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अल्पसंख्यकों की आवाज़

हमें फख्र है कि हम एक अरब से अधिक की आबादी वाले इस महान लोकतान्त्रिक देश में पैदा हुए है। हमारा लोकतन्त्र जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा शासन है। हमारी सरकारों को जनता के लिए काम करना चाहिए। किसी मुस्लिम या हिन्दू समुदाय के लिए नही। प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि देश बदल रहा है  परंतु देश के बदलने के साथ-साथ हमारे राजनैतिक दलों के नेताओं की सोच का बदलना भी बहुत ज़रूरी है। देश का प्रत्येक नागरिक ऐसी हुकूमत चाहता है जो देश का विकास करे और हमारे मुल्क को विकसित देशों की सूची में शामिल करने का गौरव प्रदान करे।
हमारे मुद्दों को सभी राजनीतिक दलों ने सुना,सुनने के बाद चुनावी मुद्दा बनाया और जैसे का तैसा छोड़ दिया। किसी एक सियासी दल ने आजतक मुस्लिम समाज के लिए कोई भलाई का काम नही किया। हर बार मुस्लिमों को छला गया है। यह काम किसी एक पार्टी ने नही बल्कि सारी पार्टियों ने मुस्लिमों को महज़ एक चुनावी मसला बनाकर बखूबी किया है। इस देश के मुस्लिमों का दुर्भाग्य ही रहा है कि जिसके हाथों में भी सत्ता आई उसने हमारा इस्तेमाल ही किया है।
हर पार्टी हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। दरअसल धर्म को सहारा बनाकर सत्ता पाने की चाह उन्ही लोगो की होती है, जिनके पास देने को कुछ नही होता। धर्म केवल व्यक्तिगत आस्था का सवाल है, यह कभी भी राष्ट्रिय आस्था से जोड़कर नही देखा जा सकता।
सच्चर कमैटी की रिपोर्ट आने के बाद भी देश के मुस्लिमों की क्या हालत है यह सभी जानते है। रिपोर्ट को आये हुए भी एक अरसा बीत गया और मौजूदा समय में स्तिथि बद से बदतर हो गयी है। यहाँ सवाल यह उठता है कि जब सरकारी कमैटी ही मुस्लिमो की स्तिथि दयनीय बता रही है तो सिफारिशों को लागू करने में सरकारें देरी क्यों कर रही है? मुस्लिम जनसंख्या नियंत्रण पर तो देश के कैबिनेट मंत्री गंभीर दिख ते है परंतु मुस्लिमों के कल्याण या हित की बात कोई क्यों नही करता? आखिर राजनैतिक दलों को मुस्लिमों के मुद्दों पर कितनी बार सत्ता चाहिए?
देश के मुसलमानो को सबसे अधिक शिक्षा की ज़रूरत है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिये हमे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है। हम देश के मुस्लिमों के लिए आरक्षण की पैरवी नही करते परंतु यहाँ मुस्लिम तबकों में अच्छे शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना होना ज़रूरी है। जिसमें छात्र टेक्निकल एजुकेशन हासिल कर सकें।
आरक्षण से इस देश में लाभ तो मिला है। कोई अगर थोड़ी मेहनत करता है तो आरक्षण के सहारे वो आगे बढ़ जाता है। इस देश में अनुसूचित जाति,जनजाति और पिछड़े तबकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी है,तो मुस्लिमों के लिए भी अगर आरक्षण होता है तो वो भी तरक्की कर सकते है। मुस्लिम आरक्षण के पक्ष में चुनाव में तो नेताओं के सुर निकलते है लेकिन चुनाव के बाद नेताओं को अपना कार्यालय याद नही रहता तो वादों से क्या सम्बन्ध रहेगा?
आरक्षण विकास में सहयोग कर सकता है ऐसा नही कि आरक्षण ही ज़रूरी है। सरकार मुस्लिमों की तरक्की के लिए आरक्षण न भी करे तो दूसरे तरीकों से भी सहायता कर सकती है। सरकार मुस्लिमों के लिए शैक्षणिक संस्थाएं खोले और अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया को राजनीति का अड्डा न बनाये। हम यह कभी नही कहते कि आरक्षण के बिना मुस्लिमों का भला नही हो सकता है। लेकिन हाँ मुस्लिमों के पिछड़ेपन को सुधारने के लिए ज़रूरी है कि सरकार उनकी सहायता करे। दरअसल सरकार के स्तर पर इतनी सारी योजनायें बनती है लेकिन राजनीतिक एवं भ्रष्टाचार के कारण आज भी मुस्लिमों का एक बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे रह रहा है।
मुस्लिमों को अगर मौका मिला है तो उन्होंने देश की सेवा में और देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है- स्व.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इसका एक बड़ा उदहारण है। संसार में कोई भी मुल्क तब तक तरक्की नही कर पाता जब तक कि उसके सभी अंश एक साथ तरक्की न करे। इसलिए ज़रूरी है कि देश की तरक्क़ी में मुस्लिमों का भी सहयोग हो।

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