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भारतीय डाक से माँ के लिए भेजी साड़ी, घर पहुंचा कपड़े का एक टुकड़ा!

बीते 23 अप्रैल को हैदराबाद से मैंने अपनी माँ के लिए एक साड़ी भारतीय डाक की रजिस्टर्ड पार्सल सर्विस के माध्यम से दिल्ली भेजी थी। ट्रैक करने पर पता चला कि पार्सल 27 अप्रैल की सुबह डिलीवरी पोस्ट ऑफिस (नांगलोई) पहुंच चुका था। चूंकि हमारे इलाके का डाकिया सही समय पर ज़रूरी से ज़रूरी पत्र भी नहीं पहुंचाने के लिए जाना जाता है, इसलिए उसी दिन मैंने अपने भाई को पोस्ट ऑफिस जाकर पार्सल ले आने के लिए कहा था। पोस्ट ऑफिस में उसे किसी कर्मचारी ने कहा कि तुम लोगों के यहां इसलिए देर से पोस्टल आइटम्स पहुंचती हैं, क्यूंकि तुम लोग पोस्टमैन की सेवा-पानी (शायद टिप या घूस!) नहीं करते और साथ ही यह कहा कि तुम्हारा पार्सल पोस्ट ऑफिस में नहीं है और पोस्टमैन डिलीवरी के लिए ही गया हुआ है।

28 अप्रैल को सुबह नौ-साढ़े नौ बजे के करीब डाकिये ने पार्सल मेरे घर पर पहुंचाया (ट्रैकिंग में यह डिलीवरी एक दिन पहले यानी 27 अप्रैल की शाम, दिखा रहा है!)। घर से यह भी पता चला कि पैकेट थमाते हुए डाकिया इतनी हड़बड़ी में था कि उसने किसी से रिसीविंग तक नहीं ली! पार्सल खोलते ही मेरी माँ ने मुझे फ़ोन करके पूछा कि ‘ये क्या भेजा है’? उसमें मरून रंग की साड़ी और ब्लाउज की बजाय फिरोज़ी रंग के एक-आध मीटर के कपड़े का एक टुकड़ा था। ये सुनते ही मैं सन्न रह गयी!

बाएं, जो साड़ी भेजी गई थी, दाएं जो कपड़े का टुकड़ा घर डिलिवर किया गया।

साड़ी और सिलवाकर भेजे गये ब्लाउज़ की कुल लागत दो-हज़ार के लगभग थी और पैसों से भी अधिक उसके साथ जुड़ी मेरी भावना थी।

इंडियन पोस्ट के माध्यम से भेजे गये पार्सल कभी-कभार गायब हो जाते हैं, यह तो सुना था लेकिन किसी एक सामान को बदलकर दूसरे सामान को रख देने का आरोप कुछ कुरियर कंपनियों पर ज़रूर लगता रहा है, भारतीय डाक विभाग के रजिस्टर्ड पोस्ट को लेकर ऐसा मैंने आजतक नहीं सुना था।

लेकिन आज तो उसे खुद भोग भी लिया! किसी ने बड़ी तफसील से पैकेट खोलकर साड़ी निकाली और उसमें कपड़े का एक टुकड़ा डाल कर टेप लगा दिया।

एक शिकायती टिप्पणी के साथ मैंने डाक विभाग को इसकी सूचना दे दी है और शिकायत के अन्य सभी विकल्पों पर भी विचार कर रही हूं। बहरहाल डाक विभाग में शिकायत के लिए निर्धारित जितने भी फोन नंबर हैं, उनपर या तो कॉल नहीं लग रहा या कॉल उठाया नहीं जा रहा!

पोस्ट ऑफिस की तरफ से मिली रसीद

स्थानीय पोस्ट ऑफिस से यह भी पता चला है कि ऐसे मामलों में डाक विभाग मामूली पूछ-ताछ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करता और इस तरह की धोखा-धड़ी के शिकार उपभोक्ताओं को किसी तरह का कोई मुआवज़ा भी तब तक नहीं मिलता जब तक कि पार्सल भेजते हुए उन्होंने उसका इंश्योरेन्स नहीं करवाया हो! और इंश्योर्ड पार्सल का खर्च रजिस्टर्ड पार्सल से बहुत अधिक होता है।

28 अप्रैल को घर पर एक फंक्शन था और मैंने इस भावना के साथ ही वह साड़ी भेजी थी कि माँ उस दिन उसे पहन पाएंगी। डाक विभाग की इस धोखा-धड़ी का जब से पता चला है, तब से मन बहुत उदास है!

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