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सरकारी स्कूलों की हालत अब बद से बदतर होते जा रही है और सरकार सो रही है

हमारे घर में साफ सफाई करने के लिए एक महिला आती हैं। एक दिन वो अपने साथ अपनी 12 साल की बेटी को भी लेकर आईं। अपनी आदत के अनुसार मैंने उस बच्ची से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछना शुरू कर दिया। वह एक सरकारी स्कूल में 5वीं क्लास की छात्रा थी। मैंने उसे एक कहानी की किताब दी और उसे किताब पढ़कर सुनाने को कहा। मैं हैरान रह गयी कि 5वीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची ठीक तरह से हिंदी की किताब भी पढ़ नहीं पा रही थी। जबकि वो एक हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ती है।

थोड़ी देर बाद घर पर मेरी 9 साल की भतीजी आयी जो बड़ी आसानी से उस किताब को पढ़ने लगी। मुझे ये सोचकर हैरानी हुई कि शिक्षा के स्तर में इतना अंतर कैसे हो सकता है। पता करने पर मैंने जाना कि कई सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है। अधिकतर बच्चे गरीब परिवारों से हैं जहां उनके माता-पिता भी साक्षर नहीं हैं। जब पारिवारिक माहौल में पढ़ाई का दबाब ना हो और स्कूलों में भी बच्चों पर सही ध्यान ना दिया जाए तो ऐसी स्थिति बनना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। खैर, ऊपर सुनाया छोटा सा किस्सा आपके लिए कोई नई बात नहीं होगी। यह बात हम सब जानते हैं और इसके लिए सरकारी प्रबंधन और शैक्षणिक प्रबंधन को कोसते रहते हैं।

हम देश की साक्षरता दर देखकर अफसोस जताते हैं, पर क्या कभी हमने सोचा है कि आखिर साक्षरता के मायने क्या हैं। देश के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो किसी भी भाषा में पढ़ और लिख दोनों सकता है वह साक्षर कहलाता है, अगर कोई व्यक्ति सिर्फ पढ़ सकता है पर लिख नहीं सकता ऐसी स्थिति में वह साक्षर नहीं कहलायेगा। साक्षर होने के लिए किसी शैक्षणिक मान्यता (एजुकेशनल क्वालिफिकेशन) की आवश्यकता नहीं है।

हम युवा स्कूल कॉलेजों में इंटर्नशिप की तलाश में रहते हैं। हमें सरकार, कॉलेज प्रबंधन और NGOs से ऐसे कार्यक्रमों की गुज़ारिश करनी चाहिए जो कि हमें इस क्षेत्र में काम करने का अवसर दें। हर छात्र ग्रुप में अपने क्षेत्र के आस-पास घूमकर लोगों की साक्षरता परीक्षा लें। यह परीक्षा हर आयु वर्ग के लोगों के लिए हो। ज़्यादा-से-ज़्यादा असाक्षर लोगों को साक्षर होने के लिए प्रेरित किया जाए। युवाओं द्वारा उनकी क्लास ली जाये और मदद की जाए।

सरकारी स्कूलों में छात्रों द्वारा हर महीने साक्षरता परीक्षा ली जाए। हर बच्चे की परीक्षा केवल छात्रों की देखरेख में की जाए। यह कदम इन परीक्षाओं को भ्रष्टाचार से मुक्त रखेगा और शिक्षकों को भी ज़्यादा ध्यान देने पर मजबूर करेगा।साक्षरता अभियान में मदद कर रहे छात्रों को सर्टिफिकेट्स दिए जाएं जो उन्हें प्रोत्साहित करें। इस अभियान से केवल असाक्षर लोगों को ही नहीं, बल्कि मदद कर रहे छात्रों को भी फायदा होगा। हमारे युवा अकेलेपन और दबाब के कारण डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। ऐसी सामाजिक गतिविधि उन्हें खुद को और परिपक्व बनाने में मदद करेगी।

शिक्षा एकमात्र ऐसा धन है जो दान करने से और बढ़ता है। इस  प्रयास को लागू करने में काफी कठिनाइयां आ सकती हैं, लेकिन सरकार और आम लोगों की मदद से यह प्रयास सार्थक हो सकता है। इस प्रयास को राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर रखकर ही सफलता मिल सकती हैं।

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