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“आखिर अब्बू-अम्मी मेरे कबड्डी खेलने के लिए मान ही गए”

सुबह का सारा काम खत्म हुआ और पूरा परिवार खाना लेकर सर्दियों की धूप में जाकर बैठ गया। सब उदास होकर आपस में बातें कर रहे थे क्योंकि इस वक्त काम-धंधा बंद था उस पर नोटबंदी। तभी पापा के फोन की घंटी बजी और हम सब यह जानने के लिए कि किसका फोन है, चुपचाप बैठ गए। पापा ने फोन उठाया और बोले हैलो, हांजी कौन! अच्छा तमन्ना से बात करनी है? हां रुको।

मैं चौंक गई और सोचने लगी शायद कोई सहेली होगी क्योंकि स्कूल की छुट्टियां हैं, किसी को मुझसे कुछ काम होगा इसलिए फोन किया होगा! पापा ने मुझे फोन दिया।
मैंने फोन हाथ में लिया, कान में लगाया और हैलो कहा। तभी वह बोली, ‘आप तमन्ना बोल रही हो!’
“हां आप कौन बोल रही हो!”
“मैं करिश्मा बोल रही हूं!”
“कौन करिश्मा! शायद, मैं आपको जानती नहीं हूं!”
“अबे यार एक साल से दूर क्या चली गई हूं, तुम तो भूल ही गई हो”’
“नहीं, मैं पहचान नहीं पा रही हूं! आप समझाने की कोशिश तो करो!”

“मैं वो करिश्मा हूं जो स्कूल में तुम्हें जूनियर लेबल पर कबड्डी खेलाया करती थी।“
“अच्छा अब याद आया, आप बोल रही हो करिश्मा दीदी!”
“पहचान लिया?”
“हां पहचान लिया, बोलो कैसे याद किया!”

“मैं तुम्हें नैशनल लेवल पर कबड्डी खेलाना चाहती हूं!” यह सुनकर मैं खुश होते हुए बोली, सच? हां मगर ये कबड्डी ओपन कबड्डी है! ओपन मतलब? ओपन यानी इस कबड्डी में घर से जाना होता है, स्कूल से नहीं? अच्छा! और इसमें पैसे भी भरने होते हैं! क्या पैसे, कितने पैसे देने हैं? जाने से पहले पांच हज़ार रुपए देने हैं। यह सुनकर धीमी आवाज़ में कहा पांच हज़ार रुपए और अपने घर के सदस्यों की तरफ देखा। वे सब अपनी बातों में व्यस्त थे। तब मैंने उनसे कहा कि आपको तो पता ही है कि सरकार ने पांच सौ और हज़ार के पुराने नोट बंद करवा दिए हैं और नये नोट आने में समय लगेगा। पैसों की तंगी भी चल रही है। मैं तो पुराने नोट ही लूंगी, नये नहीं।“ यह सुनकर मैं सोच में पड़ गई कि पापा पांच हज़ार रुपए तो नहीं देंगे।

सोच में पड़ गई क्या? हम तुम्हारे पांच हज़ार तुम पर ही खर्च करेंगे जैसे तुम्हारा ट्रैक सूट सिलवाया जायेगा, शूज़ होंगे, मतलब तुम्हारी पूरी किट होगी, वहां जाने का मेट्रो का किराया, वहां सात दिन तक रहने का किराया। क्या कहा तुमने, सात दिन रहने और मेट्रो का किराया! कितनी दूर जाना है हमें?” पगली अभी तक तू समझी नहीं? हम पंजाब जाकर कबड्डी खेलेंगे! यह सुनकर चौंकते हुए मैंने कहा, क्या पंजाब? इतना कहते ही घर के सब मुझे देखने लगे और बोले क्या हुआ? कुछ नहीं, कुछ नहीं कह कर उन सबके बीच से उठकर छत की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गई और धीरे-धीरे बोलने लगी पागल हो रही हो क्या! तुम्हें तो पता ही है कि जब पिछले साल एक ही दिन और चार-पाँच घंटों की बात थी स्कूल से स्कूल में कबड्डी खेलने जाना था, पापा ने बड़ी मुश्किल से भेजा था, अब तो सात दिनों की बात है न, बाबा मैं नहीं पूछूंगी। वो तो आंख दिखाकर ही मार डालेंगे।

पता नहीं यार कितना डरते हो घरवालों से! इतनी अच्छी प्लेयर है। खेलने का मौका मिल रहा है और तू पीछे भाग रही है। अच्छा खेलती है तू, नाम है तेरा कबड्डी में इस कारण कह रही थी तुझे बाकी तेरी मर्ज़ी है। यही मेरा नंबर है अगर जाना हो तो 23 तारीख से पहले बता देना क्योंकि 23 तारीख से बच्चे सेलेक्ट करूंगी और उनकी प्रैक्टिस करवाऊंगी।

फोन कट गया। मैं दीवार से सिर लगाकर बैठ गई और सोचने लगी, मन तो बहुत कर रहा है जाने का पर पापा! वह तो यही कहेंगे कि पता है दुनिया तुम्हारे बारे में क्या कहेगी? अदब से रहना तो आता नहीं है और चली हैं कबड्डी खेलने, यह तो लड़कों पर ही अच्छा लगता है। लड़कियों को घर के कामों में दिलचस्पी रखनी चाहिए फालतू कामों में नहीं। ये है मेरे पापा की दास्तान, काश मेरे पापा की सोच भी आमिर खान की तरह होती, फ़िल्म में जिस तरह वह अपनी बेटियों को दंगल खेलवाता है, वैसे ही मेरे पापा मुझे कबड्डी खेलवाते। यह तो सिर्फ तेरी सोच है जो पूरी नहीं होगी।

मैंने पापा को फोन वापस किया। पापा ने मुझसे पूछा किसका फोन था! पापा मेरी सहेली का फोन था! तुम लोग पंजाब के बारे में क्या कह रहे थे! यह सुनकर मैं चुप हो गई और सोचने लगी कि क्या जवाब दूं। मैंने पापा से झूठ बोल दिया कि मेरी सहेली सात दिन के लिए पंजाब जा रही है और वह मेरे ज़रिए सात दिन की एप्लीकेशन स्कूल भिजवाएगी। अच्छा! मैं चुपचाप बैठकर खाना खाने लगी और सोच रही थी कि पापा से कैसे पूछूं! कैसे जाऊं! दो दिन के अंदर करिश्मा दीदी को बताना है। पूरा दिन इसी उधेड़बुन में बीत गया।

सुबह उठकर स्कूल पहुंची, लंच में अपना कबड्डी का ग्रुप इकठ्ठा किया और उन्हें सारी बातें बताई। ग्रुप के साथी बोले, हम अपने घरवालों से पूछकर रात तक तुझे फोन करके बता देंगे। तू भी अपने पिताजी से एक बार पूछ कर तो देख, क्या पता हां हो जाए और अगर मना कर दे तो खाना मत खाना, रोती रहना, घर में किसी से बात भी नहीं करना फिर तो मां-बाप तंग आकर हां कर ही देंगे।

लंच खत्म हो गया और सब वापस क्लास में चले गए। स्कूल की छुट्टी हो गई, पता ही नहीं चला कि कब आधा दिन बीत गया अब दिल कह रहा था कि जब सब साथियों के अंदर इतनी हिम्मत है कि वे अपने मम्मी-पापा से पूछ सकती हैं तो मैं क्यों नहीं! मैं अपने घर गई और जैसे ही दरवाज़ा खोला तो पाया कि पापा सोफे पर बैठकर टी.वी. देख रहे थे। पापा मेरी तरफ़ देखने लगे। मैं छोटे-छोटे कदम लेते हुए अपने कमरे में गई और रोने लगी। कमरे के पास से मेरी बहन जा रही थी उसने मेरी आवाज़ सुनी, अंदर आकर बोली स्कूल से आ गई मगर तू रो क्यों रही है! ये सुनकर मैं और तेज़-तेज़ रोने लगी। मेरी आवाज़ सुनकर बगल वाले कमरे से अम्मी उठकर आईं और बोली क्या हुआ तमन्ना! क्यों रो रही है? बाहर बैठे पापा ने आवाज़ लगाई क्या हुआ? अम्मी बोलीं, ज़रा आकर तमन्ना को देखना, पता नहीं स्कूल से आकर क्यों रो रही है? यह सुनकर पापा भी अंदर आए और मुझे सीने से लगाकर पूछा, क्या हो गया बेटा! क्यों रो रही है बता! किसी ने कुछ कहा तुझे या फिर किसी ने तुझे छेड़ा है? नहीं पापा वह न स्कूल से मैडम… हां स्कूल से मैडम इससे आगे बता! पापा स्कूल से मैडम बच्चों को पंजाब भेज रही हैं कबड्डी खेलने। उन्होंने सात अच्छे-अच्छे बच्चे छांटे हैं उनमें मैं भी हूं! यह सुनकर पापा ने मेरा सिर, जो उनके सीने पर लगा था, को हटाया और तेज़ आवाज़ में बोले, तूने मना क्यों नहीं किया। मैंने मना किया था पर मैडम ने कहा कि मैं तुम्हारे पैरेंट्स से बात करूँगी। यह सुनकर पापा बाहर जाकर बैठ गए।

मैंने सोचा, तमन्ना यही वक्त है जो कहना है कह दे, तेरा ड्रामा बहुत अच्छा जा रहा है। मैं बाहर गई और पापा से बोली, क्या मैं पंजाब नहीं जाऊंगी? पापा ने कहा कि पंजाब कोई पास में थोड़े है कि जब मर्ज़ी चले जाओ और जब मर्ज़ी आ जाओ वह भी कबड्डी खेलने! बिल्कुल नहीं। मगर क्यों नहीं पापा मुझे बताओ तो सही? तभी अम्मी ने कहा हर सवाल का जवाब देना ज़रूरी है जब मना कर दिया तो न ही समझ ले। मगर अम्मी जब सब जा रहे हैं तो मेरे जाने में क्या है? पापा ने कहा तुझे पता है अगर वहाँ कुछ हो गया तो सब मुझे क्या कहेंगे कि भेजो न लड़की को कबड्डी खेलने। खेल ली कबड्डी तब तो जीना मुश्किल हो जाएगा हमारा।

आप लोग ऐसा सोच ही क्यों रहे हो? अल्लाह से दुआ करो कि मैं जीत कर आऊं! अगर जीत कर नहीं आई तो हमारे पैसे भी बेकार हो जाएंगे? अगर मैं जीत गई तो किसका फायदा होगा! एक बच्चे को पचास हज़ार रुपए का इनाम मिलेगा वह किसका होगा! वह भी तो हमारा ही होगा! अम्मी बोलीं, वहां सब हिन्दू की लड़कियां ही होंगी, मुसलमान की कोई है बता? कौन कह रहा है कि मुस्लमान लड़की नहीं है मुस्कान है न, उसके पापा तो मस्जिद के मौलाना साहब हैं, वह तो मना नहीं कर रहे। वह तो नहीं देख रहे कि दुनिया क्या बोलेगी! पापा ने कहा जो भेज रहा है उन्हें भेजने दे, हमें उससे कोई मतलब नहीं।

बस! मेरा रोने-धोने और बोलने का सारा ड्रामा फेल हो गया, अब बस बाकी था किसी से न बोलना और न ही खाना खाना। दोपहर का खाना खाने के लिए सब दस्तरखान बिछाकर बैठ गए, सबको मेरी कमी नज़र आ रही थी, मगर मैं अपने कमरे में रजाई ओढ़ कर लेटी हुई थी फिर पापा ने धीरे से कहा कि जाकर उसे उठाओ और कहो खाने से गुस्सा नहीं होते, खाना खा ले। मैंने इतना सुन लिया था कि अम्मी मेरे पास आ रही है। मैंने धीरे-धीरे रोना शुरू कर दिया। अम्मी ने मेरे मुंह से रजाई हटाई और बोली चल खाना खा ले! मैंने माथे को सिकोड़ते हुए और रजाई को दोबारा अपने मुंह पर डालते हुए कहा, मुझे नहीं खाना जिसको खाना है वो खा ले। यह सुनकर अम्मी चली गई क्योंकि उन्हें पता था कि बिना खाए ये रह नहीं सकती अपने आप लेकर खा लेगी। रोते-रोते मैं सो गई।

शाम को पांच बजे मेरी आंख खुली मैंने रजाई से मुंह निकालकर देखा कि सब कहां पर हैं। मेरी बहन किचन में खड़ी चाय बना रही थी क्योंकि मुझे चाय की खुश्बू आ रही थी और अम्मी बाहर दरवाज़े पर बैठी चावल साफ कर रही थी। शायद मेरी ही बात चल रही थी क्योंकि अम्मी कह रही थी, चलो भेज दो ना, और बच्चे भी जा रहे हैं, मैडम भी साथ जाएगी। देखते हैं, इसकी मैडम से बात करेंगे फिर भेजने की सोचेंगे। इतना सुनते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई। तभी पापा ने मम्मी से कहा, लेकिन तमन्ना को मत बताना कि हम हाँ कहेंगे। मेरे दिमाग में एक टेंशन पैदा हो गई कि पापा तो स्कूल की मैडम से बात करेंगे लेकिन यह तो स्कूल का मैटर ही नहीं है। पापा को अगर पता चला कि यह स्कूल से नहीं है बल्कि ओपन कबड्डी है फिर तो बिल्कुल मना कर देंगे।

अब क्या करूं! तभी मुझे ऐसा लगा शायद मेरे कमरे में कोई आ रहा है। मैंने झट से आंख बंद कर ली। तमन्ना, ऐ तमन्ना चल उठ शाम के पांच बज गए हैं! चल खड़ी हो! मैंने ऐसे जवाब दिया जैसे मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता। मैंने कहा कि क्या है? मेरी मर्ज़ी, चाहे मैं शाम के पांच बजे उठूं या फिर रात के आठ बजे। बाहर के मामलों में तो हमें जाने का हक नहीं है अब क्या अपनी मर्ज़ी से सोने का भी हक नहीं है। बाहर से पापा की आवाज़ आई, अरे तमन्ना बेटा, उठ जा चल खाना-वाना खा ले चाहे फिर दोबारा से सो जाना। पापा का फोन बजने लगा उन्होंने उठाकर कहा हैलो कौन! अच्छा तमन्ना से बात करनी है अभी रूको बेटा! पापा ने मुझे आवाज़ लगाई तमन्ना ले तेरी सहेली का फोन है!

पापा से फोन लेकर मैं अपने कमरे में आ गई। हैलो कौन! उधर से आवाज़ आई, तमन्ना मैं बोल रही हूं मुस्कान! जैसे ही मैंने मुस्कान सुना तो परिवार वालों को सुनाने के लिए ज़ोर से बोली, हां मुस्कान बोल? क्या हुआ तू जाएगी! मैंने तेज़ आवाज़ में कहा बहन हमारा घर तेरे घर जैसा कहां है, जो एक बार तूने कुछ कहा और तेरे पापा ने हां कर दिया। हमारे पापा तो बस यही कहते हैं कि घर के मामलों में दिलचस्पी रखो, बाहर के मामलों में नहीं, तू बता तू तो जा रही होगी! मुस्कान बोली, हां बहन मैं तो जा रही हूं मगर तुझे तो पता ही है कि हम भी तो तेरी ही वजह से जीतते हैं क्योंकि बोनस तेरे अलावा किसी और को लेना ही नहीं आता और सबसे पहले रेड तो तू ही डालती है। मैंने फिर तेज़ की कहा, किसी को क्या पता कि मैं कैसा खेलती हूं। फोन कट हुआ, मैंने फोन ले जाकर पापा के हाथ में रखा और अपने कमरे में जाकर स्कूल का काम करने लगी। खुशी में मैं खाना खाना ही भूल गई। अपने कमरे में बैठे-बैठे रात हो गई और रात के आठ बज गए।

पापा बाहर से घर के अंदर आए। उन्होंने मुझे कमरे में बैठे देखा। उन्होंने अम्मी से कहा खाना लगा दो भूख लग रही है। अम्मी ने कहा तमन्ना आ जा खाना खा ले पर मैंने इग्नोर करते हुए अपना काम करने लगी। जब मम्मी ने कुकर का ढक्कन हटाया और मटर पुलाव की खुशबू नाक में घुसी तो खाना खाने का मन करने लगा तब मैंने सोचा अगर मम्मी ने फिर से आवाज़ दी तो ज़रूर जाऊंगी। तभी पापा ने आवाज़ देते हुए कहा तमन्ना बेटा इधर आ! मुझे लगा शायद खाने के लिए बुला रहे हैं। मैं उनके पास पहुंची और बोली क्या हुआ पापा? पापा ने कहा कि अगर तेरा जाने का इतना ही मन है तो चली जा, मगर इस खाने से तो गुस्सा मत हो। ये सुनकर मैं मुस्कुराते हुए पापा के गले लग गई और बोली, सच पापा मैं पंजाब जाऊं! बिल्कुल जा मगर हाँ तुझे जीत कर आना है! मैंने हंसते हुए कहा कि जब आमिर खान अपनी बेटियों को दंगल खेलवा सकता है तो मेरे पापा भी मुझे कबड्डी खेलवा सकते हैं।

मैंने अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाते हुए मैंने पापा से पूछा कि ये बताइए आप मान कैसे गए! वे बोले, मैं नमाज़ पढ़ने मस्जिद गया, वहां मुस्कान के पापा मिले। उन्होंने कहा कि मुस्कान बता रही थी, तुम तमन्ना को कबड्डी खेलने पंजाब नहीं भेज रहे हो! मैंने उनसे कहा अगर बच्चों के साथ वहां कुछ हो गया तो! वे बोले ऐसे कैसे हो जाएगा, ऐसे लोग भी तो हैं जो अकेले रहकर अपनी पूरी ज़िंदगी बिताते है। हमारी बेटी तो सिर्फ़ सात दिन के लिए ही जा रही है, उसे भेज दो! उन्होंने तेरी तारीफ़ करते हुए कहा कि वह खेलती भी बहुत अच्छा है। क्या पता वहां जाकर जीत कर आ जाए। यह कोई छोटा-मोटा खेल नहीं, नेशनल कबड्डी है।

पापा से फोन लेकर मैंने करिश्मा दीदी को फोन किया और उनसे कहा कि मैं और मेरा पूरा ग्रुप तुम्हारे साथ कबड्डी खेलने पंजाब जायेंगे। यह सुनकर वह खुश हो गयी। उन्होंने कहा कल तीन से पाँच बजे तक प्रैक्टिस के लिए आना! कहां पर? तीन बजे भोपा एम.के. रेस्टोरेंट पर मिलना ठीक है! मैंने उनसे कहा कि एक बार आप मेरे पापा से स्कूल टीचर बनकर बात कर लो क्योंकि मैंने उन्हें नहीं बताया कि हम ओपन कबड्डी खेलेंगे। ठीक है अपने पापा से बात करवा दे! मैंने पापा से कहा कि मैडम आपसे बात करना चाहती है!

हैलो ! हां जी नमस्कार! हां ठीक है, हां-हां बिल्कुल कोई दिक्कत नहीं है! इतना कहकर फोन कट गया और पापा बोले ठीक है, जा कर ली मैंने तेरी मैडम से बात। मुझे बहुत खुशी हो रही थी। मैं सोच रही थी कि जल्दी से पंजाब जाऊं और कबड्डी जीतकर बहुत मजे करूं, अच्छी शॉपिंग करूं। अपनी मनपसंद के कपड़े पहनूंगी, कोई यह कहने वाला नहीं होगा कि यह मत पहनो, यह मत करो। अब तो मन कर रहा था कि जल्दी से वहां चली जाऊं। यह सब सोचती-सोचती मैं सो गई। सुबह उठी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगी।

स्कूल में तीन पीरियड के बाद लंच हुआ। लंच में मेरा कबड्डी का पूरा ग्रुप इक्ट्ठा हुआ। मैंने उनसे कहा कि आज दो बजे से हमें रोज़ प्रैक्टिस के लिए जाना है। सब एक साथ बोले, मगर जाना कहां है? हम दो बजे भोपरा चौक पर एम.के. रेस्टोरेंट के पास मिलेंगे, ठीक है! स्कूल से घर पहुंच कर मैंने जल्दी से ड्रेस बदली, खाना खाने लगी।

पता ही नहीं चला कि कब डेढ़ बज गए तभी पापा आए और बोले आज तू प्रैक्टिस के लिए जाने वाली थी गई नहीं तू! पापा दो बजे जाना है अभी दो नहीं बजे। पापा ने कहा जब तू कबड्डी खेलेगी तो क्या पहनेगी? जो अभी पहन रखे हैं वही पहनकर खेलूंगी। पापा बोले, नहीं कबड्डी सूट-सलवार में नहीं खेली जाती, इसके लिए अलग से लोअर और टी-शर्ट होनी चाहिए। मगर पापा मैं यह कपड़े पहनकर यहां से कैसे जाऊंगी, सब मुझे देखेंगे। पापा बोले, तूने ही कहा था कि हमें किसी से क्या लेना, हमारा मन जो करेगा वही करेंगे! हां हां ठीक है पापा, मगर मेरे पास इस तरह के कपड़े नहीं है। चल ठीक है मैं तुझे अभी दिलवाकर लाता हूं। खुश होते हुए मैंने कहा सच पापा। अब तो आप दंगल वाले आमिर ख़ान लग रहे हो। यह सुनकर पापा हंसने लगे और तेज़ आवाज़ में बोले, तमन्ना की अम्मी मैं इसे कबड्डी के लिए कपड़े दिलवाकर आता हूं। यह सुनकर मम्मी बोलीं, अभी तो पैसे नहीं थे और अब कपड़ों के लिए पैसे भी आ गए।

पापा ने अपनी बाइक स्टार्ट की और हम बाज़ार पहुंच गए। एक दुकान के पास पापा ने गाड़ी रोकी और बोले, चल जल्दी दो बजने वाले हैं।


परिचय
मोनी मलिक, उम्र 17 साल । बारहवीं कक्षा की छात्रा। है। सुंदर नगरी में रहती है। पिछले छह सालों से अंकुर कलेक्टिव की नियमित रियाज़कर्ता है। इन्हें लिखने का शौक है ।

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