तत्काल परिस्थिति यानी 21वीं सदी में विश्व की आधी जनसंख्या अपनी रसोई बनाने के लिए लकड़ियों या गाय के गोबर से बनाये उपलों का इंधन के तौर पर उपयोग करती है। विश्व में 1.2 अरब जनसंख्या यानी दुनिया की आबादी के पांचवे भाग के लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिलाता है। हर साल विश्व में 10 लाख से अधिक बच्चों की मौत सिर्फ और सिर्फ अशुद्ध पानी पीने की वजह से होती है। हर साल 160 लाख हेक्टर जंगलों का नाश रसोई के उपयोग में लिए जाने वाली लकड़ियों के लिए किया जाता है। यानी औद्योगिक क्रांति और बाकि उपयोग के लिए की जाने वाली लकड़ियों के इस्तेमाल का हिसाब तो दूर ही रहा। इस नवयुग में हम ज़्यादा-से-ज़्यादा पुन:अप्राप्य ऊर्जा स्त्रोत का उपयोग कर रहे हैं और पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऊपर दर्शाये गए सभी ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर या सुझाव अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन इन सभी प्रश्नों का एक छोटा सा हल या सुझाव है, “सोलर कुकर”। जो सभी प्रश्नों का अंत: निराकरण कर सकता है, लेकिन पूरा नहीं।
अगर सोलर कुकर का उपयोग किया जाये तो दोपहर का खाना सही तरीके से बनाया जा सकता है। यानी दोपहर का खाना बनाने के लिए उपयोग में ली जा रही लकड़ियों का बचाव कर सकते हैं और पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण को भी कम कर सकते हैं। सोलर कुकर की मदद से पानी को उबालकर शुद्ध, पीने लायक बनाया जा सकता है। और इस तरह से गंदे पानी की वजह से हो रही मौतों की संख्या को भी घटाया जा सकता है। यानी पर्यावरण बचाने और पुन: प्राप्य ऊर्जा का उपयोग करने हेतु एक सुझाव या एक बदलाव के तौर पर ‘सोलर कुकर’ समाज व विश्व के लिए आशीर्वाद स्वरूप है।
लेकिन क्या बाज़ार में इस तरह के सोलर कुकर उपलब्ध हैं, जिसको ज़रूरतमंद व्यक्ति सहजता से खरीद सके? इस प्रश्न का उत्तर है नहीं। भारत में दो तरह के सोलर कुकर सालों से प्रचलित हैं। एक ‘बॉक्स के ढांचे वाला सोलर कुकर’ और दूसरा ‘परवलय (पेराबोला) सोलर कुकर’। अब सवाल खड़ा होता है कि क्या गरीब या मध्यम वर्गीय व्यक्ति इस प्रकार के सोलर कुकर को खरीद सकते है? अमीर या पैसे वाले व्यक्तियों का वर्ग इस सोलर कुकर को खरीद सकता है, लेकिन उन व्यक्तियों को सूर्य के ताप में खाना बनाना व्यवहार्य नहीं लगता। जबकि गरीब या मध्यम वर्गीय लोगों को सोलर कुकर खरीद कर खाना बनाने से फायदा हो सकता है, लेकिन वे उसकी ऊंची कीमत (बॉक्स सोलर कुकर की कीमत 2000 से 2500 रुपये और परवलय सूर्य कुकर की कीमत 7000 से 11000 रुपये) की वजह से खरीद नहीं सकते। इन समस्याओं का हल यही है कि ऐसे सोलर कुकर बनाये जाये जो किफायती दाम यानी 50 से 60 रुपये में घर बैठे बनाये जा सकें और इन किफायती सोलर कुकर से घर के 5 से 6 व्यक्तियों के लिए रसोई बनाई जा सके।
सैयद अलज़ुबैर ने पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री “थर्मल इंजीनियरिंग” में और ग्रैजुएशन की डिग्री “मैकेनिकल इंजीनियरिंग” में प्राप्त करने के बाद प्रध्यापक के तौर पर महाविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। लेकिन गांव की समस्याएं उन्हें आंख में चुभती थी। आखिरकार अपने पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने उनके छात्र वीरेन्द्र धाखड़ा के साथ मिलकर किफायती, कार्यक्षम और सुवाह्य सोलर कुकर के प्रचार प्रसार को सामाजिक दायित्व समझकर समाज में बदलाव लाने के लिए एक अभियान शुरू किया। इस अभियान में उस प्रकार के सोलर कुकर का प्रचार प्रसार किया जाता है जो कागज़ के पुठे की मदद से घर में प्राप्त रद्दी वस्तुओं से बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार के सोलर कुकर की विशेषता ये है कि बच्चों से लेकर अशिक्षित महिलाएं भी घर बैठे इस प्रकार के सोलर कुकर को बना सकती हैं। इस अभियान के अंतर्गत सैयद अलज़ुबैर और वीरेन्द्र धाखड़ा मिलकर विविध विद्यालय, महाविद्यालय, स्वंसेवी संस्थाए, गांव और आदिवासी इलाकों में बिना मूल्य प्रशिक्षण, सेमिनार, कार्यशाला और लाइव प्रदर्शन के द्वारा जागरूकता लाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तक वे 50 से 55 कार्यशालाओं का आयोजन कर चुके हैं और 1500 से ज़्यादा महिलाओं को सोलर कुकर का प्रशिक्षण कार्य करके महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहन दे रहे हैं। आज तक ये सब प्रशंसनीय कार्य उन्होंने किसी संस्थान या व्यक्ति के सहयोग के बिना मुमकिन किया है।
(फोटो प्रतीकात्मक है।)