getty images 

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