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सुरक्षित मातृत्व है हर महिला का अधिकार

सुरक्षित मातृत्व किसी भी महिला का सामाजिक और मूल अधिकार है। इस लिहाज से सबसे पहले यह जान लें कि ‘सुरक्षित मातृत्व’ क्या है? किसी भी महिला की मृत्यु प्रसव के दौरान या अगर गर्भपात हुआ है तो उसके 42 दिनों बाद तक उस महिला की मृत्यु ना हुई हो, तो इसका मतलब सुरक्षित मातृत्व है। इसे सुनिश्चित करने के लिए गर्भवती महिलाओं में खून की कमी न होने देना और उन्हें भरपूर पोषण देना आवश्यक है।

महिलाओं के गर्भवती होने के दौरान, उनकी सही देखभाल और आयरन फॉलिक एसिड की खुराक मिलनी ज़रूरी है। अफसोस कि आज भी हमारे देश में कई महिलाओं के लिए मातृत्व मौत की सज़ा से कम नहीं है। विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर पांच मिनट में एक गर्भवती महिला की मौत होती है। हर साल दुनिया भर में गर्भवती महिलाओं की होनवाली कुल 529,000 मौतों में भारतीय महिलाओं की संख्या 136,000 अर्थात 25.7 फीसदी होती है।

करीब दो तिहाई गर्भवती महिलाएं जन्म देने के बाद मेडिकल जटिलता की वजह से जान गंवा देती हैं। इनमें पोस्टमॉर्टम हैमरेज सबसे आम है, जिससे प्रति एक लाख महिलाओं में से 83 की जान जाती है। जून 2016 से दिसंबर 2017 के बीच सरकार द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण में पता चला कि देश में मौजूद कुल गर्भवती महिलाओं में से 550,000 से अधिक महिलाएं उच्च-जोखिम श्रेणी में शामिल हैं।

प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के रुडो विल्सन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि भारतीय महिलाएं जब गर्भवती होती हैं तो उनमें से 40 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाऐं सामान्य से कम वजन की होती हैं भारत में गर्भधारण के दौरान औसत महिलाओं का वजन केवल सात किलोग्राम बढ़ता है, जबकि सामान्यत: गर्भवती महिला का वजन इस दौरान 9 से 11 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए।

स्वस्थ मातृत्व से ही स्वस्थ समाज का विकास है संभव

सरकार द्वारा मातृत्व स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और गर्भावस्था एवं प्रसव संबंधी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वर्ष 2013 में हर साल 11 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस’ मनाने की शुरुआत हुई। उल्लेखनीय है कि 11 अप्रैल को बा अर्थात कस्तूरबा गांधी का जन्मदिन है। आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। इस दिन देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, ताकि गर्भवती महिलाओं के पोषण पर सही ध्यान दिया जा सके। स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय की मानें, तो भारत में मातृ मृत्‍यु दर में तेज़ी से कमी आ रही है। वर्ष 2010-12 में मातृ मृत्यु दर 178, 2007-2009 में 212, जबकि 2004-2006 में मातृ मृत्यु दर 254 रही। 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्‍यु दर को 65 प्रतिशत से ज़्यादा घटाने में सफलता मिली।

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान : भारत सरकार की एक बेहतरीन पहल

देश में तीन करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व देखभाल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का लक्ष्य से वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की शुरुआत की गयी है। इस अभियान के तहत लाभार्थियों को हर महीने की नवीं तारीख को प्रसव पूर्व देखभाल सेवाओं (जांच और दवाओं सहित) का न्यूनतम पैकेज प्रदान किया जायेगा। यदि किसी माह में नवीं तारीख को रविवार या राजकीय अवकाश होने की स्थिति में अगले कार्यदिवस पर यह दिवस आयोजित किया जायेगा।

इस कार्यक्रम की प्रमुख विशेषता :

इस कार्यक्रम की अवधारणा के अनुसार यदि भारत में हर एक गर्भवती महिला का चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षण एवं पीएमएसएमए (Pradhan Mantri Surakshit Matritva Abhiyan) के दौरान उचित तरीकें से कम-से-कम एक बार जांच की जाये तथा इस अभियान का उचित पालन किया जायें, तो यह अभियान हमारे देश में होनेवाली मातृ मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
इस अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर उनकी गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही की अवधि (गर्भावस्था के 4 महीने के बाद) के दौरान प्रसव पूर्व देखभाल सेवाओं का न्यूनतम पैकेज प्रदान किया जाता है।

इसके तहत प्रसव पूर्व जांच सेवाएं ओबीजीवाइ (Obstetrics and Gynecology) विशेषज्ञों/चिकित्सा अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करायी जाती हैं।
निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों/चिकित्सकों को भी उनके ज़िलों में सरकारी चिकित्सकों के प्रयासों के साथ स्वैच्छिक सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में विशेष रूप से उनसे सहयोग देने की अपील कर चुके हैं।

कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य
– सभी गर्भवती महिलाओं को उपयुक्त नैदानिक ​​सेवाएं प्रदान करना,
– उपयुक्त नैदानिक स्थितियों के लिए उनकी स्क्रीनिंग करना,
– गर्भावस्था प्रेरित उच्च रक्तचाप, गर्भावधि मधुमेह आदि का उचित प्रबंधन करना,
– उचित परामर्श सेवाएं देना एवं उन सेवाओं का रिकॉर्ड मेंटेन करना,
– उन गर्भवती महिलाओं को, जो किसी भी कारण से अपनी प्रसव पूर्व जांच नहीं करा पायी हों, उन्हें अतिरिक्त अवसर प्रदान करना,
– डिलीवरी/ मेडिकल हिस्ट्री और मौजूदा नैदानिक स्थिति के आधार पर उच्च ज़ोखिम गर्भधारण की पहचान करके उनकी लिस्टिंग करना,
– ऐसी महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करना, कुपोषित महिलाओं की पहचान करना और उनका पर्याप्त तथा उचित प्रबंधन करना,
– किशोर और जल्दी गर्भधारण पर विशेष ध्यान देना, क्योंकि इन गर्भधारणों में अतिरिक्त एवं विशेष देखभाल की जरूरत होती है।

महिलाएं किसी भी समाज की मज़बूत आधारस्तंभ होती हैं। किसी भी देश का समग्र विकास उस देश में रहनेवाली महिलाओं और बच्चों के समुचित विकास के बिना संभव नहीं है।

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