Site icon Youth Ki Awaaz

‘जो काम वक्त पर पेट भर दे वही काम सबसे बड़ा होता है’

मेरी हमेशा से एक आदत रही है लोगों से बातचीत करने की. जैसे की ऑफिस गार्ड्स, लिफ्ट मैन, रिक्शा, ऑटो, कैब वाले भैया या ऑफिस स्वीपर, बीड़ी फूकते चाचा या ईंट ढोने वाली दीदी से भी। इसके मूलतः मैं तीन वजहें मानता हूं। एक तो मैं लकी हूं जो बेझिझक ये सारे मुझसे बड़े प्यार से बात कर लेते हैं बिना हिचक, ड्रेस, स्टेटस की परवाह किये बिना, दूसरी वजह कि मैं शुरू से ही निहायती मिडिल क्लास रहा हूं, बिलकुल अपनी माँ की तरह, जैसे उसे ट्रेन के ए.सी कोच से ज़्यादा स्लिपर में घूमने का मज़ा आता है। लोग बातें करते हैं, मूंगफलियां खाते हैं और साथ सफर कट जाता है। और तीसरी की मैं एडवरटाइज़िंग में हूं।

एडवरटाइज़िंग में होना भी एक तरीके का लकी होना है मेरे लिए। इस फील्ड में हमारे बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं, बेटा, जब तक लोगों से बात नहीं करोगे तो कहानियां कैसे गढ़ोगे? और कहानियां लिखना और कहना ज़रूरी है। किसी एक किताब की एक लाइन मुझे बहुत अच्छी लगी थी वो साझा करते हुए मैं यहां लिख रहा हूं ‘एक दिन हम सब अपने-अपने हिस्से की अधूरी कहानियों के साथ इस दुनिया से चले जाएंगे।’ और यही हर कहानी का यथार्थ भी है।

मथुरा दास कैसे हो?
ठीक हैं सर, आप कैसे हैं?

मथुरा दास (रियल नाम: भूषण) हमारा ऑफिस स्वीपर था, जिसे हमने अपनी मस्ती के लिए उसका नामाकरण किया था।

वॉशरूम से बाहर आते हुए और ऐनक में अपने बाल को संवारते हुए मैंने उसका हाल पूछा। उसने भी वाइपर को दोबारा इधर से उधर सरकाते हुए जवाब दे दिया।

बातों- बातों में मैंने उससे ये पूछ लिया क्या तुम गुड़गांव चल रहे हो, अब ऑफिस तो हमारी शिफ्ट हो रही है? एक हलकी सी उदासी लिए उसने बोला, क्या सर गुड़गांव कैसे जा पाएंगे 5 हज़ार की नौकरी में? आने, जाने में ही पैसे ख़त्म हो जाएंगे। ऊपर से ना ये लोग छुट्टी देते हैं और सबसे पहले बुला भी लेते हैं। सुबह से रात तक बस 5 हज़ार में खटता रहता हूं।

सर कोई अच्छी नौकरी हो तो बताइये, मैं कुछ और कर लूंगा। इससे पहले मैं एक एम एन सी कंपनी में कैब चलाता था, फिर तबियत खराब हो गयी बीच में तो छोड़ना पड़ा।

ये सब सुनने के बाद मैंने उससे बोला जब इतनी अच्छी नौकरी कर रहे थे, तो कोई इसी टाइप की नौकरी पकड़ लेनी चाहिए थी। ये काम तुमने क्यों पकड़ा जहां पगार भी अच्छी नहीं है और तुम्हारे मन का भी नहीं है।

पेट का है न सर!

मैं हल्का सा मुस्कुराया और मुझे उसकी ये अदायगी पसंद आ गयी। हां, उसका ये कहना मेरे लिए उसकी अदायगी ही है। एक्चुअली हम सब अपनी अदायगी में जीते रहते हैं।

और फिर उसने एक ऐसी बात कह दी। जिसके बारे में आज तक सोचता रहता हूं।
बहुत ही सरल, सहज और आसान से शब्दों में वो मुझे बता गया की ‘जो काम वक्त पर पेट भर दे वही काम सबसे बड़ा होता है।’

बाद में लंच करते हुए मैंने उसके कटोरी से थोड़ी सी कढ़ी ली और उस दिन की कहानी को एक निवाले के साथ निगल गया। और ज़ुबां पर रह गया उसकी कढ़ी और ज़िंदगी की कहानियों का स्वाद।

Exit mobile version