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“बेटी के पहले पीरियड्स में उसे वैष्णो माता के दर्शन कराने ले गई”

माँ-बेटी

माँ-बेटी

हमने जो झेला भुगता वो तो बीते समय की बात है मगर मैंने सोच लिया था कि अपनी बेटी के जीवन में ऐसे उलझन भरे पल नहीं आने दूंगी। जब वह लगभग 12 वर्ष की थी तब ही मैंने एक दिन मासिक चक्र के विषय में उससे बात की और उसे बताया कि यह बेहद नार्मल प्रक्रिया है। जैसे खाना पीना सोना हंसना रोना आदि पर यह लड़कियों को ही होता है।

खैर, पूरी कोशिश की थी कि वह डरे घबराये ना ऐसी परिस्थिति आने पर। अगले वर्ष ही हमारी वैष्णो माता के दर्शन की योजना बनी। साथ में भैया और भाभी भी जाने वाले थे जो लखनऊ स्टेशन पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम अपने शहर से ट्रेन पकड़ने के लिए घर से निकल ही रहे थे तभी बेटी ने बुझे चेहरे से बताया कि उसे ब्लीडिंग शुरू हो गई है। यह पहली बार था उसके साथ।

हम बड़े असमंजस में पड़ गए। जैसा कि घर में बड़े बूढों से सुनती आई थी कि ऐसे में मंदिर नहीं जाते। मैं बेटी को ऐसी हालत में कहीं छोड़कर भी नहीं जा सकती थी। फिर मैंने भाभी को फोन पर बताया, उन्होंने भैया को बताया और तुरंत भैया का फोन मेरे पास आ गया। वो बोले कि कहीं छोड़ने की ज़रूरत नहीं है उसे, साथ लेकर आइये। किस ज़माने में जी रहे हो आप सब?

सच बताऊं मुझे अपने भाई पर बेहद गर्व महसूस हुआ उस दिन। हम बहुत ही साधारण परिवार से हैं फिर भी उसकी सोच पर फक्र हुआ और अपनी सोच पर शर्मिंदगी। फिर वो हमारे साथ गयी बेफिक्र होकर। हां यह बात भी बताना ज़रूरी है कि मंदिर की चढ़ाई चढ़ते समय बेटी का सबसे ज़्यादा खयाल भी भाई ने ही रखा। रास्ते में जूस पिलवाना उसकी थकान का खयाल रखना वगैरह वगैरह।

दर्शन के बाद से आज तक उसने इस मामले में कभी असहज महसूस नहीं किया। आज जब वो घर से दूर बाहर रहकर पढ़ाई कर रही है तो भी ऐसे समय में उसके सभी दोस्त उसकी मदद को तत्पर रहते हैं चाहे वो male हों या female. बस इस घटना को आप सबसे शेयर करने का मकसद यही है कि इसे टैबू ना समझें। ऐसे में छुआछूत और असामान्य व्यवहार उसे मानसिक रूप से असहज और परेशान कर सकती है शारीरिक रूप से तो वो पहले से ही तकलीफ में है।

आज भी गाँवों में हालात बहुत बुरे हैं इस बारे में। मैं सरकारी जूनियर स्कूल में शिक्षिका हूं तो मुझे अवसर मिलता है उनसे रूबरू होने का। मैं उन्हें अधिक से अधिक जानकारी देने की और जागरूक करने की कोशिश करती हूं। सरकार का यह कदम भी सराहनीय है कि अब हर जूनियर स्कूल में सैनिटरी पैड्स, बांटने के लिए उपलब्ध हैं और स्वच्छता की दिशा में फीमेल टाॅयलेट से जुड़ी हुई भट्ठी भी बनवा दी गई है जिसमें प्रयोग किए हुए पैड्स निस्तारित (डिस्पोज़्ड) किए जा सकें।

स्वयं के साथ हुऐ अनुभव फिर कभी शेयर करूंगी।


लेखिका बेसिक शिक्षा विभाग शाहजहांपुर (उ.प्र.) में शिक्षिका हैं।

(फोटो प्रतीकात्मक है)

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