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प्रधानमंत्री मोदी जी के नाम जिग्नेश मेवानी का खुला पत्र

एडिटर्स नोट- यह लेख जिग्नेश मेवानी ने 13 अप्रैल को लिखा था।


आदरणीय मोदी जी कल 14  अप्रैल को देश को तमाम दबे कुचले उत्पीड़ित लोग लाखों लाख की तादाद में देश के गांवों नगरों शहरों में सड़कों पर निकलेंगे और बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर को याद करेंगे। वही बाबा साहब जिन्होंने देश को एक ऐसा संविधान दिया जिसने कानून के सामने सबको समान घोषित किया और सदियों से कायम मनु की व्यवस्था- जो जनम के आधार पर लोगों को ऊंच नीच बताती थी-को समाप्त किया।

मोदी जी सुना है आपकी सरकार बड़े धूमधाम से इसे मना रही है। अभी 13 अप्रैल को आपने अलीपुर स्थित बाबा साहब के निवास पर एक राष्ट्रीय स्मारक का उद्घाटन किया, वहीं जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी। चन्द रोज़ पहले आपने कहा था कि बाबा साहब का सम्मान जितना आपकी सरकार ने किया उतना किसी ने नहीं किया।

यह कैसा सम्मान मोदी जी कि इधर कभी दिल्ली में तो कभी लंडन में डॉ. अम्बेडकर के स्मारकों के उद्घाटन होते रहें और उधर आपके ही दल के लोग कानून के राज की बखिया उधेरते रहें,  जिसके निर्माण के लिए डॉ. अम्बेडकर ने जीवन न्योछावर कर दी।

मोदी जी आपने कठुआ की 8 साल की बच्ची के बारे सुना है? जो जम्मू की थी, जिसे बहुत दिनों तक मंदिर में बंद रखा गया और कई दिनों तक उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और अन्तत:  उसे मार दिया गया और यह महज़ इसलिए कि उस समुदाय के लोग डर कर भाग जाएं। और बलात्कारियों को जब पकड़ा गया तो आपकी पार्टी के मंत्रीगण पैरवी करने के लिए उतरे और उन अमानुसों के हक में भारत माता के नारे लगें।

मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना पर सभी ने लब खोलें मगर प्रधानमंत्री पद का ज़िम्मा संभालते वक्त संविधान को सबसे पवित्र किताब घोषित करने वाले आपने मौन बनाए रखा, गोया आपने कुछ देखा-सुना ना हो। (नोट- कल रात PMO ने रेप की अलग-अलग घटनाओं पर ट्वीट किया है)

मोदी जी उसी किस्म का सिलसिला उन्नाव की किशोरी के साथ हुआ। विधायक और उसके गुर्गों ने बलात्कार किया शिकायत करने पर उस के पिता को उन्होंने ही पीटा और कस्टडी में  डलवा दिया।  पिता की मौत हुई तब भी विधायक बेखौफ घूमता रहा, रामराज्य की दुहाई देता रहा। ना आप बोलें ना राज्य की बागडोर संभाले आदित्यनाथ बोलें।  भला हो डॉ. अम्बेडकर के बनाए संविधान के तहत चलने वाली अदालत का। उसने जब डांट लगाई तभी विधायक को सलाखों के  पीछे भेजा गया।

मोदी जी जब कानून का राज़ कमज़ोर पड़ता है या किया जाता है तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ होती है।

झुंड का शासन कायम होता है, आतताइयों को दंगाइयों को छूट मिलती है।

झुंड तय करता है कि रामनवी मे जुलूस में हथियार लेकर चलेंगे, हनुमान जयंती के दिन मोटरसाइकिलों पर शोभायात्रा निकालेंगे और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रार्थनास्थल के सामने त्रिशूलों और तलवारों के साथ नारेबाज़ी करेंगे। दादरी के किसी अखलाक के घर सैंकड़ों की तादाद में अचानक पहुंचेंगे और उसे महज़ संदेह के आधार पर खत्म कर देंगे। और हत्या का आरोपी किसी वजह से मर जाए तो तिरंगे उसे सम्मानित करे।

झुंड तय करता है कि कोई शंभूलाल रैगर- जिसने किसी निरपराध मुस्लिम मज़दूर की बिना कारण हत्या की, इस बर्बर घटना को औचित्य प्रदान करने वाला वीडियो अपलोग किया- उसे अपने युग का नायक घोषित कर दें और धार्मिक जुलूसों में उसकी झांकी निकाले।

झुंड तय करता है कि दलित आदिवासी मरें, किसान आत्महत्या करे, मज़दूर गोलियों से मार दिया जाए तो भी ना कोई हंगामा हो ना कोई शिकायत। मगर अगर कहीं से गोवंश मरने की अफवाह उड़े तो बस्तियों को बेचिराग कर दिया जाए। किसी उस्मान, किसी जावेद की ज़िंदगी की डोर समाप्त कर दी जाए।

मोदी जी खुद डॉ. अम्बेडकर ने संविधान को देश को सौंपते वक्त हमें बताया था कि हम एक व्यक्ति-एक मत वाले राजनीतिक जनतंत्र में प्रवेश कर रहे हैं मगर एक व्यक्ति एक मूल्य वाला जनतंत्र कायम करने की लड़ाई अभी दूर तक चलेगी। आज जब ट्रेन में किसी जुनैद को भीड़ पीट-पीट कर मार देती है या दिल्ली में किसी इमाम को पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाली बस में अपमानित करती है और ऐसा करने वाले लोगों को शह मिलता है तो यही उजागर होता है कि हमारा मुल्क अम्बेडकर के सपनों के सामाजिक जनतंत्र के तरफ नहीं, बल्कि मनु के दिनों की झुंडतंत्र की तरफ बढ़ रहा है।

मोदी जी आप जानते हैं इस देश के करोड़ों दलित-आदिवासी और इंसाफपसंद लोगों के लिए डॉ. अम्बेडकर की 127वी जयंती का आयोजन बहुत ही विकट परिस्थितियों में हो रहा है। SC-ST एक्ट को कमज़ोर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ, 2 अप्रैल को हुए भारत बंद के दौरान शरारती तत्वों द्वारा की गई हिंसा का बहाना देकर देश के हज़ारों-हज़ार दलितों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत मुकदमे कायम किये गए हैं, तमाम लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं, तमाम लोग पुलिसिया दमन से बचने के लिए घर से पलायन किए हैं। एक तरफ दलितों पर फर्ज़ी मुकदमें किए जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वर्चस्वशाली जातियों के वे लोग जिन्होंने बंद का बहाना बनाकर दलितों की हत्याएं की वह बेदाग घूम रहे हैं। यह संविधान की कैसी रक्षा है मोदी जी?

डॉ. अम्बेडकर की मूर्ती पर माल्यार्पण करने से पहले क्या आप इस मसले पर नहीं आत्मपरिक्षण करेंगे कि किस तरह सुप्रीम कोर्ट के  इस फैसले के लिए जिसने SC-ST एक्ट को कमज़ोर किया, आपकी सरकार ने ही ज़मीन तैयार की थी। ठीक से केस लड़ा नहीं, एटॉर्नी जनरल की जगह सॉलिसिटर जनरल के किसी जूनियर को भेजा। जनता की भारी दबाव के तहत जब आपकी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा पुनर्विचार के लिए खटखटाया तो यही बात माननीय न्यायाधीश ने कही।

अगर आपकी सरकार अपनी भूल को सुधारना चाहती है तो क्यों नहीं आपाकी सरकार तत्काल एक अध्यादेश जारी कर देती है ताकि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निष्प्रभावी हो जाए।

ध्यान दीजिए ये महज़ SC-ST एक्ट को बचाने की लड़ाई नहीं है, यह तो भारत के दंड विधान/इंडियन पीनल कोड को बचाने की लड़ाई है। SC-ST एक्ट को लेकर यह फैसला कहता है कि कोई भी केस दर्ज हो प्रथम सूचना रिपोर्ट(FIR) तभी दर्ज होगी जब जांच होगी जबकि भारत के दंड संहिता के अंदर शिकायतकर्ता का यह अधिकार है। दिल्ली ही नहीं देश के तमाम पुलिस स्टेशनों पर बकायदा यह बात लिखी गई है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट पाना साधारण नागरिक का अधिकार है।

मोदी जी यह कैसा भारत बनाना चाहते हैं आप कि पुलिस थाने में केस दर्ज ना हो, जांच पूरी करने के नाम पर दबंगों को पीड़ितों को प्रताड़ित करने की पूरी छूट मिले, अदालतें न्याय ना करें और आम नागरिक दर-दर भटकता रहे।

किझेवनमनी से लेकर बाथे, शंकरबिगहा, चुंदूर तक दलित नरसंहारों के तमाम मामलों में कभी न्याय नहीं मिल सका है। उना, गुजरात के दलित, जिन्हें मरी हुई गाय की चमड़ी उतारने के लिए सरेआम बुरी तरह पीटा गया था और वीडियो बनाकर इंटरनेट पर साझा किया गया था, जिसकी प्रतिक्रिया में एक व्यापक आंदोलन हुआ था, उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला मोदी जी।

ये कैसा भारत बनाना चाहते हैं  कि आपके बाद गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने डॉ. अम्बेडकर के चरित्र की लाखों प्रतियां जो स्कूलों में बांटने के लिए उनकी सरकार ने ही प्रकाशित की थी, रद्दी में डाल दी, क्योंकि लेखक ने किताब के अंत में बाबा साहब अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकारने वक्त जिन 22 प्रतिज्ञाओं को अपने अनुयाइयों के साथ दोहराया था, उन्हें किताब के अंत में शामिल किया था। और आनंदीबेन पटेल के बाद मुख्यमंत्री बने विजय रुपाणी ने तो दलितों के हाथों तिरंगा लेने से भी मना कर दिया।

कानून का राज़ जब भी कमज़ोर किया जाता है, संविधान के उसूलों को तथा उसके मूल्यों को जब भी खोखला किया जाता है, तब उसकी सबसे बड़ी मार आम आदमी पर पड़ती है और पूंजीशाह, थैलीशाह तथा सांप्रदायिक जातिवादी गिरोहों की पौ बारह हो जाती है।

अभी चंद रोज़ पहले लगभग 50 हज़ार किसानों ने नासिक से मुंबई पैदल मार्च किया। लाल झंडे तले हुए इस शांतिपूर्ण मार्च का ज़ोरदार स्वागत मुंबई की जनता ने किया। मज़दूरों-किसानों के प्रदर्शनों को लेकर नाक भौं सिकोड़ने वाले मीडिया ने भी इस मार्च को खूब प्रचारित किया। नासिक के इन किसानों के ज़रिए यही बात रेखांकित हुई कि जब पूंजीशाह, थैलीशाह तथा सांप्रदायिक जातिवादी गिरोहों को छूट मिलती है तब लाखों लाख किसानों की आत्महत्या भी किस तरह खबर नहीं बन पाती।

किसान मामूली कर्ज़ वसूली से बचने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं और कानूनी राज को ठेंगा दिखाते हुए सरकारी बैंको के हज़ारो हज़ार करोड़ रुपए गटक कर नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे लोग विदेशों में ऐश कर रहे हैं।

कानून का राज जब कमज़ोर किया जाता है तो मारूती और प्रिकॉल के कामगार सालों साल जेल में सड़ने के लिए मजबूर होते हैं। रोहिथ वेमुला की सांस्थानिक हत्या में शामिल लोग जिनपर मुकदमे कायम हुए हैं, सम्मानित होते रहते हैं, पदोन्नति पाते रहते हैं। रोहिथत की मां राधिका वेमुला न्याय की तलाश में भटकती रहती है, नजीब की मां सलाखों के पीछे भेजी जाती है और भीमाकोरेगांव में दलितों पर हुए संगठित हमले के सूत्रधार सरकार की तरफ से अभय पाते रहते हैं। अदालत से बेदाग छूटे भीम आर्मी के जुझारू नेता चंद्रशेखर आज़ाद रावण के खिलाफ रासुका लगा दी जाती है।

मोदी जी जेल में अनशन का चंद्रशेखर आज़ाद का यह सातवां दिन है। 2 अप्रैल के भारत बंद के दिन दलितों के उपर हुए झूठे मुकदमों को वापस लेने की मांग को लेकर जेल की सलाखों के पीछे से उन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की है। हम पुरयकीं हैं कि जेल की दीवारोंं को भेदते हुए यह आवाज़, जो एक नए भारत के निर्माण की बुलंद आवाज़ है, यह आवाज़ जो भगत सिंह, बिस्मिल, अश्फाक, अम्बेडकर जैसे विद्रोहियों के सपनों के भारत बनाने की आवाज़ है, दूर-दूर तक पहुंचेगी।

उना के आंदोलन ने हम सभी को तपाकर फौलाद बनाया है, हमारी चेतना महज़ खास तबके के लिए, खास समुदाय तक सीमित नहीं है, अब यह धर्म की दीवारों, जाति-नस्लों के बाड़े से परे जानेवाली चेतना है, जो समूची इंसानियत की बेहतरी के ख्वाब देखती है। मध्यप्रदेश के किसानों के सीनों पर चलने वाली गोलियां भी हमें छलनी करती है और कठुआ की नन्हीं सी बच्ची को न्याय दिलाने के लिए भी हम तत्पर रहते हैं।

मोदी जी, संविधान को पवित्र किताब महज़ ज़ुबानी जमाखर्च में ही नहीं बल्कि हकीकत में उतारने के लिए तैयार होइये।

वक्त बदल रहा है।

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