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‘शी जिनपिंग विचार’ नया समाजवाद या चीन में नई तानाशाही की शुरुआत?

ब्रिटिश पत्रकार एवं राजनीति वैज्ञानिक सी.ई.एम. जोड (C.E.M. Joad) का एक प्रसिद्ध कथन है, “समाजवाद एक ऐसी टोपी है, जिसे लोग अपने अनुसार पहन लेते हैं, अतः इसका कोई निश्चित स्वरूप नहीं है।” चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने समाजवाद की सबसे नई परिभाषा दी है जो एक राष्ट्रवादी समाजवाद है।

साम्यवादी चीन के निवर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नया राजनीतिक सिद्धांत प्रतिपादित और घोषित किया है, जो कि अब तक चीन का राष्ट्रीय राजनीतिक सिद्धांत बन चुका है।

‘शी जिनपिंग थॉट’ शीर्षक वाली राज्य की नई समाजवादी वैचारिक अवधारणा चीन के सरकारी मीडिया से लेकर स्कूल, कॉलेज, इंटरनेट और टीवी तक का अधिग्रहण कर चुकी है और संभावित रूप से यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में संविधान की प्रस्तावना में भी जगह पा जाएगी। चीन का नया समाजवाद काफी हद तक राष्ट्रवादी है और चीन के 5000 वर्ष पूर्व गौरव के उत्थान की बात करता है।

शी जिनपिंग के नए राजनीतिक सिद्धांत का आधिकारिक एवं पूरा नाम ‘Xi Jinping Thought on Socialism with Chinese Characteristics for a New Era’ है। नए सिद्धांत के ज़रिये शी जिनपिंग अपने नागरिकों से एक नए चीन के निर्माण का वादा कर रहे हैं। एक नया चीन जो राष्ट्र के पुरातन गौरव को वापस लाएगा। एक राष्ट्र जिसके गौरवशाली अतीत में कंफ्यूसियस एवं माओ थे। शी जिनपिंग ने इसी नए सिद्धांत के ज़रिये राष्ट्रपति के तौर पर अपने कार्यकाल के लिये पूर्वनिर्धारित 10 वर्षों की समय सीमा को हटा दिया है। अब वो निर्बाध रूप से आमरण चीन के राष्ट्रपति बने रह सकते हैं।

शी जिनपिंग का नवीन राजनीतिक सिद्धांत मुख्यतः 3 चीज़ों को और मजबूत बनाने की बात कहता है। पहला राष्ट्र, दूसरा- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और तीसरा खुद शी जिनपिंग।

इस राजनीतिक सिद्धांत के ज़रिये शी जिनपिंग ने लोकतंत्र पर करारा प्रहार किया है और लोकतंत्र को पाश्चात्य देशों के राज करने की पद्धति बताया है। राष्ट्र की संप्रभुता के लिये चीन के अखबार, टेलीविजन, मीडिया, इंटरनेट आदि पर सरकार की पूरी सेंसरशिप रहेगी। कम्युनिस्ट पार्टी को मिलने वाली किसी भी छोटी या बड़ी चुनौती को एकीकृत चीन के लिये खतरा माना जा रहा है।

चीन बुनियादी तौर पर अन्य सत्तावादी तानाशाह राज्यों से अलग रहा है। 1978 के बाद से प्रत्येक राष्ट्रपति के लिये 10 साल की अवधि को निर्धारित कर दिया गया था। इसके विपरीत दुनिया के अन्य सत्तावादी राज्यों में एक व्यक्ति का शासन हुआ करता था, जैसे लीबिया, जिम्बाब्वे आदि। चीन की सत्तावादी शासन प्रणाली की सफलता उसके सत्ता परिवर्तन के कारण भी है।

चीन में राष्ट्रपति के लिये सीमा निर्धारण के ऐतिहासिक कारण रहे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव माओ के एकक्षत्र राज ने चीन को आर्थिक विपन्नता के साथ ही सांस्कृतिक क्रांति का बड़ा दंश दिया है।

माओ की तानाशाही से सीख लेते हुये उनके बाद के उत्तराधिकारियों ने 10 वर्ष की समय-सीमा का नियम बनाया जो कि 3 राष्ट्रपतियों के कार्यकालों तक क्रियांवित होता रहा है।

चीनी राष्ट्रपति ने अपनी मनोभावना ज़ाहिर नही की है, मगर वो जीवनपर्यंत राष्ट्रपति बनने का सपना भी पाले हुए हो सकते हैं। चीन की मीडिया उनको ‘लिंगशिन’ कह रही है जो कभी माओ के लिये प्रयुक्त होता था। उनकी तुलना अब माओ से हो रही है, माओ जो आजीवन चीन के सर्वेसर्वा बने रहे। चीन दुनिया का आखिरी मजबूत वामगढ़ है, किंतु अब चीन में इस नए राजनीतिक सिद्धांत ने दखल दे दिया है। एक ऐसा समाजवाद जो अपने स्वरूप से ज़्यादा राष्ट्रवादी है।

फोटो आभार: फेसबुक पेज Xi Jinping

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