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मैं लिखता हूं, और सभी युवाओं को लिखना चाहिए ताकि देश का लोकतंत्र बचा रहे

हिटलर के समय के एक लोकप्रिय कवि मार्टिन नीमोलर की कविता है,

पहले वो साम्यवादियों के लिए आए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था
फिर वे आए श्रमिक संगठन कार्यकर्ताओं के लिए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं श्रमिक संगठन कर्मी नहीं था
फिर वे आए यहूदियों के लिए
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वे मेरे लिए आए
और तब तक
बोलने के लिए कोई नहीं बचा था

अब इसे थोड़ा वर्तमान संदर्भ में देखें…

पहले उन्होंने लेनिन की मूर्ति तोड़ी, हममें में से बहुत से लोग चुप रहे क्योंकि हम कम्युनिस्ट नहीं थे। फिर उन्होंने पेरियार की मूर्ति तोड़ी, हममें में से बहुत से लोग चुप रहे क्योंकि हम पेरियार के अनुयायी नहीं थे। फिर उन्होंने अम्बेडकर की मूर्ति तोड़ी, इस बार भी हममें से बहुत से लोग चुप रह गए क्योंकि अम्बेडकर उनके राजनीतिक प्रतीक नहीं थे। फिर वे गांधी की मूर्ति तोड़ने पर आमादा हो गए। हममें से बहुत से लोग अब भी चुप हैं क्योंकि हम गांधीवादी नहीं हैं। लेकिन कब तक चुप रहेंगे हम सब?

अखलाक को मार दिया गया, पानसरे, कालबुर्गी और दाभोलकर मार दिए गए, गौरी लंकेश मार दी गईं, जस्टिस लोया की हत्या कर दी गई।
ध्यान से देखिए, सावधानी से देखिए, ये आततायी हैं, वे हिटलर और मुसोलिनी के पुजारी हैं। वे गोयबल्स की संतानें हैं जो मानते हैं कि एक झूठ को सौ बार ज़ोरदार ढंग से बोलो तो वह सच हो जाता है।

वे अपने खिलाफ उठ रही हर आवाज़ को कुचल देना चाहते हैं। वे हर उस विचार को खत्म कर देना चाहते हैं जो उनकी अपनी विचारधारा से मेल नहीं खाती। उन्होंने गांधी की हत्या करके देख लिया कि गांधी को मारने से गांधी के विचार खत्म नहीं हो सकते। उन्होंने लगातार झूठ फैलाने के बाद भी देख लिया कि जवाहर लाल नेहरु इस देश के रग-रग में इस कदर समाए हुए हैं कि उनके विचारों को, उनकी समाजवादी परिकल्पनाओं को और उनके योगदान को कभी खत्म नहीं किया जा सकता। और ना बाबा साहब अम्बेडकर, वल्लभभाई पटेल से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी जी के योगदान को भुलाया जा सकता है।

इसलिए अब वे लोकतंत्र की हत्या करना चाहते हैं। हम जिस संविधान पर गर्व करते हैं वे उसकी हत्या करना चाहते हैं। वे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को दुश्मन की तरह देखते हैं और साबित करने की कोशिश करते हैं कि जो उनके खिलाफ हैं वह देश के भी खिलाफ हैं। देशद्रोही है।
मुझे हमेशा इस बात पर गर्व रहेगा कि इस देश को काँग्रेस ने अंग्रेज़ों के चंगुल से मुक्त कराया और एक ऐसे संविधान के साथ जनता को सौंप दिया जिसमें सबको बराबरी का हक है। वो कांग्रेस के हमारे पूर्वजों की ही सोच थी कि यह देश जवानों और किसानों का होगा, सिखों और ईसाईयों का होगा, हिंदुओं और मुसलमानों का होगा, गरीब मज़दूरों और धनाड्यों का होगा, स्त्रियों और पुरुषों का होगा।

लेकिन वे हमारी साझा संस्कृति को ख़त्म कर देना चाहते हैं और हमारी धार्मिक सहिष्णुता को समाप्त कर देना चाहते हैं। वे संवैधानिक संस्थाओं को खत्म करके उस पर एकाधिकार चाहते हैं। वे हर संविधानिक संस्था पर लहरा रहे तिरंगे को उतारकर उस पर भगवा लहराना चाहते हैं।

वे प्रेस की आज़ादी छीन रहे हैं, पत्रकारों को जेल भेजा जा रहा है और मनमाफिक खबरें ना छापने पर संपादकों को हटाया जा रहा है, मानहानि के मुकदमे किए जा रहे हैं और मीडिया पर छापे डलवाए जा रहे हैं। विरोध करने पर जान गंवाने का खतरा बना हुआ है। न्यायाधीशों को डरा-धमका रहे हैं और यहां तक कि उनकी हत्या करवा रहे हैं, वे अधिकारियों को कठपुतलियों की तरह अपने इशारे पर नचाना चाहते हैं।
वे अपनी सुविधा से परिभाषाएं बदल रहे हैं और अपनी नई परिभाषा गढ़ना चाहते हैं।

वे पांवों में फफोलों के साथ मीलों मील पैदल चलकर आ रहे किसानों को शहरी माओवादी ठहरा सकते हैं। वे जंगलों में हज़ारों बरसों से रह रहे आदिवासियों को विकास में बाधा की तरह पेश कर सकते हैं। और सदियों से भेदभाव झेल रहे दलितों को देशद्रोही तक करार दे सकते हैं।

वे युवाओं को रोज़गार देने की जगह छद्म राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं और उन्हें लगातार बहका कर उनके भीतर ज़हर भर रहे हैं। वे किसानों को उनकी उपज का डेढ़ गुना मूल्य देने का वादा तो करते हैं लेकिन वे लगातार षड्यंत्र कर रहे हैं कि किसान पूरी तरह से संसाधन विहीन हो जाए। यह सच किसी से छिपा नहीं है कि किसानों की ज़मीनें उनके शासन में लगातार छीनी गई हैं और वहां किसान लगातार मज़दूरों में तब्दील हो गए हैं।

यह सर्वविदित है कि आदिवासियों का शोषण उनके शासनकाल में लगातार बढ़ा है और उन्हें कभी माओवादी बताकर मारा जा रहा है तो कभी विकास में बाधक बताकर जंगलों से हटाया जा रहा है।
तो, ये कौन लोग हैं?

वे कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनकर आते हैं तो कभी विश्व हिंदू परिषद तो कभी बजरंग दल तो कभी भारतीय जनता पार्टी। दरअसल वे तरह तरह के भेष में एक ही हैं। वे इस देश को वैसा नहीं रहने देना चाहते जैसा कि यह देश सदियों से रहा है।

तो यह देश किसका है? आरएसएस, भाजपा, बजरंग दल और विहिप का, या शिवसेना और करणी सेना का? तो क्या यह देश इन लोगों का है। कतई नहीं, यह देश भारतीयों का है।

ये देश हम सबका देश है। खासकर ये युवाओं का देश है, हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम इस समय दुनिया के सबसे युवा देश हैं। यहां आबादी का 50 प्रतिशत 25 वर्ष से कम आयु का है और 65 प्रतिशत आबादी की औसत आयु 35 वर्ष से कम है।
इन अर्थों में देखें तो देश में फैसला लेने वाली आबादी युवा है। लेकिन यह कितनी बड़ी विडंबना है कि युवा या तो खामोश है या दिग्भ्रमित है। वह सवाल नहीं पूछ रहा है, वह चुप है, क्यों चुप हैं युवा?

याद रखिए युवा साथियो कि सवाल न पूछना और चुप रहना भी गुनाह में शुमार होता है। याद है ना आपको राष्ट्रकवि दिनकर की कविता… ‘जो तटस्थ रहेगा, समय लिखेगा उनका भी इतिहास?’

हमें तटस्थ नहीं रहना है, हमें चुप नहीं रहना है, हमें सवाल पूछने हैं, चाहे वो सवाल अपनी कक्षाओं में पूछने पड़ें, अपने घरों में पूछने पड़ें या अपनी बिरादरी, समाज में पूछने पड़ें या फिर अपने राजनेताओं से पूछने पड़ें। हमारा समाज सवालों का आदी नहीं है, लेकिन खतरे तो उठाने पड़ेंगे। सवाल उठाने पड़ेंगे और ज़रूरत पड़े तो उन सवालों के जवाब भी खुद ही मुहैया करवाने होंगे।

युवा साथियों को नेतृत्व संभालना पड़ेगा, इस राजनीति में हस्तक्षेप करना ही होगा, वरना हम घुन से साथ पिस जाएंगे। हमारा संकट है तो हल हमें ही निकालना पड़ेगा। और इस माहौल में खुलकर, बेझिझक, निडर होकर लिखना एक बड़ा विकल्प बन सकता है। मैं लिखता हूं क्योंकि मैं निडर हूं और Youth Ki Awaaz मेरे निडर विचारों को बेझिझक जगह देता है।

इस समय के सबसे निडर और सबसे खरे शायर राहत इंदौरी के शब्द उधार लेकर कहता हूं,

ना हमसफ़र, ना हमनशीं से निकलेगा
हमारे पैर का कांटा हमीं से निकलेगा

‘Youth Ki Awaaz’ ने सफलता पूर्वक दस वर्ष पूरे कर लिए, यह एक शुभ संकेत है। इस आवाज़ को ताकत मिले और वह देश के सारे युवाओं की आवाज़ बने, ऐसी मेरी इच्छा, आकांक्षा और शुभकामनाएं हैं।
इस अवसर पर अंशुल जी को भी मेरी ओर से बहुत सी बधाइयां।

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