मशहूर थी हमारी दोस्ती की मिसाल हिंदुस्तान मेे, नेताओं ने हमें बांट के हिंदू और मुसलमान बना दिया।
हुई अजाने मगरिब की आवाजें घर में जाती थी , पंडित की घर की औरतें भी तभी दिया जलाती थी।
सुख-दुख हो या शादी हो मिलकर सब बनाते थे, जाति धर्म का फर्क नहीं था सब रिश्ते में आते थे।
अब मंदिर की मीनारें हैं क्यों मस्जिद की दीवारें हैं, खत्म हुआ सब रिश्ता नाता हाथ में सबके तलवारें हैं।
इन नेताओं के चक्कर में रिश्ता हमारा टूट गया, होली, दिवाली, ईद मनाना साथ हमारा छूट गया।
मंदिर मस्जिद के नाम पर अपनों को ही काटा है, खून में कोई फर्क नहीं बस राजनीति ने ही बांटा है।