Site icon Youth Ki Awaaz

ग़ज़ल – आंखों से आंखे चार कर लें क्या

आँखों’ से आँखे’ चार कर ले क्या 

तुमपे’  ही  जाँ निसार कर लें क्या 

 

रातों’  को  नींद  ही  न  आये अब ।

उससे’ दिल का क़रार कर लें क्या ?

 

नाम  तेरा  लबों   पे  क्या आया ।

दिल को हम बेकरार कर ले क्या ?

 

प्यार करना गुनाह है तो हम ।

ये ख़ता सच में’ यार कर लें क्या ?

 

यूं   मिले   हैं   ज़माने  से  धोखे ।

उसका’ हम ऐतबार कर लें क्या ?

 

इक  नज़र  भर  उसे  देखा  हमने ।

दिल को’ फिर राजदार कर लें क्या ?

 

यार  क्या  सोचा  वक्त  हैं रुखसत ।

“अक़्स” बाहों को हार कर लें क्या ?

 

© विकास भारद्वाज “अक़्स बदायूँनी”

Exit mobile version