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कितना उचित है मीसा बंदी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पेंशन देना?

क्या राजनैतिक उदेश्यों के लिए यानि सत्ता प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा किसी दूसरी विरोधी सत्तासीन पार्टी के खिलाफ चलाये गए आन्दोलनों  में सक्रीय भागीदारों को सरकारी खजानों से आर्थिक लाभ पहुंचाना जनहित में सही कदम है ? यह प्रश्न कौंधता है  वर्तमान भाजपा सरकारों द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को पेंशन देने के फैसलों पर।

एक तरफ तो केंद्रीय व राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों तथा अपने अधीन बैंक कर्मचारियों की पेंशन बंद कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा संचालित  ग्रामीण बैंकों के लगभग तीस हज़ार कर्मचारी/अधिकारी पेंशन के लिए वर्ष 2012 से केंद्र सरकार की हठधर्मिता का खामियाज़ा भुगत रहे हैं और लगभग तीन हज़ार कार्मचारी पेंशन की  इन्तजार करते करते परलोक सिधार चुके हैं। दूसरी तरफ ये सरकारें अपने कार्यकर्ताओं को भी पेंशन की खैरात बांट रहे हैं।

बुधवार, 11 अप्रैल, 2018 को चंडीगढ़ में हुई हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में मंत्रीमंडल की बैठक में हरियाणा राज्य शुभ्र ज्योत्सना पेंशन तथा अन्य सुविधाएं योजना, 2018  को स्वीकृति प्रदान की गई जो प्रथम नवम्बर 2017  से लागू होगी। इस योजना के तहत, हरियाणा के ऐसे निवासियों को  दस हज़ार  रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी, जिन्होंने 25  जून, 1975 से  21  मार्च, 1977  तक आपातकाल की अवधि के दौरान सक्रिय रूप से भाग लिया और आन्तरिक सुरक्षा रख-रखाव अधिनियम (एमआईएसए), 1971  और भारत के प्रतिरक्षा अधिनियम, 1962  के तहत कारावास जाना पड़ा। इसके अतिरिक्त, जो व्यक्ति हरियाणा के अधिवासी नहीं है परन्तु आपातकाल के दौरान हरियाणा से गिरफ्तार हुए और हरियाणा की जेलों में रहे, वे भी इस पेंशन के पात्र होंगे।

एक सरकारी सूचना के अनुसार  इस योजना का लाभ उठाने के लिए हरियाणा के ऐसे निवासी पात्र होंगे, जिन्होंने आपातकाल की अवधि के दौरान संघर्ष किया तथा चाहे उन्हें एमआईएसए अधिनियम, 1971  (मीसा)  या भारत के प्रतिरक्षा  अधिनियम, 1962  तथा इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत एक दिन के लिए ही कारावास जाना पड़ा हो। ये नियम ऐसे व्यक्तियों की विधवाओं के लिए भी लागू होंगे। लाभार्थी को इसके लिए सम्बन्धित जेल अधीक्षक द्वारा जारी और ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित जेल प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। यदि कोई व्यक्ति रिकॉर्ड गुम होने या अनुपलब्ध होने के कारण जेल प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं कर सकता, तो वह दो सह-कैदियों से प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर सकता है। सह-कैदियों का ऐसा प्रमाणपत्र संबंधित ज़िले के विधायक या सांसद द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।

इससे पहले वर्ष 2014 में राजस्थान की भाजपा सरकार ने भी एक अधिसूचना जारी कर राज्य में वर्ष 1975-1977 के दौरान मीसा एवं डी आई आर के अंतर्गत राज्य की जेलों में बंदी बनाये गए राज्य के मूल निवासियों को पेंशन दिए जाने सम्बन्धी “मीसा एवं डी आई आर बंदियों को पेंशन नियम 2008 “में कुछ संशोधन कर इसे बहाल किया था! भाजपा सरकार ने 2008 के अपने पूर्व के कार्यकाल में मीसा बंदियों को पेंशन प्रारम्भ की थी, परन्तु काँग्रेस सरकार ने 2009 में सत्ता में आते ही इसे बंद कर दिया था !  राजस्थान भाजपा सरकार ने पुनः सत्ता संभालते ही पेंशन को दोबारा से शुरू करने का फैसला लिया था !

संशोधन के अनुसार  पेंशन नियम 2008 के पैरा 10(क) में वर्णित सभी मीसा व डी आई आर बंदियों एवं बंदियों की पत्नी या पति को अब हर महीने राजस्थान सरकार की तरफ से 12 हज़ार रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी! साथ ही सभी पेंशनर को पेंशन के साथ एक हज़ार दो सौ रुपये प्रतिमाह चिकित्सा सहायता भी नगद दी जाएगी, जिसके लिए किसी भी प्रकार का बिल प्रस्तुत नहीं करना होगा ! यह सुविधा 1 जनवरी, 2014 से लागु होगी!

विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा अपने राजनैतिक हित के लिए सरकारी खजाने से अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को पेंशन दिया जाना या कोई आर्थिक लाभ पहुंचाना जनहित में उचित है? पर इस प्रश्न पर विचार करने से पहले यह जानना भी उचित रहेगा कि आखिर मीसा बंदी हैं कौन? 1975 में जब इंदिरा गाँधी की काँग्रेस सरकार द्वारा जबरन नसबंदी व अन्य जन दमनकारी नीतियों के विरोध में जनता में आक्रोश प्रस्फुटित होने लगा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने इस आक्रोश से साधारण तरीकों से निपटने में असफलता के बाद देश में आपातकाल की घोषणा कर दी तथा आंतरिक सुरक्षा के नाम पर मेंटेनेंस आफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट यानि मीसा लागू कर दिया! जिसके तहत सरकार के खिलाफ जनता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करने वाले विभिन्न राजनैतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया !

लगभग सभी विरोधी पार्टियों के बड़े नेता मीसा में बंदी बनाये गए थे! लोगों ने मीसा(MISA) को मेंटेनेंस ऑफ इंदिरा संजय एक्ट नाम देकर खूब नारेबाज़ी की थी! जबरन नसबंदी के खिलाफ भी खूब  विरोध पनपा था और “नसबंदी के तीन दलाल, संजय, शुक्ला, बंसीलाल” का नारा जन-जन की ज़ुबान पर चढ़ गया था!

19 माह तक जेल की रोटियां खाने के बाद 1977 में काँग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर के चलते विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के जमावड़े के रूप में जनता पार्टी की सरकार बनी! वर्तमान भाजपा के भी अधिकतर बुज़ुर्ग नेता उस समय के आन्दोलनों में किसी न किसी दल के साथ भाग ले रहे थे! भले ही काँग्रेस सरकार के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर था, परन्तु राजनैतिक नेताओं का आन्दोलन काँग्रेस को हरा कर सत्ता प्राप्ति मुख्य  ध्येय था! वर्तमान भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्व्यम सेवक संघ तथा पुराने जनसंघ के अधिकतर सक्रिय कर्येकर्ता व नेता कांग्रेस विरोधी आन्दोलनों में शामिल रहते थे!

परन्तु क्या राजनैतिक उद्देश्यों के लिए यानि सत्ता प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा किसी दूसरी विरोधी सत्तासीन पार्टी के खिलाफ चलाये गए आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारों को सरकारी खजानों से आर्थिक लाभ पहुंचाना जनहित में सही कदम है? क्या जनता से वसूले गए टैक्स व जनधन से, अपनी पार्टी के कार्यकर्तायों व नेताओं को मात्र इस आधार पर कि उन्होंने विरोधी पार्टी को सत्ताच्युत करके अपनी पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की है। सरकारी खज़ाने से बंदरबांट करना उचित है ?

सरकार चाहे कितने ही बहुमत से क्यों न बनी हो वो सरकारी धन की कस्टोडियन है मालिक नहीं! और कस्टोडियन अपने या स्वजनों के स्वार्थ साधने  के लिए जनधन का दुरूपयोग करे, कदापि सही कदम नहीं हो सकता! पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं को सम्मान देना किसी भी पार्टी का अधिकार भी है और कर्तव्य भी परन्तु ऐसा पार्टी के अपने फण्ड से किया जाये तो ही जनता में अच्छा संदेश जाता है! चिंता की बात तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकारों द्वारा डाली गई यह पेंशन की लीक कहीं भविष्य में खज़ाना लूट की परम्परा न बन जाये ! अत: ज़रूरत है पुनर्चिन्तन की तथा दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए फैसले करने की!

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