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बलात्कार और इसके कारकों को हमारा समाज और हम कितना समझते हैं?

रोज़ बलात्कार की घटनाओं पर लोग लिख रहे हैं। कोई पॉर्न को कारण बता रहा है, तो कोई नशीली पदार्थों के सेवन को, कोई लड़की के पहनावे में समस्या की जड़ तलाश रहा है, तो कोई उसके खानपान में। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इसका ज़िम्मेदार पश्चिमी संस्कृति और खुलकर लड़का-लड़की के मिलने को बता रहे हैं। इसपर एक बड़ा तबका, खासकर गैर-सरकारी संगठन और धार्मिक समुदाय के बीच से यह भी आवाज़ आ रही है, कि बलात्कार के लिए कठोर सज़ा का ना होना, ऐसी घटनाओं का बड़ा कारण है। उनकी नज़र में फांसी, बीच चौराहे मृत्यु-दण्ड, लिंग को सरेआम काट देना, तबतक पीटना जबतक उसकी जान न चली जाय, जैसे समाधान सुझा रहे हैं।

किसी भी घटना के कारण में जाने से पहले यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह लेख समस्या और उसके समाधान के कुछ पहलु पर सोचने के लिए विकल्प सुझाने की कोशिश करता है। कहीं से भी अंतिम कारण अथवा समाधान सुझाना इसका उद्देश्य नहीं है। यह पहले ही स्पष्ट है कि बलात्कार की घटनाओं पर हर व्यक्ति की अलग राय है। उसके कारण को लेकर, बलात्कार की प्रकृति अथवा परिभाषा को लेकर और समाधान  को लेकर भी।

बलात्कार के इर्द-गिर्द घूमता यह लेख मुख्यतः तीन चीजों पर बात करने की चेष्टा करता है – पहला, बलात्कार की परिभाषा व सज़ा पर, दूसरा उसके कारणों व बढ़ावा देने वाली परिस्थिति पर और तीसरा, उसके समाधान पर। यहां शुरू करते हैं, उसकी परिभाषा और कानूनी प्रावधान से।

बलात्कार की कानूनी परिभाषा क्या है?

हमें सबसे पहले यह जानना चाहिए कि बलात्कार क्या है?  जानकारी का अभाव कई बार बलात्कार की घटना को बढ़ावा दे सकता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 के अनुसार बलात्कार की निम्न परिभाषा है।

एक पुरुष बलात्कार करता है, यदि वह –

  1. किसी भी हद तक अपना लिंग एक महिला की योनी, मुख, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या उससे या किसी दूसरे व्यक्ति को ऐसा करने को कहता है अथवा;
  2. किसी भी हद तक कोई वस्तु या शरीर का अंग, लिंग नहीं, एक महिला की योनी, मुख, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या उससे या किसी दूसरे व्यक्ति को ऐसा करने को कहता है अथवा,
  3. एक महिला के शरीर के किसी भी भाग में हेरफेर करता है जिससे उसकी योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या महिला के किसी भी अंग में प्रवेश करने के लिए उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है अथवा;
  4. निम्नलिखित सात विवरणों में से किसी एक के तहत आने वाली परिस्थितियों में, एक महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुख लगाता है या उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है:-

 

पहला – उसकी इच्छा के विरुद्ध।

दूसरा– उसकी सहमति के बिना।

तीसरा – उसकी सहमति डरा-धमकाकर ली गई हो।

चौथा – उसकी सहमति नकली पति बनकर ली गई हो जबकि वह उसका पति नहीं है।

पांचवां – उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमज़ोर या पागल हो अथवा उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं हो।

छठा – यदि वह 18 वर्ष से कम उम्र की है, चाहे उसकी सहमति हो या सहमति नहीं हो।

सातवीं – जब वह सहमति देने में असमर्थ है।

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि बलात्कार में लिंग का योनि में प्रवेश होना ही बलात्कार नहीं है, बल्कि उसका व्यापक अर्थ है। किसी भी महिला की सहमति नितांत आवश्यक है। धोखे में, मानसिक हालत ठीक नहीं होने पर अथवा परिस्थिति अनुसार वांछित उम्र पूरा नहीं होने पर दी गयी सहमति अमान्य है।

कई बार लोग पति द्वारा ज़बरदस्ती किये गए सम्भोग को जायज़ मानते हैं, पर इस परिभाषा से बिलकुल स्पष्ट है कि बिना सहमति अथवा ज़बरदस्ती पति द्वारा किया गया सम्भोग भी बलात्कार की श्रेणी में आएगा।

पत्नी द्वारा सहमति भी हो, पर यदि महिला वयस्क नहीं हो, तब भी वह बलात्कार की श्रेणी में आएगा। ऐसे में विवाह होना, पति द्वारा हर परिस्थिति में, सम्भोग करने का अधिकार होना नहीं है।

बलात्कार के मामले में सज़ा का प्रावधान

 

बच्चों के साथ यौनिक हिंसा के मामले में कानून

भारतीय समाज और बलात्कार के कई पहलु

बलात्कार हिंसा का एक अमानवीय प्रकार है, यह सम्भोग कतई नहीं है। सम्भोग तब माना जाना चाहिए, जब दोनों की सहमति है। हालांकि बलात्कार की घटनाओं का ज़िक्र धर्मग्रंथों में तथा इतिहास में मिलता है। युद्ध के समय पराजित देश की महिलाओं को बंदी बनाकर उसे सम्पति की तरह समझा जाता था। ऐसे में उनके साथ बनाये गए शारीरिक सम्बन्ध को मानवीय नहीं समझा जा सकता। वैसे समय के साथ हिंसा और मानवीय गरिमा की परिभाषाएं, बदलती रहती हैं, ऐसे में जिस घटना को पहले मामूली समझा जाता था, अब गंभीर समझा जाता है। मसलन पति पत्नी के सम्बन्ध में ज़बरदस्ती को पहले बलात्कार नहीं समझा जाता था, पर अब भारतीय कानून के अनुसार बलात्कार समझा जाता है। उसी प्रकार लड़कियों की विवाह काफी कम उम्र में हो जाती थी, उसे सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त थी, अब अठारह साल से कम उम्र की लड़की से विवाह करना अथवा उसके साथ यौनिक सम्बन्ध बनाना अपराध की श्रेणी में है।

बलात्कार के प्रमुख कारणों में निम्न कारण हो सकते हैं।

कई बार हम जिसे सेक्स समझ रहे होते हैं वह बलात्कार हो सकता है। जैसे किसी लड़की को शादी का वादा करते हैं, फिर दोनों में अंतरंगता बढ़ती है और बात शारीरिक सम्बन्ध तक पहुंच जाती है। ऐसे मामले में, यदि लड़के द्वारा लड़की को झूठा आश्वासन दिया गया हो, तो ऐसा मामला भारतीय कानून की नज़र में बलात्कार की श्रेणी में आ सकता है।

कई बार पति द्वारा पत्नी से सम्बन्ध बनाने की इच्छा और पत्नी की अनिच्छा होने पर, यदि पति द्वारा ज़बरदस्ती की जाती है, तब वह बलात्कार की श्रेणी में आयेगा। हालांकि हम इसे पति-पत्नी का आपसी मामला समझ रहे होते हैं।

बलात्कार इस लिए भी होते हैं कि महिला को बचपन से कमज़ोर होने और पुरुष को ताकतवर होने का अहसास दिलाया जाता है। पुरुष को मर्द बनने को कहा जाता है अर्थात हिंसक, दर्द देने और सहने वाला, आक्रामक बर्ताव करने वाला, छेड़ने वाला आदि। दूसरी तरफ महिला को बचपन से कमज़ोर, छुईमुई, सजने-संवरने, संकट आने पर भाई, पिता या पति द्वारा सुरक्षा प्राप्त करने की बात सीखाई जाती है, जैसे रक्षा बंधन जैसे त्यौहार। इससे महिला को लगता है कि वह खुद की रक्षा करने में अक्षम है और हर बात में उसे पुरुष पर निर्भर रहना है। पुरुष भी समझता है कि घर की महिला की रक्षा करना पुरुषों की ज़िम्मेदारी है।

महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर घर के बाहर, समाज में, बाज़ार में, कार्यालयों में पुरुष ही पुरुष नज़र आते हैं, महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है। यह अंतर धीरे-धीरे मन में स्थापित होने लगता है कि महिला घर की इज्ज़त है और उसका घर में रहना ही सुरक्षित होना है।

देर शाम घर से बाहर निकलने वाली महिला को चरित्रहीन समझा जाता है जबकि पुरुष को देर रात तक काम करने पर अधिक मेहनती और ज़िम्मेदार समझा जाता है। यह सोच भी धीरे धीरे सड़क, बाज़ार आदि पर से महिला के क्लेम को कम करता है। कोई महिला दिख जाती है, तो उसे शिकार बनाना आसान हो जाता है।

घर में बच्चों की परवरिश में हमेशा लड़कियों के चाल-चलन पर विशेष ज़ोर दिया जाता है, लड़कों को टोका नहीं जाता। यह प्रवृति भी लड़कियों को शंकालू और दब्बू बना देता है, दूसरी तरफ कई लड़के आवारागर्दी करने और लड़कियों को परेशान करने तक की हिम्मत करने लगते हैं। यह प्रवृति भी बलात्कार बढ़ावा देने वाला प्रतीत होता है।

समाज में एक सोच स्थापित कर दी गयी है कि इज्ज़त मतलब महिला, जैसे पुरुष की इज्ज़त ही नहीं होती। कई बार किसी परिवार के चरित्र हनन के लिए महिला के साथ बलात्कार को अंजाम दिया जाता है।

पुरुष-स्त्री का आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक गैर-बराबरी भी इसका एक बड़ा कारण है।

आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर बना दिए जाने के कारण समाज में महिला को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है। जैसा कि सीमोन दी बोवुवार अपनी पुस्तक ‘सेकण्ड सेक्स’ में लिखती हैं, “स्त्री पैदा नहीं होती, बना दी जाती है।” ऐसे में कमज़ोर बना दिए गए व्यक्ति पर किसी भी प्रकार से हिंसा या शोषण करना शोषक के लिए आसान हो जाता है।

बलात्कार की अधिकांश घटनाओं को देखने और उनका अध्ययन करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि बलात्कार के ज़्यादातर मामले बच्चों, महिला, आर्थिक रूप से विपन्न, दलित, मज़दूर, आपदा के शिकार आदि के साथ वयस्कों, पुरुषों, सत्तासीन, ठेकेदार, बाबा, आर्थिक रूप से सक्षम आदि के द्वारा किया जाता है। ऐसे में सत्ता चाहे वह जिस रूप में भी हो, गैरबराबरी को बढ़ावा देता है जो बलात्कार का उत्प्रेरक हो सकता है। ऐसे में कमज़ोर और पीड़ित को ही शिकार बनाया जाता है, सबल और सक्षम को नहीं। इसमें ऐसा भी सोच काम करता है कि कमज़ोर को नियंत्रित करना आसान होता है।

धार्मिक परंपरा और सामाजिक मान्यता भी पुरुष को शक्तिशाली बनाता है और स्त्री को कमज़ोर,

जैसे पति को स्वामी, परमेश्वर, मालिक आदि जैसा समझा जाता है, जबकि महिला को दासी, परनिर्भर, किसी के लिए जीने वाली, त्याग की मूर्ति आदि। यह भेद भी स्त्री को कमज़ोर बनाता है और पुरुष आक्रामक, जो बलात्कार में अतिरिक्त कारक बनकर उसकी सम्भावना को बढ़ाता है।

लड़का-लड़की के बीच प्राकृतिक रूप से मिलने-जुलने और मित्रता होने पर अतिरिक्त पाबंदी लगा दी जाती है। उम्र के साथ यह कुंठा में बदल जाती है। यह कुंठा भी लड़की को साथी, मित्र की जगह सेक्स पूर्ति और मज़ा करने का साधन मात्र बना देता है।

सेक्स को समाज में वर्जित और पाप सदृश समझना भी एक घटक है।

एक उम्र के बाद जब लड़की-लड़का व्यस्क हों, अपना भला-बुरा समझने में सक्षम हों, तो उनके बीच सहमति से किये गए प्रेम और सेक्स पर अंकुश लगाना भी गलत दिशा ले सकता है। हमें पता है सेक्स एक नैसर्गिक ज़रुरत है, इसपर अधिक पाबन्दी होने से मौका मिलने पर तथा अन्य कारणों के मिलने से किसी को इसका शिकार बनाने का कारण बन सकता है।

बलात्कार को लड़की के कपड़े, घूमने-फिरने की आज़ादी और खान-पान से जोड़ना बेतुका है। ऐसी मान्यताएं लड़कों को आक्रामक और गलत व्यव्हार के लिए प्रेरित करती है। इसका खामियाज़ा कई बार लड़की को भुगतना पड़ता है। खाप पंचायतें लड़कियों की स्वतंत्रता की दुश्मन हैं, वे इसे ऐसा प्रस्तुत करती हैं कि अपनी पसंद के कपड़े, घूमने-फिरने की आज़ादी होना, अपराध और सामाजिक मान्यताओं को तोड़ना हैं। समाज में ऐसी मानसिकता होने पर लड़की को टारगेट करना सही लगता है, जबकि यह अपराध है।

यौन-शिक्षा की कमी व इस पर घर-समाज में बातचीत का माहौल नहीं होना भी, बच्चों और किशोरों को अधकचरे ज्ञान के साथ बिगड़े बच्चों, सस्ती साहित्य और सामाजिक रूप से गैर-ज़िम्मेदार वयस्कों  के बीच ले जाता है, जबकि माँ-बाप को लगता रहता है उसका बेटा बड़ा भोला है। सेक्स से अंजान है तथा जब ज़रूरत होगी खुद ब खुद ज्ञान हो जायेगा।

कई बार सहमति से, फिर भी असुरक्षित सेक्स होने की संभावना और बच्चा ठहरने पर लड़की द्वारा संभव है कि अपनी तथाकथित झूठी इज्ज़त को बचाने के लिए उसे बलात्कार कह दिया जाय। इसके लिए हमारा समाज खुद ज़िम्मेदार है। ऐसी स्थिति आने की सम्भावना सुरक्षित सेक्स की जानकारी होने पर कम हो सकती है।

भारतीय समाज सेक्स के मामले में बड़ा दकियानुस है। एक तरफ यहां ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जाती है, दूसरी तरफ देखते हैं कि कुंठित बाबाओं के आश्रम सेक्स रैकेट के स्थल के रूप में काम करते हैं। कई बाबा खुद यौन शोषण के मामलों में आरोपित हैं। ऐसे में हमें समझना चाहिए कि ब्रह्मचर्य और दूसरे लिंग के प्रति आकर्षण पर अतिरिक्त बंदिश भी गलत प्रवृति बलात्कार को बढ़ावा दे सकता है।

बच्चों और किशोरों को यह समझाने की ज़रूरत है कि कोई भी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि कुछ गलत करता है, तो उसका विरोध करें।

ऐसा होने पर माँ-पिता अथवा अभिभावक को बिना डरे और बिना हिचके तुरंत बताएं। छोटे बच्चों को अच्छे-बुरे स्पर्श में भेद करना ज़रूर सीखना चाहिए। सेक्स और शोषण पर बच्चा या किशोर अपने अभिभावक से खुल कर बात कर सके, ऐसा माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी खुद अभिभावकों पर है।

हमें अपनी न्याय व्यवस्था को बेहतर करनी चाहिए। ऐसा ना हो कि ऐसे मामले में लोगों को न्याय नहीं मिलता हो और अधिक देरी होती हो। पुलिस से समाज भय खाता हो और जब बात ज़ाहिर हो जाती है, तभी हम न्याय के लिए बोल पाएं। ऐसी सोच बलात्कार की घटनाओं के प्रति समाज में असंवेदनशीलता में इज़ाफा कर सकता है। बलात्कार की घटनाओं को अपने परिवार, रिश्तेदार या पड़ोसी में होने पर छुपाना उसे लगातार जारी रख सकता है।

आजकल पूंजीवादी और उपभोगतावादी अर्थव्यवस्था में मीडिया महिला की छवि उपभोग की वस्तु के रूप में भी परोस रहा है।

कभी तो उसे उसे तंदूरी चिकेन समझना, कभी परफ्यूम इस्तेमाल करने मात्र से उसका उपलब्ध हो जाना आदि दिखाता है, कि वे केवल सेक्स ऑब्जेक्ट हैं। यह प्रवृति मनुष्य की आधी आबादी का वस्तुकरण करना है। यह महिला को मात्र सेक्स पूर्ति और मज़ा करने का साधन वाली मानसिकता गढ़ने का कार्य करती है, जो बलात्कार को उकसावा देता है, जहां वह इंसान ना होकर सेक्स की वस्तु समझी जाने लगती है।

हमें अपने बच्चों के व्यवहार के बारे में खबर रखनी चाहिए,

साथ की कुछ अलग व्यवहार दिखने पर उसकी प्रशिक्षित काउंसलर से काउंसिलिंग भी करवानी चाहिए, जिससे उसके व्यव्हार को सामान्य बने रहने में मदद मिल सके और गलत प्रवृतियों की ओर भटकाव पर नियंत्रण रहे।

बलात्कार की घटनाओं पर समाज अपनी ज़िम्मेदारी ले। घटना के बाद उसे मौत की सज़ा, कानून व्यवस्था का मामला तक न सीमित मान ले, बल्कि समाज द्वारा उसके कारणों को बच्चों की परवरिश, सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाना, लैंगिक भेद, पितृसत्ता आदि में भी तलाशे। साथ ही यथासंभव उसे दूर करने का प्रयास भी करे। क्या पता यहां से एक नई पीढ़ी के लड़का-लड़की की सम्भावना दिखे, जो सेक्स के मामले में स्वस्थ हो और बलात्कार जैसी घटनाओं से दूर।

उपरोक्त बातों का ध्यान रखने तथा घर और विद्यालयी शिक्षा में इनको शामिल करके, समाज पुलिस, गैरसरकारी संस्थाओं आदि के सहयोग से प्रशिक्षण किशोरों-किशोरियों के प्रशिक्षण से, हम एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में, एक अहम् भूमिका निभा सकते हैं। स्वस्थ एवं मानसिक विकारों से दूर युवा-पीढ़ी ना बलात्कार में प्रेरित होगा, ना अन्य अपराध में संलग्न होगा। ऐसे में एक बेहतर समाज का निर्माण करना संभव होगा।

नोट- बलात्कार के सम्बन्ध में दिए गए कानूनी प्रावधान सामान्य जानकारी के लिए हैं, अधिक जानकारी के लिए किसी कानून के जानकर से सलाह लें अथवा कानून की मूल प्रति का सन्दर्भ लें।

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