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तथागत बुद्ध के सामान्य व्यक्तियों को सुखशांति एवं सम्मान से जीने के लिए उपदेश

संसार का प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सुख-शांति और सम्मान के साथ जीना चाहता है। इसी के लिए वह जीवनभर प्रयासरत रहता हैं। भगवान बुद्ध का धम्म(धर्म) भी इन्हीं प्रयासों की विराट चेष्ठा है।

सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) के समकालीन समाज से आज का समाज भिन्न हैं। उस समय सामाजिक भेदभाव ऊँच-नीच, कर्मकांड, बहुदेवतावाद, पाखंड, राजनीतिक विषमता विद्यमान थी। राजा एक-दूसरे पर विजय प्राप्त करने के लिए अक्सर आक्रमण करते-रहते थे।

गौतम बुद्ध ने व्यावहारिक ज्ञान को अधिक महत्व दिया, इस कारण उन्होंने आत्मा परमात्मा, ईश्वर जैसे निरुपयोगी विषयों को छोड़कर व्यावहारिक जीवन पर विशेष बल दिया। पी लक्ष्मी नरसू लिखते हैं “बौद्ध धर्म का आदर्श न स्वर्ग है और न किसी परमात्मा या ब्रह्म में लीन होना है। उस का आदर्श है।

आदमी के लिए, अपने मानसिक तथा नैतिक जीवन को लेकर आत्म संयम और आत्म-विकास के माध्यम से एक आश्रयस्थल का निर्माण कर लेना बौद्ध को संसार की प्रकृति की उतनी चिंता नहीं जितनी उस के व्यावहारिक पक्ष की।”

इसी प्रकार गाँधी जी ने लिखा है “बुद्ध ने असली ईश्वर को फिर से उसके उचित स्थान पर बिठा दिया, और जिस अनधिकारी ईश्वर ने वह सिंहासन हथिया लिया था उसे पदच्युत कर दिया।” संसार में करुणा, मैत्री, सद्भाव, समरसता लाने के लिए भगवान बुद्ध ने लोगों को पंचशील सिद्धांत पालन करने के लिए प्रेरित किया।

पंचशील सिद्धांत में उन्होंने निम्न बातों को सामिल किया।

1. अहिंसा (प्राणतिपात विरति) मन वचन कर्म से किसी को दुःख न पहुँचाना।
2. सत्य (मृषावाद विरति) सत्य वचन बोलना।
3. अचौर्य (अदत्तादान) चोरी नहीं करना।
4. ब्रह्मचर्य (कममिथ्याचार विरति) ब्रह्मचर्य वृत्त का पालन करना एवं विवाहित होने पर अपनी स्त्री से ही संतुष्ट रहना।
5. माधक पदार्थो का सेवन न करना (सुरमद्द मेरेयाविति)।

पंचशील को प्राप्त करने के लिए उन्होंने अष्ठागिक मार्ग उपदेश दिया। बुद्ध ने उपदेश दिया यदि कोई अष्ठागिक मार्गों का पालन करे तो वह अपने जीवन को सुखमय जी सकता है। सुखमय जीवन जीने के लिए यज्ञ तपस्या, भूखे-प्यासे रह कर साधना करने की जरूरत नहीं है।

1. सम्यक् दृष्टि (चार आर्य सत्य में विश्वास करना)
2. सम्यक् संकल्प (जो कर्म करने योग्य नहीं हैं, नहीं करने का संकल्प लेना तथा मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना)
3. सम्यक् वचन (झूट न बोलना एवं कठोर शब्दों का प्रयोग न करना)
4. सम्यक् आचरण (बुरे कर्मों से दूर रहना)
5. सम्यक् आजीविका (उचित जीविका का पालन)
6. सम्यक् व्यायाम (सदैव सकारत्म कार्यों के लिए प्रयास करना)
7. सम्यक् स्मृति (ज्ञान ग्रहण करना)
8. सम्यक् समाधी (राग, द्वेष और मोह से मुक्त अवस्था)

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