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ज्योतिरादित्य सिंधिया बनेगे कॉंग्रेस के लिए संजीवनी

Bhopal: Former Union Minister and Congress MP Jyotiraditya Scindia addressing a press conference during his visit to Bhopal on Wednesday. PTI Photo(PTI9_7_2016_000055A) *** Local Caption ***

राज्य की सत्ता पर पिछले 14 साल से बीजेपी काबिज़ है और शिवराज सिंह चौहान 12 साल से मुख्यमंत्री हैं। पिछले कुछ दिनों शिवराज सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर उठ रही है। ऐसे में कॉंग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद नज़र आने लगी है। इसीलिए कॉंग्रेस के नेता राज्य में पार्टी का चेहरा बनने के लिए हाथ-पैर मारने लगे हैं।

मध्य प्रदेश में कहा जाता है कि कर्मचारियों की नाराज़गी की वजह से कॉंग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अब कर्मचारियों को अपने पक्ष में करने के लिए कॉंग्रेस अपने बीस साल पुराने फॉर्मूले को अपना रही है। कॉंग्रेस से जुड़े कर्मचारी संगठनों के साथ दूसरे कर्मचारी संगठनों को अपने पाले में करने की कवायद तेज़ हो गई है।

चुनावी सीज़न में शिवराज सरकार ने सभी तरह के कर्मचारियों को अपने पिटारे में से कुछ न कुछ सौगात ज़रूर दी है। प्रदेश में कर्मचारियों का एक बड़ा वोट बैंक है, जो कई वर्ग के वोटरों को भी प्रभावित करता है। बीजेपी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, तो दूसरी तरफ कॉंग्रेस ने भी कर्मचारी संगठनों पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं। इसकी शुरुआत प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने पार्टी के कर्मचारी संगठन इंटक से की।

पंचायत स्तर पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए कॉंग्रेस संगठन गुजरात से कॉंग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर के ओएसएस एकता मंच के संपर्क में है। मध्य प्रदेश में कोलारस और मुंगावली विधानसभा सीटों पर कॉंग्रेस ने बाज़ी मार ली है। दोनों सीटों पर कॉंग्रेस उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे हैं।

उपचुनाव के लिए आज मतगणना का काम मैराथन साबित हुआ। लोगों को दोनों परिणामों को लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा। कोलारस और मुंगावली में कई राउंडकी गिनती चली। कोलारस से कॉंग्रेस के उम्मीदवार महेन्द्र सिंह यादव पहले चरण की गणना के बाद से ही आगे चल रहे थे, जबकि मुंगावली सीट से कॉंग्रेस उम्मीदवार बरजिंदर यादव ने भाजपा प्रत्याशी पर 2124 वोटों से जीत दर्ज की है। राज्य में इस वर्ष के अंत में विधानसभा के चुनाव हैं, लिहाज़ा उपचुनावों के नतीजे शिवराज सिंह चौहान सरकार के लिए बड़ा सबक देने वाले हैं।

दोनों चुनाव कॉंग्रेस और शिवराज सरकार दोनों के लिए ही नाक का सवाल बन गए थे। इसलिए हारने के बाद भाजपा खेमे में मायूसी है। उसने कॉंग्रेस की सीटें होने के बावजूद जीत के लिए ज़बरदस्त ताकत लगाई थी। बडे़ नेताओं ने चुनाव क्षेत्र में कैम्प किया था। मुख्यमंत्री चौहान ने रोड शो किए थे और मतदाताओं से पांच माह मांगे थे। साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाई थी ताकि दो में से एक सीट जीतकर वह कॉंग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना सके।

दोनों सीटें कॉंग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र गुना में हैं। यदि कॉंग्रेस यह चुनाव हार जाती तो भाजपा सिंधिया के साथ उसका मनोबल तोड़ने में भी कोई कसर नहीं रखती। शिवराज के मुकाबले सिंधिया कॉंग्रेस का चेहरा हो सकते हैं, यह मानकर भी भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी।

आगामी दिनों में होने वाले सत्ता के महासमर से पूर्व हुए इन चुनावों में कॉंग्रेस की विजय उसके लिए जीवनदान के रूप में देखी जा रही है। बता दें कि इससे पहले उपचुनाव के लिए प्रचार में भी सत्तारूढ़ बीजेपी और कॉंग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वहीं सीएम शिवराज सिंह चौहान और कॉंग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था। ऐसे में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उपचुनाव के इन नतीजों को काफी अहम माना जा रहा है।  विधानसभा उपचुनाव से पहले हुए इन चुनावों का सीधा असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। अगर कॉंग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार  बनाया  तो कॉंग्रेस के सफलता के आसार हैं।

 

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