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“तुम्हारा भगवान मेरी सहेली को नहीं बचा पाया, मैं कैसे सुरक्षित मानूं खुद को”

एक आठ साल की बच्ची। जिसकी मासूम तस्वीर देखते ही मैं आंखें बंद कर ले रही हूं। उसके लिए इंसाफ मांगने वाले लोगों के शब्दों को पढ़कर खुद को रोने से रोक नहीं पाती। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है। मुझसे कुछ लिखा भी नहीं जा रहा। मैं बस चिल्लाकर जी भर रो लेना चाहती हूं। मैं एक इंसान होने के नाते सदमे में हूं। मुझे एक औरत होने के कारण बौखलाहट हो रही है। लेकिन मैं एक बच्ची को महसूस करने के लिए, एक बच्ची हो गई हूं। बचपन में मेरे शरीर पर पड़े वो तमाम हाथ, जिन्होंने मेरे शरीर का अनादर किया, मुझे वो सारे दैत्य हाथ, वो घिनौने चेहरे, जो आज भी मेरे आस-पास हैं, याद आने लगते हैं।

मेरी इस बेचैनी का कारण बेहद निजी हो जाता है। मैं ऐसी हर खबर पर यही महसूस करती हूं। मैं जो महसूस करती हूं वो क्रोध या घिन्न से ज़्यादा है। मैं इस समय जितनी दुखी हूं, उससे कई गुना ज़्यादा खुद को हिंसक महसूस करती हूं। मैं आस-पास की चीज़ें तोड़ देना चाहती हूं। लोगों से नफरत होने लगती है। मुझे लगता है मैं गहरे अवसाद से गुज़र रही हूं। मैं सोचने से भी डर जाती हूं कि कठुआ की उस बच्ची ने कितनी क्रूरता झेली उन सात दिनों में। लेकिन फिर भी वो बच्ची मेरे दिमाग में बैठी हुई है।

हर बच्ची को देख अपना घटिया बचपन याद आने लगता है मुझे। वो डर, जिसपर आज भी अख्तियार होना नामुमकिन लगता है, मेरे ज़हन से जाता नहीं। बाहर ठंडी हवा चल रही है। बालकनी से नीचे देखती हूं, कई छोटी बच्चियां खेल रही हैं। कोई चार-पांच साल की है, कोई आठ-दस की, कोई थोड़ी और बड़ी लगती है। छोटे लड़के भी हैं, मेरे कैंपस में एक मंदिर है। मेरी बालकनी के ठीक सामने। मैं पूजा नहीं करती। पर औरतों को आते-जाते देखा करती हूं, साथ में ये बच्चियां भी होती हैं। हंसते खिलखिलाते वो औरतें और ये बच्चियां मंदिर से निकलती हैं। मैं इस मंदिर में कभी नहीं गई। मुझे नहीं पता अंदर किस भगवान की मूर्ति है। मैं सोचने की कोशिश करती हूं कि आखिर वो बच्ची जिस मंदिर में एक आठ साल की बच्ची से मांस का वो टुकड़ा बन रही थी जिसे गिद्धों ने बेहरमी से नोच-नोचकर खाया, उस मंदिर में कौन से भगवान की मूर्ति होगी? ये भगवान तो इंसानों से ज़्यादा लाचार है।

उन हैवानों ने क्या सोचा होगा? क्या सोचकर वो उस बच्ची को उसी भगवान के सामने ले गए? क्या उन्हें भी मंदिर सुरक्षित जगह लगी होगी? क्या मंदिर में बच्ची का रेप करते हुए भी ‘हे भगवान’ बोला गया होगा? ‘जय श्री राम’ या ‘जय माता दी’ के नारे लगाए गए होंगे? ये भगवान हैवानों के अंदर भी बसता है क्या? मुझे नहीं पता उस पत्थर की मूर्ति ने कितना लाचार महसूस किया होगा लेकिन क्या उस मंदिर में जानेवाली छोटी बच्चियों की आस्था चीख-चीख कर नहीं रोई होगी? क्या उस मंदिर में एक हिन्दू अपनी बच्ची को भेज पाएगा? क्या कठुआ की छोटी बच्चियां वहां कदम रखने से डरेंगी नहीं? क्या कोई हिन्दू बच्ची उस मासूम 8 साल की बच्ची की सहेली नहीं थी? क्या वो अपने माँ-बाप से सवाल नहीं करेगी कि तुम्हारा भगवान तो मेरी सहेली को नहीं बचा पाया, तो मैं कैसे सुरक्षित मानू खुद को?

किस भगवान को पूजते हैं ये लोग जो भगवान के नाम पर रेप किया करते हैं? कितना बड़ा दैत्य है वो जो एक लगभग मर चुकी बच्ची को जान से मार देने के पहले एक आखिरी बार उसका बलात्कार कर लेना चाहता है? और आखिर किस जमात का हिस्सा हैं वो, जो बलात्कारियों के समर्थन में नारे लगाते हैं, विरोध करते हैं और सड़कों पर उतर आते हैं? क्या इनके घरों की लड़कियों ने इन्हें नहीं बताया कि समाज की नैतिकता धरातल में जा चुकी है और उन लड़कियों के शरीर पर भी हैवानों की नज़रें, उनके हाथ पड़े हैं?

सड़क पर बेशर्मी से बलात्कारियों का समर्थन कर रही महिलाओं को क्या उनका धर्म उस वक्त बचा लेता है जब वो इन हैवानों के हाथों लगती हैं? क्या उस मासूम की जगह कोई हिन्दू लड़की होती तो उसे मंदिर वाला वो भगवान बचा लेता? क्या किसी हिन्दू लड़की को सबसे ज़्यादा खतरा एक मस्जिद के भीतर है? कैसा धर्म है तुम्हारा, कैसी देश भक्ति है तुम्हारी कि तुम इसके नाम पर बलात्कार किया करते हो? और बलात्कारियों को बचाते हो? सिस्टम लोगों के लिए होता है। तुम जाहिलों का वो जमावड़ा बनते जा रहे हो जिसे सिस्टम और कानून और इंसाफ़ से कोई लेना-देना नहीं है। पशुओं जितनी नैतिकता भी नहीं बची तुम्हारे अंदर। क्या मुंह दिखाओगे अपने घरों की बच्चियों को? इंसाफ़ में भी धर्म आ जाया करेगा क्या अब इस देश में?

तुम बलात्कार हुई लड़की के बाप को मार दिया करते हो क्योंकि वो इंसाफ मांग रहा था। मुझे डर है उन्नाव की वो लड़की इंसाफ की रट लगाते-लगाते दम न तोड़ दे। तुम धर्म और सत्ता का अंधा, नंगा, हैवानियत भरा नाच कर सकते हो। ऐसा होते हुए मूक बन देख सकते हो। तुम बेटी पाल नहीं सकते। उसे बचा नहीं सकते। उसे इंसाफ़ नहीं दिला सकते।

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