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हे विकास पुरुष 30 हज़ार पेड़ काटकर उत्तराखंड को कैसा विकास दे रहे हैं

इस बार आप चार धाम की यात्रा पर जायेंगे, तो सिर्फ अपने आराध्यों के ही दर्शन नहीं करेंगे, बल्कि चार धाम यात्रा मार्ग के दोनों ओर 25000 पेड़ों की कटी हुई लाशें भी देखेंगे जो इस देश के ‘विकास पुरुष’ ने अपने मॉडल के विकास को उत्तराखंड में लागू करने के लिए कटवाये हैं।  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘ऑल वेदर रोड’ बनाने के नाम पर पहाड़ों में रहनेवाले लोगों को ये सौगात दिया है।

इन कलयुगी विकास पुरुष ने सिर्फ देवदार, बांज, बरगद, बुरांश, साल के वृक्ष ही नहीं कटवाये हैं, बल्कि भगवान शिव की जटाओं को काटने का काम किया है, जिसके परिणाम 2013 की आपदा से भी भयावह होंगे। अगर धार्मिक आस्था के हिसाब से भी सोचें तो हिमालय भगवान शिव का भाल है और हिमालय के वृक्ष शिव की जटाएं, जिन्होंने गंगा, यमुना जैसी तमाम नदियों को अपने में थाम रखा है। वर्ष 2013 की आपदा में हज़ारों लोग मारे गये थे। तब विश्व भर में हाहाकार मचा था। लगभग हर मंच पर पर्यावरण तथा इससे संबंधित मुद्दों को लेकर करीब महीनों तक बहस चली थी।

आज जबकि 25000 पेड़ काट दिये गये हैं और 15000 और काटे जा रहे हैं, तब सब चुप हैं। हिमालय को मारा जा रहा है, फिर भी सब चुप हैं। अब किसी को कोई चिंता नहीं हो रही है, क्योंकि यह ‘महामहिम’ के महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा जो ठहरा। अब इस प्राकृतिक क्षरण में भक्तों को ‘विकास’ दिख रहा है। कमाल की बात है कि एक तरफ तो ये विकासपुरुष ‘स्वच्छता अभियान’ की पैरवी करते नज़र आते हैं, वहीं दूसरी ओर हज़ारों की संख्या में पेड़ों को कटवा कर वातावरण को प्रदूषण की सौगात देते हैं।

अरे, जब हिमालय ही नहीं रहेगा, ये समस्त उत्तर भारत रेगिस्तान में बदल जायेगा, तब? तब क्या करोगे? तब भी इसी तरह चुप रहोगे? आज विकास के नाम पर लगातार प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ पर सब जानबूझ कर चुप हैं, लेकिन भविष्य में हममें से शायद कोई बचेगा ही नहीं बोलने के लिए। 25000 पेड़ काटने का मतलब समझते हैं आप? एक पेड़ अपने आप में एक छोटा पारिस्थितिक तंत्र होता है। महामहिम ने अपनी महिमा को मंडित करने के लिए 25000 पारिस्थितिक तंत्रों को बर्बाद कर डाला।

एक पेड़ एक साल में वातावरण से करीब 27 किलों प्रदूषकों को सोखता है। इस लिहाज़ से ज़रा सोचिए कि कितनी गर्मी और सोखते होंगे वे 25,000 पेड़। कितना ऑक्सीजन देते होंगे? अपनी जड़ों में कितना पानी इकट्ठा रखते होंगे? धरती को कितनी नमी, कितनी उर्वरता प्रदान करते होंगे? कितनी भूमि को जकड़ कर पहाड़ों को मज़बूती देते होंगे? अनुमान लगाया है कभी? आपको पता है अब विकास गुज़रे ज़माने की बात हो गयी है। अब सतत और समावेशी विकास का दौर है। इसका मतलब है आने वाली पीढ़ियों के हिस्से को लूटे बिना, उस पर डाका डाले बिना विकास करना। तो क्या ये पेड़ केवल आपके ही थे, आपके पुरखों के नहीं थे या आपके वंशजों के नहीं होते? क्या हिमालय को खोद के छह लेन के रास्ते बना देने से हो जायेगा विकास? क्या इसे कह सकेंगे हम समावेशी विकास?

बड़े अफसोस की बात है कि 21 वीं सदी में भी आप कोई ऐसा रास्ता नहीं तलाश पाये हैं कि बिना इतनी भारी संख्या में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये, बगैर पर्यावरणीय आपदा लाये विकास के नये कीर्तिमान खड़े कर सकें। अरे, जब पेड़ ही नहीं रहेंगे, तो क्या हिमालय बचेगा? और जब हिमालय नहीं बचेगा तो क्या चार धाम बचेंगे? जब चार धाम नहीं बचेंगे, तो कहां जाओगे आप घूमने? किससे मांगोगे मन्नतें? कौन आयेगा तुम्हारे नग्न हो चुके पहाड़ों को देखने? गंगा यमुना को पानी सिर्फ हिमालय से नहीं मिलता। ये पेड़ अपनी जड़ों में संजो कर रखे हुए पानी से भी इन नदियों को ज़िंदा रखते हैं. इन नदियों को, जिनमें आप अपने पाप धोते हो, उनकी शुद्धता को बनाये रखते हैं? सूखी धरती को उर्वर और सुंदर बनाते हैं. सोचो, जब नदियां ही नहीं रहेंगी, तो कहां जा के धोओगे अपने पाप?

टिहरी बांध से भी बहुत विकास होने वाला था, पर कितना हुआ, ये आज सबसे छिपा हुआ नहीं है। कभी सोचा है कि जब टिहरी क्षेत्र में सैकड़ों बांध बना दिये गये हैं, तो अब वहां लोगों का पलायन क्यों हो रहा है? क्यों जा रही है पहाड़ की जवानी रोटी कमाने? क्यों नहीं बन गया ऊर्जा प्रदेश? पता है आपको टिहरी बांध में आपका हिस्सा ही नहीं है, यूपी और भारत सरकार का है। आपको मात्र 12 परसेंट की रॉयल्टी मिलती है। इसी 12 परसेंट के लिए सैकड़ों विकास के नाम पर गांव उजाड़ डाले गये थे, हज़ारों जंगलों को समतल ज़मीन में तब्दील कर दिया गया था और लाखों हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन को सूखा और बंजर बना दिया गया था.

विकास को लेकर बिना कार्ययोजना से किये गये कार्य के परिणाम भी हमें ही भुगतने पड़ते हैं। ‘ऑल वेदर रोड’ योजना से हमे फायदा मिलेगा या नहीं, ये बाद की बातें है, लेकिन वर्तमान में इस योजना में खामियां ही खामियां देखने को मिल रही है। बेतहाशा काटे जा रहे हरे-भरे पेड़ों की आखिर भरपाई कहां से होगी? एक ओर ‘ऑल वेदर रोड’ के नाम पर हज़ारों की संख्या में पेड़ों की बलि दी जा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ सैकड़ों की संख्या में प्रति वर्ष जंगल वनाग्नि की भेंट चढ़ रहे है। नतीजन हमारा पर्यावरण ना सिर्फ दूषित हो रहा है, बल्कि आने वाले समय में पेय जल संकट से भी दो चार होना पड़ सकता है। आज हम विकास के लिए कुछ भी कर देते हैं, मगर इसके भविष्यगामी परिणाम क्या होंगे इस पर नही ध्यान देते हैं। आखिर इतनी बड़ी संख्या में काटे जाने वाले पेड़ पौधों की भरपाई कहां से हो होगी ये सोचने वाली बात है।

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