सच यह भी है कि वर्तमान में देश की राजनीति में जो उतार-चढ़ाव लगातर देखने को मिल रहा है उससे 2019 के आम-चुनाव का पारा अभी से गर्म होने लगा है। फिलहाल 2019 से पहले कर्नाटक, राजस्थान और मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिससे केंद्र में आने वाली नई सरकार की तस्वीर बहुत हद तक साफ हो जाएगी।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का मंच तैयार हो चुका है। 12 मई को वोट पड़ेंगे और तीन दिन बाद नतीजे सामने होंगे। इसलिए चुनावी माहौल में जितनी आक्रमकता दिख रही है, उससे ज़्यादा दांवपेच पर्दे के पीछे चल रहे हैं। राज्य में चुनावी तारीख की घोषणा के पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा अपनी तैयारियों को धारदार बनाने में जुट गई थी। जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार कर्नाटक के दौरे कर रहे हैं, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तो लगभग वहीं डेरा डाले हुए हैं। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रैली कर चुके हैं। भाजपा का कर्नाटक चुनाव जीतना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि कर्नाटक के रास्ते भाजपा दक्षिण के राज्यों में अपनी उपस्तिथि दर्ज करके रणनीतिक अहमियत हासिल करना चाहती है। वहीं सिर्फ पांच राज्यों में सत्तारूढ़ रह गयी कांग्रेस के लिए यहां अस्तित्व बचाने की लड़ाई है।
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि कांग्रेस ने इस चुनाव को सिद्धरमैया बनाम नरेंद्र मोदी बना दिया है। जबकि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार वहां दौरे कर रहे हैं, मंदिर मठ भी घूम रहे हैं, लेकिन हर जगह सिद्धरमैया उनके साथ परछाई की तरह दिख रहे हैं। वहीं, भाजपा को स्टार प्रचारक के रूप में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी पर ही सबसे अधिक भरोसा है। जबकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी लगातार बैठके और रैलीयां कर रहे हैं। राज्य में नतीजे 15 मई को आएंगे लेकिन इतना तय है कि इसका परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव की दिशा ज़रूर तय कर देगा।
इसी के साथ-साथ पिछले कुछ मुद्दों और घटनाओं को भी नहीं भुलाया जा सकता। त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय चुनावों में भाजपा की सफलता जितनी आश्चर्यजनक है उतना ही दुखद त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा को तोड़ना और इसका विरोध करना है। लोकतंत्र की नज़र से यह स्थिति ठीक नहीं है। पहले की सफलता से गौरवान्वित भाजपा को उत्तर प्रदेश, बिहार के उपचुनाव परिणामों के साथ ही हिंसक घटनाओं से भी सीख लेनी चाहिए। यह देखा गया है कि राजीनीति में कोई किसी का स्थायी दुश्मन नहीं होता। यही स्थिति भाजपा के पराजय का प्रमुख कारण है। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सत्ता पक्ष को कुछ अच्छी नीतियों को तैयार करना होगा जिससे वह जनता के बीच जा सके। लगातार एक ही दल के सत्ता में होने के बावजूद इच्छित परिणाम नहीं मिलने पर जनता दूसरा विकल्प चुनती है, क्योंकि इस बार भाजपा केवल कांग्रेस के 70वर्ष के शासन का रोना रोकर चुनाव नही जीत सकती।
वहीं सरकार को जनता में भरोसा भी सुनिश्चित करना होगा जिससे लोग आर्थिक व्यवस्था, डाटा लीक, कृषि संकट, बेरोज़गारी, बढ़ते बैंक घोटाले, पत्रकारों की हत्याएं, दलितों पर अत्याचार, साम्प्रदायिकता और नारी सुरक्षा अर्थात बलात्कार जैसी घटनाओं को काबू करने पर सरकार के फैसलों को सराहा जा सके। अन्यथा गठबंधन की लहर चलने के साफ संकेत उत्तर प्रदेश उपचुनाव में इस बात का प्रमाण है कि जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए केवल जुमलेबाज़ी और धार्मिक उन्माद पैदा करने वाली राजनीति से काम नहीं चलेगा।