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“माफ कीजिए कटियार साहब, मैं हिन्दू हूं लेकिन मंदिर के लिए शहादत नहीं दे सकता”

आदरणीय विनय कटियार साहब मैं क्षमाप्रार्थी हूं, मुझे माफ कीजिएगा। मैं हिन्दू हूं किन्तु मंदिर के लिए शहादत नहीं दे सकता। क्योंकि मेरे शहादत से ज़्यादा जीवित रहना ज़रूरी है। मेरे देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी भूखे सोता है। दुनिया की सबसे बड़े झुग्गियों का बसेरा हमारे ही यहां है, तन पर कपड़े नहीं है लोगों के, ना सर छुपाने को छत। सिग्नल पर, स्टेशन पर भीख मांगते बच्चो को जब देखता हूं कटियार साहब तो शर्म से सर झुक जाता है कि सत्तर साल आज़ादी के बाद भी हमारे बच्चे सड़कों पर भीख मांग कर झूठा खाकर गुज़र-बसर करते हैं।

जिनके पेट में अन्न न हो वो क्या किताबों को टटोलेगा? नहीं कटियार साहब गंदे भद्दे कपड़ो में भूखे पेट भी सड़क के किनारे लगे किताबों को निहारते मैंने उन्हें देखा है, राजेंद्रनगर टर्मिनल (बिहार) पर कचड़े बीनने के बाद किसी सज्जन द्वारा ज्ञान प्राप्त करते देखा है। कटियार साहब मैं शहादत नहीं दे सकता, इस देश को युवाओं की ज़रूरत है, उन बच्चों को हमारी ज़रूरत है, मैं कैसे शहादत दे दूं कटियार साहब ?

आप कहते देश के यूनिवर्सिटियों में शिक्षक नहीं, शिक्षा व्यवस्था चौपट है, सरकारी स्कूलों से शिक्षक गायब है और उसकी लटके छते किसी को मौत के आगोश में लेने को तत्पर है, चलो साथ मिल कर उसके लिए आंदोलन करते हैं, देश के सभी राज्य सरकारों पर व्यवस्था को सही करने के लिए दबाब डालते हैं, मैं आपके साथ आता कटियार साहब, आपके साथ आता चाहे इसमें मुझे शहादत क्यों ना देनी पड़ती मैं आपके साथ हंसते-हंसते हो आता। लेकिन आप कह रहे हैं मंदिर के लिए शहादत दूं, तो वो हमसे नहीं हो पाएगा।

दिल्ली जैसे शहरों में हर आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है, देश की सड़कें आज भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। युवा रोज़गार के लिए सड़कों पर हैं, शिक्षक अपनी मांगों के लिए हड़ताल पर। कभी वैश्विक शिक्षा का केंद्र रहने वाला मेरा बिहार सरकारी शिक्षा की अंतिम सांसे गिन रहा है, अपने समृद्धि के लिए जाना जाने वाला मगध आज अपने नियति पर रो रहा है, धर्म-जाति की राजनीति की चोट खाया मेरा मगध आज औंधे मुंह गिरा पड़ा है। हे विनय कटियार साहब बताओ मैं भगवान राम को क्या जवाब दूंगा की उनकी जानकी की भूमि को इस हालत में छोड़ शहादत दे आया, एक मंदिर के लिए जबकि पूरे संसार के मालिक वो है, ये धरती ये आकाश, ये झरने ये नदियाँ, आप और मैं सब उन्हीं के तो बनाये हैं।

मंदिर तो प्रेम और श्रद्धा का प्रतिक है, फिर आपसी टकराव से, मनमुटाव से जो मंदिर निर्मित होगा क्या वहां रामलल्ला बसेंगे ? किसी को तकलीफ पहुंचाने के शहादत मुझसे नहीं हो पाएगा कटियार साहब। मेरा देश ही मेरा मंदिर है, यहां रहने वाले हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग मेरे भाई हैं, हम सबका एक ही नाता है वो है इंसानियत का और भारत इंसानियत का मंदिर है।

दुनिया का हर धर्म हमें इंसानियत, प्रेम और भाईचारा ही सिखलाता है, मंदिर, मस्जिद या गिरजाघर बनाना नहीं। जिस दिन देश में कोई गरीब भूखे नहीं सोएगा, किसी बच्चे का बचपन ट्रैफिक सिग्नल पर धूल नहीं फांकेगा, हर कोई एक दूसरे से प्यार मुहब्बत और भाईचारे से रहेगा, उसी दिन असल मायने में मंदिर बनेगा और रामलल्ला स्वयं विराजमान होंगे। देश को आगे बढ़ाने के लिए किया गया मेरा कार्य ही मेरी असली और सच्ची शहादत होगी। माफ कीजिएगा, मंदिर के लिए शहादत मुझसे नहीं होगा कटियार साहब।

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