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सेल्फी एडिक्शन हमारे लिए कितना खतरनाक साबित हो रहा है?

केस 1 : 4 अप्रैल, 2018

भाजपा के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ग्रेटर नोएडा स्थित वेनिस मॉल में घूमने गये। वहां मॉल में बनी नहर में नौकायन कर रहे थे। उसी दौरान सेल्फी लेते वक्त भाजपा विधायक और सुरक्षाकर्मी पानी में गिर पड़े।

केस 2 : जून,2017

यूपी के कानपुर में गंगा बैराज में मौज-मस्ती के लिए गए सात छात्रों का सेल्फी क्रेज़ उनकी ज़िंदगी पर इस कदर भारी पड़ा कि इस चक्कर में उन सातों की डूब कर मौत हो गयी।

एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में सेल्फी लेने के दौरान होने वाली मौतें सबसे ज़्यादा भारत में (127) होती हैं। इसके बाद क्रमश: रूस (14) दूसरे, पाकिस्तान (12) तीसरे, यूएसए (09) चौथे और फिलीपिंस (05) पांचवे नंबर पर है।

यह आंकड़ा दरअसल एक शोध का हिस्सा है, यूएस की कारनेगी मेलन यूनिवर्सिटी और भारत के इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, दिल्ली (IIIT Delhi) द्वारा संयुक्त रूप से जिसे ‘मी, माइसेल्फ एंड किल्फी’ (Me, Myself and My Killfie) शीर्षक के तहत वर्ष 2014 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में सेल्फी लेने के दौरान हुई मौत के आंकड़ों के आधार पर प्रकाशित किया गया था।

चौंकाने वाली बात है कि मात्र 18 महीनों के अंदर सेल्फी के कारण दुनियाभर में हुई कुल मौतों में अकेले भारत में 60% यानी 76 मौतें हुई हैं।इस शोध की मानें, तो ज़्यादातर लोगों की मौत सबसे कूल टाइप की सेल्फी लेने के चक्कर में- खास तौर से ट्रेन के कारण हुई है। कभी कोई चलती ट्रेन की छत पर खड़े होकर सेल्फी लेने के चक्कर में मारा गया, तो कभी कोई आती हुई ट्रेन के आगे स्टंट दिखाते हुए सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठा। आये दिन युवाओं द्वारा सेल्फी लेने के लिए इस तरह के खतरनाक कारनामे करने या ऐसा करते हुए उनकी मौत होने की खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं। ऐसा वे लोग अपने फ्रेंड्स या सोशल मीडिया पर टशन दिखाने के लिए करते हैं।

रेलमंत्री भी कर चुके हैं आगाह

लगातार बढती इस तरह की घटनाओं से आहत होकर केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने एक ट्वीट करते हुए लोगों से यह अपील की थी कि उन्हें इस तरह अपनी ज़िंदगी को जोखिम में डालने की बजाय अपने ऊर्जा को सार्थक कार्यों में लगाना चाहिए और एक नये भारत के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए। रेलमंत्री के अनुसार, भारत स्मार्टफोन के सबसे बड़े यूजर्स में से एक हैं और यहां का रेलवे नेटवर्क विश्व के पांचवें सबसे बड़ा नेटवर्क है हमारा। कमाल की बात यह है कि रेलमंत्री के इस अनुरोध के बाद ऐसी घटनाओं में कमी आने के बजाय बढ़ोतरी हुई हैं।
सर्वे में यह माना गया है कि सेल्फी मौतों को काफी हद तक रोका या कम किया जा सकता है अगर सेल्फी लेनेवाला व्यक्ति उचित सावधानी बरते और इस तरह की मूर्खता ना करे। अक्सर रेल ट्रैक पर खड़े होकर सेल्फी लेनेवाले यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि फलां व्यक्ति के साथ उनकी दोस्ती या मुहब्बत कितनी गहरी है। हालांकि पिछले साल से सेल्फी का एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। जैसे कि- जंगली जानवरों मसलन हाथी, शेर, बाघ, सांप या अन्य खतरनाक जानवरों का साथ सेल्फी लेना, जो कि एक समाजशास्त्रीय अध्ययन का मुद्दा है कि आखिर ऐसा क्यों?

क्या एक बीमारी है सेल्फी क्रेज़

आज लगभग हर दूसरा चौथा इंसान सेल्फी एडिक्ट हैं। कहने का मतलब यह कि ऐसे लोगों के जीवन में कुछ हुआ नहीं कि वे सेल्फी लेकर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को बेताब रहते हैं। आप कहीं भी जायें या किसी भी परिस्थिति में हों आपके आस-पास मौजूद एक-दो लोग आपको सेल्फी लेते ज़रूर दिख जायेंगे। एक तरह से कहें कि हम सेल्फी ऑब्सेस्ड वर्ल्ड में रहते हैं, तो कुछ गलत नहीं होगा। मनोवैज्ञानिकों ने युवाओं के इस व्यवहार को सोशल मीडिया एडिक्शन या सेल्फी मेनिया या सेल्फीटीज़ नाम दिया है।

ऐसे लोगों को मनोवैज्ञानिक परामर्श या इलाज की जरूरत हैं। इसके लिए मनोवैज्ञानिकों ने एक स्केल भी डेवलप किया है, जिससे किसी व्यक्ति के सेल्फी क्रेज़ के स्तर को मापा जा सकता है। हाल में ऐसे ही एक शोध परिणाम का प्रकाशन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ में किया गया। इसमें सेल्फी मेनिया को तीन स्तरों में बांटा गया है :

– सीमांत स्तर (borderline level) : जब कोई व्यक्ति एक दिन में कम-से-कम तीन सेल्फी लेता हो, लेकिन उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करता हो।

– संवेगी स्तर (acute level) : जब कोई व्यक्ति एक दिन में कम-से-कम तीन सेल्फी लेता हो और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करता हो।

– चिरकालिक स्तर (chronic level) : जब किसी व्यक्ति में सतत रूप से सेल्फी लेने की इच्छा रहती हो और वह उनमें से कम-से-कम छह सेल्फी को सोशल मीडिया पर पोस्ट करता हो।

सेल्फीटीज से प्रभावित लोग आमतौर से आत्म मुग्धता और संवेदनहीनता का शिकार होते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके आसपास मौजूद लोग कौन हैं, क्या कर रहे हैं या किस स्थिति में हैं। उन्हें तो बस सेल्फी क्लिक करने और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से मतलब होता है।

वर्ष 1977 में मीता, डर्मर और नाइट नामक मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये एक अध्ययन में यह पाया गया कि जब लोगों को उनकी दो तस्वीरें दिखा कर उनसे उनकी पसंद पूछी गयी, तो ज़्यादातर लोगों ने वास्तविक तस्वीर के बजाय मिरर इमेज को पसंद किया। इसका परिणाम यह निकाला गया कि लोग अपनी वास्तविक छवि के बजाय अपनी दर्पण छवि को देखना अधिक पसंद करते हैं।

ऐसे लोगों की खुशी दूसरों पर निर्भर करती है यानी उनकी पोस्ट की हुई सेल्फी को जितने लोग देखते या लाइक करते हैं, उसी स्तर पर वे खुश होते हैं। उनमें आत्म-संतुष्टि या आत्म-सम्मान की भावना का अभाव होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इसे ‘looking-glass effect’ की संज्ञा दी है। इसका मतलब है कि इंसान खुद को अपनी नजरों से नहीं, बल्कि दूसरों की नज़रों से देखता है।

फोन की स्क्रीन की नीली रोशनी भी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है। रोशनी का मैगनेटिक प्रभाव होता है, जो त्वचा पर असर डालने के साथ चेहरे के रंग को भी प्रभावित करता है। कुछ विशेषज्ञों यह भी मानना है कि मोबाइल फोन की विद्युत चुंबकीय तरंगें डीएनए को नुकसान पहुंचा कर त्वचा की उम्र बढ़ा देती है। ये त्वचा की खुद को सुधारने की क्षमता को खत्म कर देती है। लिहाज़ा आम मॉश्चराइर और तेल इन पर काम नहीं कर पाते. इससे त्वचा को ज्यादा नुकसान होता है।

सेल्फी का क्रेज़ दरअसल एक जानलेवा एडवेंचर साबित हो रहा है, जहां मौज-मस्ती की चाह और कुछ नया कर गुज़रने ख्वाहिश रखनेवाले (ज्यादातर युवाओं) को जान से हाथ धोना पड़ता है या अन्य दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। हमारे देश के लोगों में जितना सेल्फी प्रेम है, वहीं सेल्फी सुरक्षा के मामले में भारत दुनिया के बाकी देशों से काफी पीछे है। ऐसे में ज़रूरत है, तो इस बारे में लोगों में अधिक-से-अधिक जागरूकता फैलाने और उनमें यह एहसास जगाने की सेल्फी से कहीं ज्यादा कीमती आपकी ज़िंदगी है।

रूस ने सबसे पहले चलाया था सेल्फी सुरक्षा कैंपेन

रूस दुनिया का पहले ऐसा देश है जिसने ‘सेफ सेल्फी कैंपेन’ चलाया था। इस कैंपेन का उद्देश्य युवाओं को खतरनाक परिस्थितियों और स्थान पर सेल्फी लेते वक्त सावधान करना था। इस कैंपेन का सिद्धांत था कि ‘सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाखों लाइक्स आपकी ज़िंदगी और स्वास्थ्य के लिए काफी नहीं है।’ साथ ही इस बुकलेट में ये भी कहा गया है कि सेल्फी पूरी सावधानी के साथ लें, ताकि आपकी वह आपकी आखिरी सेल्फी साबित न हो।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सेल्फी को बैन कर दिया था। ऐसा करने वाले वह दुनिया के पहले नेता थे। ऑस्कर अवॉर्ड कमेटी ने ऑस्कर के दौरान सेल्फी पर बैन लगा दिया था, क्योंकि सेल्फी की वजह से पिछली बार ऑस्कर अवॉर्ड विजेताओं के लिफाफे आपस में बदल गये थे।

भारत में भी कुछ समय पहले सेल्फी हादसों को ध्यान में रखते हुए

केंद्र ने राज्य सरकारों से उन पर्यटन स्थलों को चिह्नित करने को कहा हैं जहां सेल्फी लेने के दौरान अक्सर हादसे हो जाते हैं। लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर न  कहा कि पर्यटकों के लिए सुरक्षा के उपाय मुख्य रूप से राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की ज़िम्मेदारी है। इन उपायों में किसी भी अवांछित घटना से बचने के लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर ‘नो सेल्फी जोन’ घोषित करना शामिल है। केंद्र की तरफ से जारी एडवाइज़री में दुर्घटना संभावित पर्यटन स्थलों की पहचान, साइन बोर्ड लगाना, सेल्फी लेने के दौरान खतरे की चेतावनी आदि शामिल हैं।

रेलवे ट्रैक किनारे सेल्फी लेने के दौरान हुई तमाम वारदातों को देखते हुए रेल प्रशासन ने भी इसे रोकने की तैयारी की है। उत्तर मध्य रेलवे समेत तमाम ज़ोनल रेलवे प्रशासन ने ऐसे लोगों के खिलाफ अब कार्रवाई करने की बात कही है। बोर्ड से मिले निर्देश के बाद अब ट्रैक किनारे सेल्फी लेने वालों पर जुर्माना लगाया जायेगा। जुर्माना न दिये जाने की स्थिति में जेल भेजे जाने का भी प्रावधान किया गया है।


फोटो प्रतीकात्मक है।

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