औरत जात में जन्म लेना ही अपने आप मे संघर्ष हैं काश मैं भी मर्द होती तो कुछ कमाने की चाह में कुछ गवाने का डर नही रहता और बेफिक्र हो कर जीवन जी पाती।हम गाँव की लड़कियों के जीवन का एक भयानक दर्द होता हैं जिसमे सबसे पहले शिक्षा फिर अभिभावकों में समझ का ऊपर से धन का अभाव और नहीं तो माता पिता भी हमारी जल्दी शादी कर हमसे अपना पिण्ड छुड़ाने में लगे रहते हैं।हमारी जिंदगी दुख दर्द से शुरू हो कर दुःख दर्द में ही समा जाती हैं, हमारे जीवन मे और भी भयानक स्थिति तब शुरू होती हैं जब हम दुल्हन बनकर दूसरे घर जाते हैं,वहां ऐसा लगता हैं कि हम मनुष्य नही बल्कि कोई जानवर के रुप में ढल गये हो।एक घर में नज़रबंद होकर सुबह से शाम तक चौका बर्तन, खेत खलिहान, साफ सफाई में लगे रहना हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो जाता है,फिर मन चाहे या न चाहे सोने से पूर्व पति के देह की भूख शान्त करो और फिर सुबह सुबह सबसे पहले उठ कर काम पर लग जाओ, हे भगवान आखिर किस कर्म की सजा दी तूने, लड़की ही बनाया तो किसी अमीर परिवार में खुले विचारधारा के लोग में जन्म दिया होता, गाँव मे क्यो भेज दियाl पता हैं इतना सब कुछ करने के बाद भी कोई खुश नही होता यहाँ सबको बच्चा चाहिये बच्चे पालने की औकात भले ही न हो उनके पास और आजकल तो जब तक कम से कम पन्द्रह हजार रूपये न हो तबतक बच्चे की कल्पना ही नही कर सकते l वैसे बच्चे को जन्म देना औरत के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष हैं जो जीवन भर जारी रहता है बच्चे के देखभाल के रूप में।साथ ही साथ ये भी डर बना रहता हैं कि पेट मे पल रहा बच्चा कही अपंग या किसी रोग से ग्रस्त जन्म लिया तब तो बर्बादी से कोई बचा ही नहीं सकता आप समझ सकते हैं कि जिसके लिये 15000 रुपये जुटाने मुश्किल थे वो आगे और कैसे जुटाएगाl ये सब सोच कर तो मन मे होता हैं क्यो बच्चे नही चाहिये वैसे भी आजकल के बच्चों से कोई उम्मीद रखनी बेवकूफी ही तो हैं कि वो हमारे बुढ़ापे की लाठी बने, शादी होते ही दुलहिन को लेकर बाबू फुर्र से शहरी चिड़िया हो जाते हैं। पर क्या करें ई जो समाज के लोग हैं न वो लोग सन्तान रहित स्त्री को जीने नही देते, हमे बाँझ कह कर जीवनभर घर परिवार के रिस्तेदार लोग ताने मार मार कर हमें मूर्छित कर देते हैं।भैया बड़ा संघर्ष हैं हमारे जीवन मे आप नही समझ सकते। सबसे बड़ी विडम्बना ये हैं कि जिसे इन बातों को पढ़ना समझना चाहिये उन तक आप पहुच ही नही पाते हो या ये की वो आज भी इन बात को समझना नही चाहते क्योकि उनके लिये स्त्री केवल और केवल वो मशीन हैं जो घर के चौखट के अंदर रहकर पूरे परिवार की आवश्यकता पूरी करती रहे बस ! यही हम गांव के लड़कियों का जीवन दृश्य है जी रहे है,और हा! आप जो महिला सशक्तिकरण की बात बड़े बड़े मंचो पर करती हो उससे हमारा कुछ भी भला नही हो पाता क्योकि हम आज भी वैसे ही हैं l जानती हूँ आप कानूनी हक की लड़ाई लड़ती रहती हैं पर हम कहते हैं हमें क़ानूनी हक की चाह नही हैं क्योकि प्रेम परिवार में कानून का कोई स्थान ही नहीं हैं। हमें अपने जीवन साथी से अलग भी नहीं होना हम तो अपने छोटे से गांव छोटे से परिवार में प्यार पूर्वक आजादी की स्वास में जीवन जीने को बेकरार हैं हम सब कुछ पहले की तरह करते रहेंगे बस एक बार आप भी हमे अच्छे से समझने का प्रयास कीजिये अपना सहयोग साथ दीजिये ताकि परतंत्र मनोवृत्ति से हम निकल सके। लेखक :- स्वामी राम शंकर (ग्रामीणांचल में जीवन जीने वाली विवाहित स्त्रीजन के साथ संवाद पर आधारित एक विचार )