कहो ,कि खुलकर कहो
जनता के लिये
जनता के द्वारा
एक क्रूर सत्ता आयी थी
अपने साथ अंधो का जत्था लायी थी
तंत्र ने जब घुटने टेके
लोक फिर कहि बचा नही
सत्ता की चाबुक के डर से
अखबारों ने फिर कुछ कहा नही
बताओ अपने पीढ़ी को
धर्म खूब बेचा गया
जानवरों के लिये
इंसानों को नोचा गया
खरोंचा गया
भीड़ ने सड़को पर
खूब हंगामा मचाया था
न्याय को लोगो ने
फिर नँगा नचाया था
कहो कि खुलकर कहो
हर आवाज को दबाया गया
यह वही दौड़ था जिसमें
कहने वालों को मरवाया गया
लोगो से रोटी छीनी गयी
उन्हें तलवार थमाया गया
इस दौर में सच को रौंदा गया
और झूठ को खूब सजाया गया
कहो कि खुलकर कहो
विपक्ष बहुत कमजोर था
संसद से सड़क तक
बस सत्ता का ही शोर था
धर्म, जाति के नाम पर,
सड़को पर रक्त ही रक्त था
हत्यारा इस दौर में
सबसे बड़ा देशभक्त था
आने वाला कल पूछे कि
तुमने क्या देखा उस दौर में
एक आखिरी चुप्पी से पहले
कह दो, कि खुलकर कहो..