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फोटो और वीडियोग्राफी हराम है : पंचायत

जिस दौर में हम या पूरी दुनिया चल रही है, उसे हम आधुनिक युग कहते हैं। इस आधुनिक युग में शिक्षा, कानून, संविधान आदि प्रत्येक व्यक्ति फिर चाहे वह किसी भी धर्म का हो जाति का लड़का और या लड़की हो, को जीवन को खुलकर जीने का अधिकार और समझ प्रदान है कानूनी तौर पर। लेकिन साल 2018 और 21वी सदी में होने के बाद भी कभी-कभी हमें खासकर अपने देश भारत में ही ऐसी-ऐसी बातें-किस्से और तानाशही भरे फैसले देखने सुनने और पढ़ने को मिलते हैं, जिससे सिर्फ हैरत ही नहीं होती बल्कि शर्म भी आती है कि हम ऐसे देश के नागरिक हैं जहां ऐसे रूढीवादी फैसले और तुगलकी फरमान आज भी सुना दिए जाते हैं। इन फैसलों का वर्तमान समय में या कभी भूतकाल में भी समाज से कोई सारोकार ना था ना हो सकता है।
क्या यह फतवे से कहीं घातक फरमान नहीं?
अक्सर देखने-सुनने को मिलता रहता है कि किसी मुद्दे या मामले को लेकर इस्लामिक धर्म गुरुओं द्वारा फतवा जारी कर दिया जाता है, जिसका खासकर कुछ हिन्दुत्ववादी संगठन या कट्टर हिन्दुत्व की विचारधारा वाले लोग जमकर विरोध करते हैं किसी भी फतवे को किसी व्यक्ति या महिलाओं के अधिकारों का हनन करार देते हैं। वर्तमान में फतवों के मामलों में जमकर राजनीति भी होने लगी हैं, जबकि हकीकत यह है कि फतवे का अर्थ होता है किसी को किसी भी कार्य को न करने का सुझाव देना।
यानि कि किसी व्यक्ति को किसी भी कार्य करने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया गया है, उसको सुझाव दिया गया है कि वह ऐसा न करें। लेकिन यह उस व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस फतवे (सुझाव) को मानता है या नहीं।
लेकिन हाल ही कुंवर नगर पंचायत द्वारा जिस प्रकार से शादी से पूर्व किसी जोड़े द्वारा फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी को लेकर तुगलकी फरमान सुनाया है, वह तो इस्लाकि फतवे से कहीं घातक है, क्योंकि यहाँ पंचायत किसी प्रकार का सुझाव नहीं दे रही है, कि कोई व्यक्ति इसे अपने विवेक के अनुसार स्वीकार कर सकता है या नकार सकता है, बल्कि एक फरमान सुना रही है कि फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, यदि कोई व्यक्ति इस फैसले को नहीं मानेगा, या यूं कहे कि कोई जोड़ा (कपल) इसको नहीं मानेगा तो उनपर दंडात्मक कार्यवाही की जायेगी।
फिर सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रही पंचायत
कुछ ही दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों व अन्य के चेतावनी देते हुए यह आदेश दिया था कि किसी भी व्यस्क जोड़ों की शादी के मामले में खाप पंचायतें किसी भी प्रकार का दखल न दें, क्योंकि कानून किसी भी बालिग लड़की या लड़के को यह अधिकार है कि वह किससे शादी करेगा। उससे न ही कोई समाज, जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण रोडा डाले। लेकिन अफसोस उच्चतम न्यायाल के इससे फैसले के ठीक बाद ही एक पंचायत में यह कहा गया कि हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानेंगे। क्योंकि यह हमारे समाज की बात है, और लड़कियों का पालन पोषण भी तो मां-बाप ही करते हैं, तो फिर शादी का अधिकार उन्हें कैसे मिल गया, यदि ऐसा होगा तो फिर हम लड़कियाँ पैदा ही क्यों करेंगे।
प्री-वेडिंग शूट करवाना कुप्रथा है?
सुप्रीम कोर्ट तक शायद यह पंचायत की चुनौती नहीं पहुंच सकी, वरना कुछ-कुछ नया आदेश फिर जारी किया जाता। खैर यह तो थी तबकि बात अब एक बार फिर कुंवर नगर पंचायत की खबर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए चुनौती पेश की है।
सोशल मीडिया पर घूम रही खबर
Photo by Social Media
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक अखबार की कटिंग तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें लिखा है कि अमरावती के कुंवर नगर पंचायत ने एक फैसला लिया है, कि शादी पूर्व होने वाले प्री-वेडिंग शूट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कारण यह बताया गया है कि फोटो शूट से उनके समाज में कुप्रथा को बढ़ावा मिल रहा है। कपल हिल स्टेशन या शहर से बाहर जाकर प्री-वेडिंग फोटो शूट करवाते हैं, यह वर्तमान में भारत में काफी प्रचलित भी हो गया है, लेकिन संकीर्ण मानसिका और रूढ़वादी सोच रखने वाली पंयाचतें प्री-वेडिंग शूट को कुप्रथा बताने पर तुले हुए हैं, वहीं इन्हीं पंचायतों के फैसलों से आज भी हजारों बाल विवाह कराये जा रहे हैं, हजारों बच्चियाँ समय से पूर्व अपना बचपन खोकर मां बन रही हैं, जिसको लेकर इन पंचायतों को कोई आदेश पारित नहीं होता। लेकिन एक मात्र फोटो शूट से इनकी रूढ़ीवादी जड़े हिलने लगती हैं। वहीं दूसरे ओर इस खबर से फोटोग्राफी लाइन के लोगों में भी खासी चिंता देखने को मिल रही है, क्योंकि प्री-वेडिंग शूट फोटोग्राफर्स के लिए रोजी-रोटी ही है।
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