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माहवारी की बेतुकी मान्यताओं को तोड़ने के लिए पुरुषों का जागरूक होना बेहद ज़रूरी

महिलाओं की ज़िन्दगी को पितृसत्ता ने बहुत सारे दायरों में समेट कर रखा है। कभी ये दायरे महिलाओं को घर तक सीमित रखने की बात करते हैं, तो कभी हिंसा को सहन करने के लिए भी मजबूर करते हैं। इन दायरों के चलते देश में बहुत सी लड़कियां अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाती और उनके सपनों का गला घोंट दिया जाता है।

समाज ने महिलाओं और लड़कियों के लिए ना केवल समाजिक तौर पर दायरे बनाये हैं, बल्कि आर्थिक, मानसिक और स्वास्थ्य पर भी दायरे बनाये हैं। इन सभी दायरों में एक मुद्दा ऐसा भी है जिस पर बात करना भी बहुत गलत माना जाता है। हमेशा उस विषय पर सिर्फ कानाफूसी तो होती है, लेकिन खुलकर कोई भी बात नहीं कर सकता। एक तो उस मुद्दे को कभी गम्भीरता से नहीं लिया जाता, दूसरा बहुत सी सीमाओं में बांध कर रखा जाता है। लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा ये मुद्दा है पीरियड्स।

ऐसा दिन हर किसी महिला एवं लड़की की ज़िन्दगी में आता है, जब वो अपने शरीर से अचानक खून निकलता देख डर जाती है। उस समय उसके मन में बहुत से सवाल गूंज रहे होंगे, जिनका जवाब उसके पास बिल्कुल भी नहीं है। क्या उन्हें कोई बीमारी हो गई हैं ? क्या वो मरने वाली है? जैसे बहुत से सवाल बार-बार उनके दिमाग में दस्तक देते रहते हैं। फिर अचानक मां या घर की अन्य महिला चुप्पी का इशारा करते हुए, कपड़े का एक पैड देती है और बोलती है कि इसको लगा लो। इस चुप्पी वाले इशारे ने कभी भी पीरियड्स को स्वास्थ्य का मानक नहीं बनने दिया। पीरियड से जुड़ी बहुत सारी गलतफहमियों की वजह से लड़कियों को बहुत सारी रोक-टोक का सामना करना पड़ता है। पीरियड्स को हमेशा महिलाओं की समस्या की तरह देखा जाता है। यहां तक कि कई बार खुद महिलाएं भी पीरियड्स को समस्या की तरह से देखती हैं। शायद महिलाओं का ऐसा सोचना इसलिए गलत नहीं है, क्योंकि आजतक किसी ने भी पीरियड्स को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाया ही नहीं।

जब किसी महिला को पीरियड्स होते हैं तो उस महिला को अशुद्ध या गंदा माना जाता है। इसलिए पीरियड्स के दौरान महिलाओं को मंदिर में जाने की मनाही होती है। लेकिन, सोचने की बात तो यह है कि पीरियड्स की वजह से ही संसार का संचालन सम्भव है तो फिर पीरियड्स अशुद्ध या गन्दा कैसे हो सकता है ?

ऐसी ही अजीबोगरीब मान्यताओं को पीरियड्स से जोड़कर महिलाओं को दायरों में रखा जाता रहा है। इसी प्रकार यह माना जाता है कि अगर कोई महिला पीरियड्स में तुलसी या अचार को हाथ लगा देती है तो वो खराब हो जाता है। हालांकि पीरियड्स की वजह से तुलसी या अचार खराब नहीं होते, बल्कि उसके अन्य कारण होते हैं।

भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी ऐसी बहुत सी मान्यताएं व दायरे हैं, जिन्हें पीरियड्स से जोड़कर देखा जाता है। नेपाल में महिलाओं और लड़कियों को पीरियड्स के दौरान घर से दूर बनी एक झोपड़ी में उस समय तक रहना होता जब तक इनका मासिक धर्म का समय खत्म नहीं हो जाता है।

इन स्थानों पर लोगों की मान्यता है कि इस वक्त महिलाएं अशुद्ध होती हैं, इसलिए सामान्य लोगों के साथ उनका रहना उचित नहीं माना जाता है। नेपाल के एक हिंदू बहुल गांव में मान्यता है कि पीरियड्स में महिला किसी को छूती है तो उसे एक धार्मिक अनुष्ठान से गुज़रना पड़ता है। वहीं, बाली में जारी परंपरा के तहत माहवारी चक्र के बाद महिला को पवित्र स्नान करना होता है जिसे ‘मिकवे’ कहते हैं। इस परम्परा का पालन वेस्ट बंगाल तथा बांग्लादेश के बॉल्स समाज के लोग करते हैं। इस परम्परा में लोग पीरियड्स के पहले दिन के ब्लड में गाय का दूध, नारियल का पानी तथा कपूर को मिलाकर पीते हैं। इस प्रथा के पीछे मान्यता है कि ऐसा करने पर शारीरिक शक्ति बढ़ती है तथा याददाश्त भी तेज़ होती है।

इस तरह की मान्यताओं व पाबंदियों के चलते पीरियड्स जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई बात नहीं करता। यहां तक कि पीरियड्स से जुड़े विज्ञापन में भी इस तरह पेश किया जाता है कि यह तो सिर्फ छुपाने की बात है। आज भी हमारे देश में स्कूल जाने वाली लड़कियों में ड्रॉप आउट का एक मुख्य कारण पीरियड्स को लेकर गलत मान्यताएं व पाबन्दियां भी हैं। क्योंकि सही जानकारी और स्कूल स्तर पर सैनिटरी पैड के अभाव में लड़कियां पीरियड्स के दिनों में स्कूल नहीं जाती। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि स्कूली स्तर पर ही लड़कियों को पीरियड्स के बारे में सही और सकारात्मक रूप से जानकारी हो।

पीरियड्स एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो कि महिलाओं और लड़कियों के लिए सामान्य सी बात है। यह इस बात का प्रतीक है कि कोई महिला और लड़की का स्वास्थ्य सही है। पीरियड्स से जुड़ी सभी गलत धारणाओं और दायरों को तोड़ने की सख्त ज़रूरत है। इसके लिए पीरियड्स को लेकर सही व सकारात्मक जानकारी का किशोरियों तक जाना बहुत ज़रूरी है। पीरियड्स को लेकर ना केवल महिलाओं को खुलकर बात करनी चाहिए बल्कि पुरुषों को भी इसके बारे में सही जानकारी होनी चाहिए। तभी महिलाओं के स्वास्थ्य के स्तर में बदलाव आ सकता है।

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