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देश की राजनीति है कहाँ?

मैं बातों को ज्यादा घुमाता नहीँ हूं। कुछ समय से देश के अंदर जिस तरह के राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल रहा है। वैसा शायद ही देखने को मिला हो। आज, कोई भी सरकार के नीति को लेकर आलोचना करता है। तो कुछ नेता को लगता है कि ये तो देश के अहित में बोल रहा है। कोई कहता है इससे धर्म खतरे में पड़ सकता है। बताइये, आलोचना से कहीं देश का अहित होता है। या किसी ख़ास धर्म का नाश होता है। किसको बेबकुफ़ बना रहे है।

हमारे प्रधान सेवक (so called) इतना झूठ बोल के क्या साबित करना चाहते है? उनकी डिग्री वाला मामला अभी शांत नहीं हुआ है। वो समझते क्यों नहीं है कि देश मे सब अनपढ़ नहीँ रहते, कुछ पढ़े लिखे भी रहते है।

कर्नाटक के चुनाव में भगत सिंह को लेकर झूठ बोला। जनता को सच लगा। लेकिन , इतिहास तो कुछ और ही कहता है। कम से कम इतिहास के साथ तो छेड़-छाड़ न करे।

कर्नाटक में जिस तरह से सरकार बनाने के लिए महामारी चल रही थी उसका क्या प्रभाव पड़ा होगा भारत के छवि का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कभी किसी ने सोच है? क्यों सोचेगा, भक्त जो बने बैठे है।

सरकार से सवाल करोगे, तो कुछ बुद्ज़िल इंसान कहेंगे, ऐसा तो पिछले सरकार में भी हुआ था। अरे भाई, इस सरकार को हमने इसलिए बनाया है ताकि यह भी पिछले सरकार जैसा काम करे। उससे कुछ बेहतर करना चाहिए न । लेकिन, वो मानते नहीं है। 

देश में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने सरकारी खर्चे पर पार्टी के लिए, काम किया है। बताइये, क्या जरूरत है देश के शीर्ष नेता को किसी राज्य के चुनाव में सैंकड़ों रैली करना? अरे करना है तो पार्टी फण्ड पर करो न काहे सरकारी खर्च पर करते है? ऐसा सवाल कोई नहीं पूछेगा?

बातें तो बहुत है। आज बस इतना ही।

अंत मे  कहना चाहूंगा, कि फॉलोवर तो अभिनेता की ही सही है राजनेता का कभी फॉलोवर मत बनिये।

जय हिंद!

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