सुनने में आ रहा है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने निर्णय लिया है कि बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर के नाम के साथ, उनके पिता का नाम ‘रामजी’ जोड़कर पूरा नाम लिखा जाएगा। ‘भीमराव रामजी अम्बेडकर’ सभी सरकारी कार्यों में लिखा जाना सुनिश्चित किया गया है।
सरकार में कुछ लोगों का तर्क है कि हम ने बाबासाहब का पूरा नाम लिखना सुनिश्चित इसलिए किया है क्योंकि वो हमेशा इसी नाम का प्रयोग करते थे। उन्होंने संविधान पर हस्ताक्षर करते समय इसी पूरे नाम का प्रयोग किया था। उनकी फोटो भी हर डिपार्टमेंट में लगाना सुनिश्चित किया गया है।
हम सभी जानते हैं, बाबासाहब ने सन 1956 में अपने पूर्व धर्म से दुःखित होकर अपने लोगों को समान अधिकार, सम्मान, न्याय दिलाने के लिए बुद्ध धर्म को अपने लाखों अनुयाइयों के साथ अपना लिया था और 22 प्रतिज्ञाएं ली थी। बाबासाहब आजीवन शोषितों, पीड़ितों, दलितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए कार्य करते रहें।
“बाबासाहब व्यक्ति पूजा में नहीं बल्कि विचारों में विश्वास करते थे”
ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा ये तर्क दिया जाना कि हम बाबासाहब का पूरा नाम लिखना और सभी डिपार्टमेंट में उनकी फोटों लगाना चाहते है, तो उनके ही विचारों के अनुसार, उनके विचारों की हत्या है। बाबासाहब का सपना था सभी वर्गों को समान अधिकार, न्याय मिले और सभी का प्रतिनिधित्व हो और एक मज़बूत राष्ट्र का निर्माण हो।
वर्तमान राजनीति में बाबासाहब का खूब प्रयोग किया जाता हैं। उनके नाम का नारा लगाया जाता है, मंचों पर फोटों लगाई जाती हैं। लेकिन उनके विचारों पर अमल नहीं किया जाता। लेकिन जब से उत्तर प्रदेश सरकार ने नाम में रामजी जोड़ने का निर्णय लिया है तब से ज़हन में एक सवाल उठता है कि क्या बाबासाहब का हिन्दुकरण किया जा रहा है? या यह वर्तमान में तत्कालीन मुद्दे, SC-ST एक्ट का माननीय न्यायालय के निर्णय से कमज़ोर होना, विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने से उत्पन्न नयी स्थिति एवं आरक्षण को सीमित कर देना जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने का तरीका है?
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