जिन्ना गज़ब आदमी थे,लुभावनी काली टोपी पहनते थे,मस्त और उम्दा विलायती कोट पैंट पहनते थे,लंबा सिगार मुँह में दबाकर अदा से उसे पीते थे।महंगी विलायती शराब ख़ासकर स्कॉच पीते थे।रईसों वाले ठाठ थे,आलीशान बंगले में ठसक से रहते थे।ब्रिटेन में तालीम हासिल की,बेहतरीन वक़ालत करते थे।पीने खाने के शौक़ीन आदमी थे,ग़ैर-मोमडन कन्या से प्रेम विवाह किया। क़ुरान पढ़ी हो या नहीं मगर दुनियाभर की बहुत सी किताबे पढ़ी थी।नमाज़,रोज़ा और हज़ से कोसों दूर और फिर सबसे मज़ेदार यह है कि मुसलमान की रीत नीत से दूर होते हुए भी मुसलमानों के लिए अलग मुल्क़ की मुहिम के अगुवा बन गये।गुजरात के ही गाँधी जी थे और गुजरात के ही जिन्ना थे,दोनों बनिये थे,जहाँ गाँधी जी धर्मभीरू थे वहीं जिन्ना धार्मिक प्रपंच से दूर मगर ज़नाब अड़े रहे कि मुसलमानों के लिए अलग देश होना चाहिए।ज़िन्ना अपने जीवन में किसी धार्मिक पचड़े में नहीं जीते थे बल्कि खुले जेहन के आदमी थे,रात को विलायती सुरापान किया,सिगार पर सिगार फूंका, लजीज़ गोश्त खाया और फिर अव्वल तक़रीरें। एक बात बताऊँ की गोश्त वे सूअर का भी खा लेते थे।जिन्ना का व्यक्तित्व धांसू व दमदार था,जो जी में आया,करा।घूमने फिरने के शौक़ीन आदमी थे,कभी पहाड़ों पर देवदार के दरख्तों में घूमे,कभी स्वात घाटी में रम गये।मज़बूत बैरिस्टर,शराब और सिगार के शौक़ीन,प्यार के पैरोकार,पाश्चात्य रंग और ढंग में रहने वाले खुले दिमाग़ के आदमी मुहम्मद अली ज़िन्ना अपनी मर्ज़ी के मालिक थे,किसी की कम ही सुनते थे।ज़नाब ज़िन्ना ने इतना सब होने के बावजूद भी मज़हब के आधार पर एक नया मुल्क़ माँगा। डायरेक्ट एक्शन के नाम पर क़त्लेआम मचवा दिया।जिन्ना अपनी तमाम पाकिस्तान की माँग के बावजूद भी एक बड़े सेक्युलर आदमी थे,नेहरू जी से कमतर सेक्युलर नहीं थे।पाकिस्तान बना और इस्लामाबाद चले गए मगर जी से कभी आमची बॉम्बे भुला नहीं पाये।पाकिस्तान में भारत के राजदूत से कहते रहे की नेहरू से कहो की बॉम्बे में मेरा घर मुझे दिलाये।ये ही तो वो आलीशान बंगला था जिसमें जिन्ना ठसक और रौब से रहे ।नेहरू जी भी माने नहीं और बाद में यह बंगला जो जिन्ना हाउस कहा जाता है,दुश्मन सम्पत्ति घोषित किया गया।
जिन्ना मनमुताबिक चलने वालों में थे भले ही सामने वाला कुछ भी कहता रहे,जब हिन्दुस्तान का बंटवारा हुआ तो ब्रितानी भारत के आख़िरी वाइसराय माउंटबेटन ने जिन्ना को सलाह दी की जिन्ना साहब पाकिस्तान के प्रेजिडेंट बनने की बजाय प्राइम मिनिस्टर बनिये क्योंकि हुक़ूमत की सारी ताक़त प्राइम मिनिस्टर के हाथों में होगी।जिन्ना ने कहा सुनिये वाइसराय साहब , “मुझे पाकिस्तान का सबसे ऊँचा पद लेना है,प्रेजिडेंट ही बनना है”.
जिन्ना पाकिस्तान को भले ही मुसलमानों के लिये बनवा चुके थे मगर वहाँ वे अल्पसंख्यकों के लिए चिंतित भी थे और पाकिस्तान को एक सेक्युलर मुल्क़ बनाना चाहते थे।पाकिस्तान का राष्ट्रगान एक हिन्दू से लिखवाया था।उनके रुख़्सत होने के बाद तो पाकिस्तान ने ख़ुद को अरब का उपनिवेश बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ी।
जिन्ना ने मुहब्बत की और उम्र का मुँह भी नहीं देखा और ना ही परवाह की दुनिया और दीन की।दीन के तो वे आस पास भी नहीं थे हाँ मगर दीन धर्म के नाम पर मुल्क़ बनवा कर ही दम लिया।आदमी ज़िद का पक्का निकला।जिन्ना ने अपने दोस्त की बेटी से शादी की,उनकी पत्नी पारसी थी और उनसे आधी उम्र की थी।बाद में उनके और उनकी पत्नी के बीच मतभेद गहराते गये और इसका खामियाजा उनकी बेटी दीना को भुगतना पड़ा जिसे माँ बाप दोनों ने ही नजरअंदाज किये रखा।जिन्ना अपनी ज़िंदगी और सियासत में ही रहे रहे,बेटी बाप की मुहब्बत से वंचित ही रही।मगर जिन्ना ने अपनक बेटी पर कभी अपनी मर्ज़ी नहीं थोपी बस एक वाक़ये को छोड़कर।दरअसल जिन्ना नहीं चाहते थे की दीना किसी ग़ैर मुसलमान से शादी करे ।इसके पीछे जिन्ना की कोई दकियानूसी सोच नहीं थी बल्कि उनकी सियासी मजबूरी थी क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि अगर उनकी बेटी ही ग़ैर मज़हब में शादी करती है तो उन्हें राजनैतिक नुकसान होगा,चौतरफ़ा आलोचना की जायेगी।मगर बेटी ने बाप की ना सुनी और अपने बाप के नक़्शे क़दम पर चलकर एक पारसी से ही शादी की।दीना की शादी मशहूर औद्योगिक वाडिया घराने में हुई ,नुस्ली वाडिया जिन्ना के धेवते थे।
जिन्ना का जब इंतक़ाल हुआ तो शिया और सुन्नियों के बीच विवाद हो गया कि जिन्ना शिया हैं, जिन्ना सुन्नी हैं।बात सामने आयी की जिन्ना तो इस्माइली हैं।जिन्ना आदमी ही अलग मिट्टी के बने थे,खुलकर खाया पिया,खुलकर जिये, खुलकर अपनी बात रखी।
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