बुधवार को कर्नाटक के बेंगलुरु में कांग्रेस और जेडी(एस) के गठबंधन से मुख्मंत्री पद के लिए कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने पहुंचीं देश की तमाम राजनीतिक हस्तियाँ इस बात की गवाही दे रही थी के वो अब एकजुट है। लेकिन सबसे ज़्यादा जो लोगों और मीडिया में चर्चा का विषय बने हुए थे वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल,उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती। इन्ही सबके बीच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी खूब जम रहे थे। वहीं कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई की हालात ऐसी थी कि मानो रज़िया गुंडों में फस गयी हो। उनकी घुटन स्वाभाविक भी थी,आखिर जिस निकम्मी पार्टी को उन्होंने संविधान की परवाह किये बिना इतना सपोर्ट किया था,आज उसी पार्टी के नाकामी की वजह से यह विपक्षी दलों का राजनीतिक मेला लगा।
वजुभाई मन ही मन सोच रहे होंगे कि अगर एक दो मेहमान मेरे कहने से भी बुला लिए जाते तो इस कुमारस्वामी का क्या बिगड़ जाता? शायद उनको किसी को बुलाने के लिए कहा जाता तो वह सर्वप्रथम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही बुलाते, कि प्रधानमन्त्री जी आओ राज्य की सरकार तुमसे 55 घंटे न चली इसलिए 56इंच की छाती लेकर यहाँ आओ और देखो कि कैसे यह विपक्षी दल आज सब छाती पर मूंग दल रहे है। क्योंकि वजुभाई खुद भी एक अच्छी फिल्म के दर्शक बन जाते और लोगों की निगाह से उनके किये गए असंवैधानिक कार्य को कुछ समय के लिए भुला दिया जाता। वैसे अगर स्वयं कुमारस्वामी ही शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी को बुला लेते तो स्तिथि देखते ही बनती। और फिर लोग राहुल गांधी,नरेंद्र मोदी को ही देखते,यही दोनों चर्चा का विषय भी होते। साथ ही केजरीवाल जो कि काँग्रेस को कोस-कोस कर सत्ता में आये,वह भी नरेंद्र मोदी से किस तरह सामना करते यह भी एक दिलचस्प तस्वीर हो सकती थी।
खैर अब क्या होता और क्या होना चाहिए था कि स्तिथि समाप्त हो चुकी है। जिस तरह का शक्ति प्रदर्शन कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में हुआ। क्या वास्तव में विपक्ष एक जुट है? और क्या केवल चंद्र बाबू नायडू जैसे लोग अपने महत्व को बढ़ाने के लिए कर्नाटक पहुँचे थे? उत्तर प्रदेश के केराना में होने वाले उपचुनाव में जो स्तिथि है,क्या विपक्ष उसी तरह 2019 में एक जुट हो पायेगा। जबकि कहा जाता है कि जो उत्तर प्रदेश जीत लेता है दिल्ली में सत्ता उसी की होती है।
यह सब कयास ही लगाए जा सकते है वास्तविक स्तिथि तो अभी मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनाव के बाद ही साफ होगी। अगर इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो वो दिन दूर नही कि जब वजुभाई की रज़िया के गुंडों में फसने वाली स्तिथि नाम लेना उचित नही,देश के मुख्य व्यक्ति की होगी।
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